जायद में लगाएं खीरा
मिट्टी – लगभग सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है। परन्तु इसकी सफलतापूर्वक खेती के लिये बलुई दोमट तथा मटासी मृदा उत्तम मानी जाती है।
उन्नत किस्में – पूसा संयोग, पाइनसेट, खीरा-90, टेस्टी, मालव-243, गरिमा सुपर, ग्रीन लॉंग, सदोना, एन.सी.एच.-2, रागिनी, संगिनी, मंदाकिनी, मनाली, य.एस.-6125, यू.एस.-6125, यू.एस.-249, इत्यादि।
बुवाई का समय व बीज दर – बुवाई का समय स्थान विशेष की जलवायु पर निर्भर करता है। वैसे गर्मी वाली फसल के लिये बीज की बुवाई फरवरी के मध्य से मार्च के पहले सप्ताह तक में करें। एक हेक्टेयर खेत के लिये 2.5 से 3.0 किग्रा. बीज की आवश्यकता होती है। बीज को उपचारित करने के लिये बीज को चौड़े मुंह वाले मटका में लेकर 2.5 ग्राम थाइरम दवा प्रति किलोग्राम बीज के दर से मिलाते हैं। दवा को बीज में अच्छी प्रकार मिलाने के लिये मटका में दवा व बीज को डालकर दोनों हाथों से कई बार ऊपर-नीचे करें जिससे दवा का आवरण बीज के चारों ओर लग जाये।
बोने की विधि – बुवाई के लिये अच्छी तरह से तैयार खेत में थाले तैयार कर लेते हैं इस थाला के चारों तरफ 2-4 बीज 2-3 सेन्टी मीटर गहराई पर बोयेें। खीरे की बुवाई नाली में भी किया जाता है। इस फसल की बुवाई करने के लिये 60 सेन्टीमीटर चौड़ी नालियों का निर्माण करते हैं, जिनके किनारे पर खीरे के बीज की बुवाई की जाती है। दो नालियों के बीच की दूरी 2.5 मीटर रखें। इसके साथ ही एक बेल से दूसरे बेल के नीचे 60 सेन्टीमीटर का फासला भी रखें। ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिये बीज की बुवाई करने से पूर्व 12-.8 घण्टे तक पानी में भिगोकर रखेें, इससे बीज का अंकुरण अच्छा होता है। बीज की बुवाई के लिये कतार से कतार की दूरी 1.0 मीटर व पौध से पौध की दूरी 50 सेन्टीमीटर रखें। खीरे के पौधे से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिये इस फसल को सहारा देना आवश्यक है।
खााद व उर्वरक प्रबंधन – खीरे की एक हेक्टेयर खेत में खेती करने के लिये 30 टन गोबर खाद का उपयोग करें। इसके अतिरिक्त प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम यूरिया, 125 किग्रा. एन.पी.के, 30 किग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश का उपयोग करें। फसल में फल लगने प्रारंभ हो जाये तो फसल पर एक या दो तुड़ाई के बाद एक प्रतिशत यूरिया के घोल का पौधों पर छिड़काव करने से पौधों की बढ़वार व फलत अधिक व लम्बे समय तक प्राप्त होती है। खीरे के पौधे से अधिक फल प्राप्त करने के लिये वृद्धि नियामक हार्मोन के प्रयोग से मादा फूलों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। जिसके लिये इथरेल 250 पी.पी.एम सान्द्रता वाले मिश्रण का घोल बनाकर, जब पौधों में दो पत्तियां वाले पौधे हो जाये तब छिड़काना चाहिये, जिससे खीरे के पौधों में मादा पुष्पों की संख्या में वृद्धि हो जाती है। तथा अधिक फल लगने के कारण उपज बढ़ जाती है। 250 पी.पी.एम. का घोल बनाने के लिये आधा मिली. इथरेल प्रति लीटर पानी में घोलना चाहिये।
सिंचाई – फसल में फूल आने की अवस्था में हर पांच दिन के अन्तर पर सिंचाई करेें। जिन क्षेत्रों में सिंचाई जल की कमी हो वहां पर टपक सिंचाई लगायें। इससे खेत में पर्याप्त नमी बनी रहती है, साथ ही सिंचाई जल की आवश्यकता भी कम होती है।
कटाई व उपज – खीरे की फसल की अवधि 45 से 75 दिनों की होती है। जिससे लगभग 100 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है। खीरे की बेमौसम फसल पाली हाउस में उगाकर अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है।