रबी सीजन में कौन सी फसल की खेती देंगी सबसे अच्छा मुनाफा? गेहूं रहेगा नंबर वन, लेकिन किसान इन दो विकल्पों पर भी करें विचार
08 अक्टूबर 2025, नई दिल्ली: रबी सीजन में कौन सी फसल की खेती देंगी सबसे अच्छा मुनाफा? गेहूं रहेगा नंबर वन, लेकिन किसान इन दो विकल्पों पर भी करें विचार – केंद्र सरकार द्वारा रबी विपणन मौसम 2026-27 के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ने किसानों को एक नई दिशा दी है। गेहूं का एमएसपी ₹2,425 से बढ़ाकर ₹2,585 प्रति क्विंटल कर दिया गया है। यह ₹160 की बढ़ोतरी भले मामूली लगे, लेकिन गेहूं किसानों के लिए यह अभी भी भरोसे का सबसे मजबूत आधार है।
गेहूं की खेती – सुरक्षित और लाभदायक विकल्प
भारत के अधिकांश इलाकों में गेहूं की खेती सबसे सुरक्षित निवेश मानी जाती है। सरकारी खरीद की गारंटी, स्थिर बाजार और लगभग हर राज्य में अनुकूल मौसम इसे किसानों की पहली पसंद बनाते हैं। इस बार के नए एमएसपी के अनुसार, औसत लागत ₹28,037 प्रति हेक्टेयर मानने पर यदि किसान को 25 क्विंटल उपज मिलती है तो उसे करीब ₹36,500 का शुद्ध लाभ होगा, और यदि उपज 30 क्विंटल तक जाती है तो लाभ ₹49,500 तक पहुँच सकता है।
इसका मतलब है कि गेहूं आज भी “100 प्रतिशत सुनिश्चित रिटर्न” देने वाली फसल है। कोई जोखिम नहीं, मंडी में खरीदार सुनिश्चित, और सरकारी खरीद का भरोसा कायम। यही वजह है कि विशेषज्ञ इसे रबी सीजन की सबसे सुरक्षित फसल मानते हैं।
दूसरी फसल: चना या मसूर – कम लागत, स्थिर मांग
गेहूं के बाद किसान जो दूसरी फसल पर ध्यान दे सकते हैं वह है चना (ग्राम) या मसूर (लेंटिल)। हालांकि इस बार सरकार ने इन दोनों की एमएसपी में बहुत बड़ी वृद्धि नहीं की है — चना का एमएसपी ₹5,875 और मसूर का ₹7,000 प्रति क्विंटल तय किया गया है — फिर भी इनकी खेती किसानों के लिए लाभदायक बनी रहेगी।
चना की खेती में सिंचाई की आवश्यकता अपेक्षाकृत कम होती है, और यह फसल मिट्टी में नाइट्रोजन जोड़कर अगले मौसम की फसल के लिए भूमि की उर्वरता बढ़ाती है। इसी तरह मसूर की खेती ठंडे और सूखे मौसम में बेहतर होती है और इसकी दाल की घरेलू खपत लगातार बनी रहती है।
जहाँ पानी की उपलब्धता कम है या गेहूं की दोहरी फसल संभव नहीं है, वहाँ चना या मसूर को रबी की दूसरी सबसे अच्छी फसल माना जा सकता है।
तीसरी फसल: सरसों – तिलहन में सुनहरा मौका
तिलहन फसलों में इस बार सबसे बड़ा फायदा सरसों (रेपसीड एंड मस्टर्ड) और कुसुम्भ (सफ्लॉवर) को मिला है। सरसों का एमएसपी ₹5,950 से बढ़कर ₹6,200 हो गया है जबकि कुसुम्भ में ₹600 प्रति क्विंटल की ऐतिहासिक वृद्धि हुई है और यह ₹6,540 तक पहुँच गई है।
सरसों की खेती शुष्क और ठंडे मौसम में उत्कृष्ट होती है, विशेषकर मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में। एक हेक्टेयर में औसतन 12-18 क्विंटल उपज संभव है, और यदि किसान सिंचाई प्रबंधन व रोग नियंत्रण पर ध्यान दें तो सरसों गेहूं के बाद सबसे अच्छा नकद रिटर्न देने वाली फसल बन सकती है।
यदि मौसम अनुकूल हो तो सब्ज़ी फसलों पर भी विचार करें
कई इलाकों में जहाँ सिंचाई की उपलब्धता पर्याप्त है, किसान रबी सीजन में मटर, टमाटर या फूलगोभी जैसी सब्ज़ी फसलों को भी शामिल कर सकते हैं। ये फसलें कम समय में तैयार होती हैं और मंडी में दाम का लाभ देती हैं। उदाहरण के तौर पर, मटर 80 से 100 दिन में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 80-100 क्विंटल उपज देती है। यदि मंडी में ₹2,000 प्रति क्विंटल का औसत मूल्य मिले, तो किसान को गेहूं के बराबर या उससे भी अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है।
हालाँकि सब्ज़ी फसलों का जोखिम अधिक होता है, क्योंकि दाम मौसम और मांग पर निर्भर करते हैं। इसलिए विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि किसान गेहूं जैसी स्थिर फसल के साथ एक भाग सब्ज़ी फसल को भी शामिल करें, ताकि एक खेत से कई स्रोतों से आय प्राप्त हो।
समग्र परिदृश्य – फसल विविधीकरण से ही बढ़ेगा लाभ
इस बार के एमएसपी से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि सरकार गेहूं, तिलहन और मोटे अनाजों को प्रोत्साहित करना चाहती है। लेकिन किसानों के लिए असली मुनाफा तब बढ़ेगा जब वे फसल विविधीकरण अपनाएँगे — यानी अपने खेत में केवल एक नहीं, बल्कि दो या तीन फसलों का समुचित संयोजन करें।
खेती में जोखिम कम करने और आय स्थिर करने का यही एक तरीका है। गेहूं को केंद्र में रखते हुए, किसान चना या मसूर को दूसरी फसल और सरसों या सब्ज़ी फसल को तीसरी फसल के रूप में शामिल करें, तो रबी सीजन उनके लिए अधिक लाभदायक सिद्ध हो सकता है।
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