बाजरे में रोग-कीट व प्रबंधन
सफेद लट – यह पौधे की जड़ों को काट देती है, परिणामस्वरूप पौधे मुरझाकर खत्म हो जाते हंै और खेतों में कई जगह खाली घेरे बन जाते हैं। इसके नियंत्रण हेतु फेरोमोन ट्रेप का प्रयोग करें। खड़ी फसल पर लट के नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर 4 लीटर क्लोरोपायरिफॉस.20 ईसी सिंचाई के पानी के साथ उपयोग करें।
दीमक – जिस समय पौधे छोटे-छोटे होते हैं, ये पौधों को जमीन के नीचे से काट कर सुखा देते है। दीमक रात्रि के समय अधिक नुकसान पहुंचाती है। असिंचित क्षेत्रों में इसका प्रकोप अधिक होता है। इसकी रोकथाम के लिए खेतों में फसल के अवशेषों व खरपतवारों को नष्ट कर दें और कच्चे गोबर का इस्तेमाल नहीं करें। खड़ी फसल पर प्रति हेक्टेयर 3.4 लीटर क्लोरोपायरीफॉस 20 ईसी 500-575 मिली, क्लोरेटरनलिप्रोल 18 एससी या 200-300 मिली इमिडक्लोप्रिड 17.8 एसएल का छिड़काव करें।
लाल भूड़ली – यह पौधों की पत्तियों व अन्य कोमल भागों को खाती है। इसके नियंत्रण हेतु वर्षा आरंभ होते ही प्रकाश प्रपंच द्वारा प्रौढ़ कीड़ों को आकर्षित करके नष्ट करें, कीट के अंडे दिखाई देने पर ट्राइकोग्रामा स्पी कार्ड फसलों पर लगाएं। रसायनिक नियंत्रण हेतु प्रति हेक्टेयर 20-25 किलोग्राम माइलथिऔन 2 प्रतिशत या 500-625 मिली सायपरमेथ्रिन 10 ईसी या 625 मिली नोवलुरान 10 ईसी आदि में से किसी एक का छिड़काव करें।
मृदुरोमिल आसिता- रोग का प्रथम लक्षण पत्तियों पर तथा दूसरा बालियों पर दिखाई देता है। पत्तियां पीली या सफेद रंग की होकर जल्दी ही भूरी हो जाती हैं, बालियां अंशत: या पूर्णत हरे रंग के गुच्छों के रूप में परिवर्तित हो जाती हेंै। खड़ी फसल में रिडोमीन एमजेड 72 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी बुवाई के 30 दिन के बाद तथा आवश्यकतानुसार10 दिन के अंतराल पर करें।
चैंपा- इस बीमारी का प्रकोप फूल आने के समय होता है। इसके आक्रमण से फूलों में हल्के गुलाबी रंग का गाड़ा तथा चिपचिपा जैसा द्रव निकलता है, जो सूखने के बाद बालियों पर कड़ी परत सी बना लेता है। रोग के शुरुआत में ही रोगग्रसित बालियों को काटकर जला देना अथवा जमीन में गाड़ दें।
कंडुआ- इस रोग आक्रमण से दानों के स्थान पर काला-काला चूर्ण भर जाता है। कंडुआ रोगग्रसित बालियों को काटकर जला दें अथवा जमीन में गाड़ दें।
- डॉ. दीपा कुमारी कुमावत
सहायक निदेशक कृषि विस्तार, झोटवाड़ा, जयपुर, राजस्थान sandeeph64@gmail.com