लहसुन की उन्नतशील किस्में
मध्यप्रदेश में लहसुन की उत्पादकता अन्य प्रदेशों की अपेक्षा बहुत कम है जिसका मुख्य कारण कृषकों द्वारा उन्नत किस्मों का प्रयोग ना करना है। यदि किसान भाई लहसुन की उन्नत किस्मों का चुनाव करें तो निश्चित रुप से उत्पादन को बढ़ा सकते हैं। लहसुन की प्रमुख किस्में निम्न है।
लहसुन एक प्रमुख औषधीय फसल है। शलकीय मसाला फसलों में प्याज के बाद लहसुन का दूसरा स्थान है। यह नगद फसल के रुप में मध्यप्रदेश में रबी के मौसम में उगाई जाती है। लहसुन की खेती भारत के सभी भागों में की जाती है। लेकिन मुख्यत: इसे मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के अनुसार देश में लहसुन का उत्पादन 245.16 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में किया गया है जिससे लगभग 1225.50 हजार मीट्रिक टन उत्पादन प्राप्त हुआ जबकि मध्यप्रदेश में 60 हजार हेक्टेयर क्षेत्र से लगभग 270 हजार मीट्रिक टन लहसुन का उत्पादन प्राप्त हुआ। |
एग्रीफाउण्ड सफेद (जी-41):
इस किस्म के कंद ठोस, मध्यम आकार के सफेद तथा गूदा क्रीम रंग का होता है। प्रत्येक कंद में कलियों की संख्या 20 से 25 होती है। फसल 160-165 दिन में तैयार हो जाती है तथा प्रति हेक्टेयर औसत उपज 125-130 क्विंटल प्राप्त होती है। यह बैंगनी धब्बा एवं झुलसा रोग के लिये प्रतिरोधी किस्म है।
यमुना सफेद (जी-1):
इस किस्म के कंद ठोस, त्वचा चांदी की तरह सफेद एवं गूदा क्रीम रंग का होता है। शल्क कंदों का व्यास 4 से 4.5 सेमी तथा एक कंद में 25 से 30 कलियां पाई जाती हैं। यह किस्म 155-160 दिन में तैयार हो जाती है तथा प्रति हेक्टेयर औसत उपज 150-175 क्ंिवटल देती है। यह किस्म बैंगनी धब्बा एवं झुलसा रोग के लिये प्रतिरोधी है तथा अधिक समय तक भंडारित की जा सकती है।
यमुना सफेद-2 (जी-50):
इस किस्म की गांठें ठोस, सफेद तथा गूदा क्रीम रंग का होता है। यह किस्म भी बैंगनी धब्बा एवं झुलसा रोग के लिये सहनशील है। यह किस्म 165-170 दिन में खुदाई योग्य हो जाते हैं। इस किस्म से 150-160 ( क्ंिवटल/हेक्टेयर) तक औसत उपज प्राप्त हो जाती है।
यमुना सफेद-3 (जी-282):
यह सफेद रंग की बड़े कलियों वाली किस्म है जिसका गूदा क्रीम रंग का होता है तथा एक कंद में 15 से 18 कलियां पाई जाती हैं। यह किस्म 140-150 दिन में पककर तैयार हो जाती है तथा प्रति हेक्टेयर 150-175 क्ंिवटल तक औसत उपज देती है। यह निर्यात हेतु सर्वोत्तम किस्म है।
यमुना सफेद-4 (जी-323):
इस किस्म के कंद चांदी की तरह सफेद एवं बड़े आकार (3.5 से 4.0 सेमी) के होते हैं तथा एक कंद में 20 से 25 कलियां पाई जाती है। यह किस्म 165-170 दिन में पककर तैयार हो जाती है तथा प्रति हेक्टेयर 150-160 क्ंिवटल तक औसत उपज देती है।
यमुना सफेद-5 (जी-189):
इस किस्म के कंद गठीले, चमकदार सफेद एवं बड़े आकार (4.5 से 5.0 सेमी) के होते हैं तथा एक कंद में 22 से 30 कलियां पाई जाती है। यह किस्म 150-160 दिन में पककर तैयार हो जाती है तथा 155-170 क्ंिवटल प्रति हेक्टेयर तक औसत उपज देती है। इन किस्मों की भंडारण क्षमता उत्तम एवं झुलसा रोग, बैगनी धब्बा रोग व थ्रिप्स के लिये प्रतिरोधी होते हैं।
भीमा ओंकार:
इस किस्म के कंद मध्यम आकार के ठोस व सफेद रंग के होते हैं। यह किस्म 120-135 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर औसत उपज 80-140 क्ंिवटल तक प्राप्त होती है। यह किस्म थ्रिप्स कीट के प्रति संवेदनशील होती है। यह किस्म गुजरात, हरियाणा, राजस्थान एवं दिल्ली क्षेत्र के लिये उपयुक्त है।
भीमा पर्पल:
इस किस्म के कंद बैंगनी रंग के होते हैं। यह किस्म 120-125 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर औसत उपज 60-70 क्ंिवटल तक प्राप्त होती है। यह दिल्ली, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं आंध्रप्रदेश के लिये उपयुक्त किस्म है।
अन्य किस्में: | |||
किस्म | फसल | औसत उपज समयावधि (दिन) | विशिष्ट गुण (क्विंटल./हे.) |
गोदावरी | 140-145 | 100-110 | इसके कंद बैंगनी रंग के होते हैं। |
श्वेता | 130-135 | 100-110 | इसके कंद सफेद रंग के होते हैं। |
फूले बसन्त | 135-140 | 100-110 | इसके कंद सफेद रंग के होते हैं। |
जीजी 4 | 130-140 | 80-100 | – |
इसके अलावा जामनगर लोकल, अमलेठा, गोदावरी, श्वेता, पूसा सलेक्शन-10, आई.सी.-49381, आई.सी.-42891, माधवश्री आदि किस्में प्रमुख है। |