कर्ज लेकर घी परोसने की कोशिश में सरकार
शिवराज से नाराज किसान
क्या है भावान्तर योजना
राज्य में खरीफ फसल के लिये लागू की गई योजना में, अनाज मंडी में कम दाम पर उपज का विक्रय होने पर राज्य सरकार, घोषित सरकारी समर्थन मूल्य की अन्तर राशि को किसान को देने का प्रबंध करेगी। राज्य सरकार द्वारा खरीफ फसल के लिये सोयाबीन, मक्का, उड़द, मूंग, मूंगफली की फसल को योजना में शमिल किया है। जिनके सरकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य क्रमश: 3050, 1424, 5400, 5575, 4450 रुपये प्रति िक्वटल है। लेकिन मंडी भावों में रिकार्ड मंदी के बाद भावान्तर योजना में अन्तर राशि प्रति क्विंटल सोयाबीन – 410, मक्का -315, उड़द-2330, मूंग- 1455, मूंगफली-880 रुपये है। सरकार को मंडी भावों में इतनी मंदी की उम्मीद कभी भी नहीं थी। सरकार के अनुमान से अब यह भावान्तर बजट कई गुना अधिक निकल चुका है।
क्या है राज्य सरकार की मुश्किल
पहले से ही राज्य सरकार विकास योजनाओं को चलाने एवं राज्य के खर्चों के लिये अपनी क्षमताओं से अधिक का कर्ज ले चुकी है। सरकार के पास पैसा न होने के कारण उसकी विकास योजनाएं रुकी पड़ी हैं। क्षेत्रीय योजनाओं में निर्माण कार्य रोके जाने से राज्य के विधायक अपने क्षेत्रों में जनता के सामने जाने से डर रहे हैं। प्रदेश सरकार पर डेढ़ लाख करोड़ से अधिक का कर्जा हो चुका है। जिस पर प्रतिवर्ष मप्र सरकार 13 हजार करोड़ का ब्याज चुकाती है। इस स्थिति में भारतीय रिजर्व बैंक सहित अर्थशास्त्री भी मप्र सरकार से और अधिक कर्ज न लेने की चेतावनी जारी कर चुके हैं। भावान्तर योजना में 13 लाख किसानों ने पंजीयन कराया है। अब तक बेची गई उपज लगभग 27 लाख टन है। भावान्तर राशि के भुगतान हेतु राज्य सरकार को औसतन 194 करोड़ रुपये की आवश्यकता है। जबकि राज्य सरकार को आगामी रबी फसल के लिये भी समर्थन मूल्य सहित गेहूं की फसल पर अतिरिक्त बोनस की राशि भी देना है। मप्र के सूखाग्रस्त जिलों के लिये भी बजट का आवंटन करना है।
फ्लाप सिद्ध हो रही है योजना
राज्य की नौकरशाही में भ्रष्टाचार एवं काम न करने की प्रवृत्ति के कारण योजना का ईमानदारी से अनुपालन नहीं हो पा रहा है। योजना के लागू होते ही राज्य की मंडियों में सोयाबीन एंव उड़द के भाव पिछले तीन बरसों के न्यूनतम स्तर पर आ चुके है। मंडी में न्यूनतम मूल्य का खामियाजा उन किसानों को भुगतना पड़ा है, जिन्होंने भावान्तर योजना में पंजीयन प्रक्रिया की जटिलता को देखकर पंजीयन नहीं कराया था। राज्य में 45 फीसदी किसान अभी भी भावान्तर योजना में पंजीकृत नहीं हो पाये हैं। इसमें अंधिकांश अनपढ़ एंव गरीब तबके के वह किसान है जिनके पास खेती के छोटे-छोटे रकबे हैं। योजना में किसान को पंजीयन के बाद बिक्री पर्ची को लेकर मंडी कर्यालय में पहुंचकर बिक्री पर्ची को पुन: भावान्तर के पोर्टल पर अपडेट कराना होता है। इस प्रक्रिया के लगभग एक सप्ताह बाद ही मंडी कर्मचारी उसकी बिक्री का प्रमाण पत्र जारी करते हैं। इस तरह एक फसल बेचने के बाद किसान को कम से कम तीन बार शहर की मंडी के चक्कर लगाना पड़ रहे हैं।
16 अक्टूबर 2017 को लागू हुई इस योजना में पहले चरण के भुगतान की अन्तर राशि को 01 नबंवर 2017 को हितग्राहियों के बैंक खातों मेें डालने के बाद, 15 फीसदी किसानों के खातों में इसलिये राशि नहीं डाली गई क्योंकि जिला प्रशासन इन्हें संदिग्ध मानकर पटवारियों से उनके उत्पादन की वास्तविकता का सत्यापन करा रहा है। पटवारी है कि वह घर बैठकर रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। कुल मिलाकर सरकार ने इस सत्यापन के द्वारा व्यवस्था में शामिल कर्मचारियों को किसानों से रिश्वत मांगने एंव शोषण करने का नया द्वार खोल दिया है।
चालू वर्ष में राज्य में खरीफ के दौरान हुई बेमौसम बारिश से खराब हो चुकी फसलों को समर्थन मूल्य का भाव दिलाने के लिये राज्य में किसानों के लिए भावान्तर योजना लागू की गई है। पूरे देश में अपने तरह की यह पहली योजना है, जिसमें राज्य सरकार को भी नहीं मालूम है कि इस योजना में कितना बजट खर्च होगा। चंूकि अगले वर्ष राज्य में विधानसभा चुनाव होना है। लेकिन पिछले तीन वर्षों के दौरान प्राकृतिक आपदाओ एवं फसलों का उचित मूल्य न मिलने के कारण राज्य का किसान न केवल आत्महत्याएं कर रहा है। बल्कि उसका विश्वास राज्य साकार से भी टूट चुका है। इसलिये जल्दबाजी में लागू की गई योजना का उदेश्य ही किसान के वोट बैंक को बनाये रखना था। लेकिन योजना की पेंचीदगी एवं उचित मूल्य न मिल पाने के कारण राज्य का किसान योजना को लेकर सरकार से खुश रहने के बजाय नाराज दिख रहा है। |
राज्य की अफसरशाही सरकार पर भारी
शिवराज सरकार के अफसरों के बड़बोलेपन किसानों को राज्य सरकार के खिलाफ भड़काने का कार्य कर रहे हैं। भावान्तर योजना की निगरानी करने मंडी पहुंच रहे राज्य सरकार के वरिष्ठ अफसर किसानों की समस्याओं का हल निकालने के बजाय, किसानों पर ही अपनी अफसरशाही दिखाते नजर आ रहे हैं। राजगढ़ मंडी में भावान्तर योजना की समीक्षा करने पहुंचे राज्य के अपर मुख्य सचिव राधेश्याम जुलानिया से जब फसल बेचने पहुंचे किसानों से मिले तो पीडि़त किसानों ने मंडी में कम भाव मिलने की शिकायत एवं सरकार से हस्तक्षेप की मांग की थी। लेकिन जुलानियां ने किसानों के जख्मों पर मरहम लगााने के बजाय उन्हें अधिक पैसा कमाने के लिये खेती छोड़कर सरपंच या मनरेगा मजदूर बनने की सलाह दे डाली। वहीं विदिशा मंडी के किसानों ने भोपाल कमिश्नर अजातशत्रु से मंडी में कम दाम मिलने की शिकायत की तो कमिश्नर साहब ने किसानों से उपज रोककर बेचने की सलाह दे डाली। यहां कमिश्नर साहब यह नही समझ पाये कि खरीफ फसल की आय से ही किसानों की रबी फसल की बुआई सहित अन्य कार्य सम्पन्न होते है। इसी प्रकार टिमरनी मंडी में समीक्षा के दौरान किसानों से चर्चा कर रहे पीडब्लूडी के प्रमुख सचिव से किसानों ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि आपसे प्रदेश की सड़कें तो ठीक होती नही है, आप भावान्तर योजना की समीक्षा कैसे कर पायेंगे।
मंडियों में दस हजार रुपये से अधिक नगद भुगतान पर आयकर विभाग की रोक के बाद भी राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पचास हजार तक नगद भुगतान कराने की बात करते रहे हैं। इस भ्रम के कारण प्रदेश की अनेक मंडियों में किसानों एवं व्यपारियों के बीच संघर्ष की स्थितियां बनती रही है। व्यवस्थाओं में जुड़े कर्मचारी किसानों को योजना की सरल जानकारी देने के बजाय, उन्हें उलझाने में लगे हुये हैं। योजना के प्रथम चरण15 नबम्वर से 30 नबम्वर तक जिन खातों में रकम भेजी गई उन्हीं में से 15 फीसदी खातों को बगैर सत्यापित बताकर अधिकारियों ने इन खातों में पैसा नहीं डाला है। उड़द किसानों को सर्वाधिक भावान्तर राशि 2330 रुपये प्रति क्विंटल मिलना है, लेकिन राज्य के अधिकारियों इसमें सत्यापन की आवश्यकता बताकर उत्पादक किसान को जानबूझकर परेशान कर रहे हंै। जिले के खाद्य अधिकारियों के पास भी योजना सम्बन्धी पूर्ण जानकारी नहीं है। वास्तविक उत्पादन दर्ज करने के लिये रिपोर्ट में पटवारियों ने खेत-खेत वास्तविक जानकारी दर्ज करने के बजाय पुराने औसत उत्पादन के आधार पर मनगंढत जानकारियां दे रहे हैं। मंडी में ब्रिकी बाद योजना में लगे कर्मचारियों द्वारा सत्यापन के नाम पर किसानों को परेशान किया जा रहा है। उसी किसान की सत्यापन के समय प्रत्यक्ष उपस्थिति के लिये दबाव बनाया जा रहा है, जिसके नाम पर खेतिहर जमीन है। उन्हें मंडी आने को विवश किया जा रहा है। जिसके कारण कई किसान बगैर सत्यापन के ही वापस जा रहे हैं। मप्र की बड़ी अनाज मंडी गंजबसौदा के यही हाल है। किसानों को कागजी कमियां बताकर मंडी कर्मचारियों द्वारा अनपढ़ गरीब किसानों का शोषण किया जा रहा है।
किसान फिर भी सरकार से नाराज
लाख जतन एवं पैसा लुटाने के बाद भी राज्य का किसान शिवराज सरकार से बेहद नाराज है। भावान्तर योजना में लगे कर्मचारी पंजीयन एवं सत्यापन को लेकर किसान को तरह-तरह से परेशान कर रहे हैं। सत्यापन के समय मंडी कर्मचारी न केवल मूल दस्तावेज मांग रहे हैं। बल्कि खेत मालिक को स्वयं की उपस्थिति पर जोर दे रहे। इससे बुजर्गो एवं महिलाओं की नाराजगी जायज है। सरकार द्वारा पहले चरण की प्रेषित भावान्तर राशि में 15 फीसदी किसानों की राशि को सत्यापन में कमी को बताकर संबंधित अधिकारियों एंव कर्मचारियों द्वारा रोका गया है। लेकिन आश्चर्य यह भी है कि एक माह के बाद भी राज्य सरकार के कर्मचारी सटीक सत्यापन नहीं कर सके हैं। इसको लेकर भी पीडि़त किसान सरकार से खासा नाराज है। धान की फसल को भावान्तर योजना में नहीं लिया गया है। मंडियों में धान के उचित भाव न मिलने की बजह से प्रदेश में जगह-जगह किसान चक्काजाम कर रहे है।
बगैर पूर्ण तैयारी के लागू हुई भावान्तर सोजना में सरकार को किसानों की वाहवाही मिलने के बजाय, नाराजी ही मिल रही है। मंडी में मिल रहे दाम में यदि भावान्तर राशि को भी जोड दिया जाये तो भी राज्य के किसानो को उत्पादन लागत भी नहीं मिल पा रही हैै। अल्प अवधि की इस योजना में राज्य सरकार का लक्ष्य आगामी विधानसभा में किसानों के वोट बैंक को अपने पक्ष में बनाये रखने का ही था। भविष्य के लिये यह योजना न तो किसान हितैषी है और न ही सरकार के पास इतना पैसा है कि वह साल दर साल किसानों को उसकी फसल की भावान्तर राशि दे सके।