सरकार का यूरिया हठ
सरकार का यूरिया हठ
सरकार का यूरिया हठ – मध्य प्रदेश के किसान पुत्र मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान और स्वयं किसान कृषि मंत्री श्री कमल पटेल किसानों की बेहतरी की चिंता राष्ट्रीय सुरक्षा की तुलना में किसी भी दृष्टि से कम नहीं करते हैं। ये बात अलग है कि किसानों की स्थिति में कोई बदलाव आ गया हो । बीज का संकट , यूरिया की क़िल्लत , सिंचाई केवल आँकड़ों में। पटवारी , गिरदावर, तहसीलों के चक्कर , वो अलग ही अध्याय है । उस की चर्चा बाद में । मुक्त व्यापार , एक राष्ट्र – एक बाज़ार , बहुत सारे लुभाने नारों के बावजूद न किसान ख़ुश है , ना ही व्यापारी संतुष्ट । गत दिनों मध्य प्रदेश में यूरिया सप्लाई संकट के कारणों की पृष्ठ भूमि, पीठिका पर प्रकाश डालता ये आलेख – संपादक
मध्यप्रदेश में विशेष व्यवस्था के तहत सरकार यूरिया वितरण पर पिछले 3 माह से अनुपातिक व्यवस्था लागू किये है।
80% यूरिया सहकारी समितियों के, और 20% यूरिया निजी व्यापारियों के माध्यम से बेचा जा रहा है। यह व्यवस्था सिर्फ मध्यप्रदेश में लागू है, और इसके चलते जो विसंगतियां उत्पन्न हुई हैं, उनके चलते यूरिया की समस्या प्रदेश में चहुँ ओर देखी जा रही है।
- प्रदेश में लगभग 50% किसान ही समितियों के सदस्य हैं, और इनमें से लगभग 50 % किसान/समितियाँ डिफॉल्टर हैं। अर्थात लगभग 25% किसानों के लिए 80% यूरिया और शेष बचे 75% किसानों के लिए 20%. समस्या यहीं शुरू हो जाती है। समिति वाले उस यूरिया को ट्रक बंदी ऐसे व्यापारियों के हाथ बेच देते हैं जो 350/- के भाव खरीद कर 400/- से 500/- के भाव में कालाबाजारी कर देते हैं। ज्यादातर ये व्यापारी बिना लाइसेंस धारी हैं, और समिति सेवकों के सहयोगी हैं।
- समितियों में कार्य दिवस और कार्य के घंटे निर्धारित हैं। समितियों की संख्या भी कम है जिसके चलते किसानों को यूरिया खाद के लिए लंबी लाइनों से समय व्यर्थ करना पड़ता है।
- बाजार का सिद्धांत है कि जो वस्तु प्रचुरता से अनेक स्थानों पर उपलब्ध होगी उसमें ग्राहक को हमेशा प्रतिस्पर्धी मूल्यों पर माल उपलब्ध होता रहेगा, और जिन वस्तुओं पर एकाधिकार / नियंत्रण रहेगा, और मांग अधिक रहेगी, उनकी कालाबाजारी रोकना मुश्किल होता है। सरकार की 80:20 की दोषपूर्ण नीति के चलते कालाबाजारी को बल मिल रहा है।
- यूरिया ऐसी खाद है जिसमें उपभोक्ता को मात्र 25% कीमत अदा करनी होती है, शेष सरकार अनुदान देती है। अनुदान और मांग/ वितरण व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए भारत सरकार ने mfms व्यवस्था (mobile fertilizer management system) लागू कर रखा है, जिसके चलते समितियों/विक्रेताओं को POS मशीन से यूरिया विक्रय करना अनिवार्य है।
- कालाबाजारी के चक्कर में अधिकांशतः ऐसा नही होता, इसलिए mfms पर यूरिया स्टॉक में दिखता है, जबकि गोदाम में वस्तुतः नही होता। इससे व्यवस्था चरमरा जाती है, और गलत आंकडो के चलते केंद्र प्रदेश को यूरिया का आवंटन कम कर देता है। इसी का दूसरा पहलू यह है कि खाद स्टॉक में दिखती है तो यूरिया निर्माता कंपनी/आयातक को केंद्र सरकार अनुदान नही देती। इसके चलते इन कंपनियों की लंबी राशि अटक जाती है जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान होता है, और वे प्रदेश में अपना यूरिया नही लाना चाहती।
- निजी विक्रेता को ये सारी यूरिया कंपनियां यूरिया कमी की आड़ में अन्य बहुत सी वस्तुएं टैग करके महंगे दामों में बेचतीं रहती हैं, जो वे समितियों को नही बेच पातीं, इसलिए 80:20 कि नीति के चलते उन्हें प्रदेश में यूरिया लाना नहीं पूरता। मफम्स आंकड़ों के जरिये यह स्पष्ट हो जाता है कि 80:20 लागू होने के बाद प्रदेश में यूरिया आवक की स्थिति क्या है।
- 80:20 की नीति से सहकारिता से जुड़े नीचे से ऊपर तक लोगों को अच्छी खासी कमाई हो रही है, सो यूरिया वितरण नियंत्रण मुक्त न हो जाये इसके लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाया जा रहा है, और शासन किसी भी दल का हो, प्रदेश में यह नीति जारी है जिसके कारण आप स्वयं समझ सकते हैं। प्रदेश में जहां भी जांच हो रही है, समितियों के कर्ता धर्ता करोड़ों के आसामी निकलते हैं।
- प्रचुर मात्रा में यूरिया उपलब्ध हो इसके लिए आवश्यक है कि शासन किसान के हित में इस आनुपातिक वितरण प्रणाली को समाप्त कर नियंत्रण मुक्त व्यवस्था लागू करे जिससे प्रतिस्पर्धी मूल्यों पर सुगमता से यूरिया हर जगह उपलब्ध हो।
प्रदेश को बार बार बदलती आनुपातिक वितरण व्यवस्था के स्थान पर एक स्थायी व्यवस्था की आवश्यकता है जिससे कम्पनियां अड़ंगेबाजी से भयमुक्त हो निरंतर – निर्बाध यूरिया की आपूर्ति प्रदेश को कर सकें, व्यापारी निश्चिंत होकर अपने संसाधनों की व्यवस्था के बारे में प्लानिंग कर भरपूर यूरिया हर गाँव -कस्बे में पहुंचा सकें, और किसान को जब चाहिए तब, बिना समय व्यर्थ किये यूरिया प्रतिस्पर्धी मूल्य पर उपलब्ध हो सके। यदि बाकी रासायनिक उर्वरकों में यह व्यवस्था कारगर है तो शासन यूरिया के मामले में क्यों हठ पाल रहा है?
राजेश मलैया