खरपतवार नियंत्रण: महंगा होने के बावजूद मुफीद
01 जुलाई 2025, इंदौर: खरपतवार नियंत्रण: महंगा होने के बावजूद मुफीद – खरीफ फसलों में प्रायः अवांछित घास अर्थात खरपतवार बड़ी मात्रा में उग आते हैं , जिसे किसानों द्वारा निंदाई , निंदानाशक अथवा कुलपे चलाकर नष्ट करने की प्रक्रिया की जाती है, ताकि फसलों को मिलने वाला पोषण खरपतवार को न मिले और फसल स्वस्थ रहकर अच्छी उपज दे सके। खेती में बैलों की निरंतर घटती संख्या, सभी किसानों के पास ट्रैक्टर नहीं होने ,मौसम खुला होने पर ही कुलपे चलाए जाने की अनुकूल परिस्थितियां कम होने तथा मजदूरों की समस्या /अधिक मजदूरी के चलते अधिकांश किसान खरपतवार नियंत्रण के लिए फसल में निंदानाशक का ही प्रयोग करते हैं, ताकि कम समय में अच्छे नतीजे मिल सकें। इसी विषय पर कृषक जगत ने मप्र के कई जिलों के किसानों से खरपतवार नियंत्रण पर उनके विचार जानें। जिसमें किसानों ने खरपतवार नियंत्रण के लिए निंदानाशक के उपयोग की बात कही और उसके परिणामों से अवगत कराया। सार यही निकला कि खरपतवार का नियंत्रण हर पहलू से महंगा होने के बावजूद मुफीद है, ताकि फसलों को पर्याप्त पोषण मिल सके। कई किसानों ने विभिन्न कंपनियों के उत्पादों के अनुभव साझा कर उन्हीं का इस्तेमाल करने की बात दोहराई ।
खत्रीखेड़ी ( इंदौर ) के विक्रमसिंह जाधव ने 6 बीघा में सोयाबीन लगाएंगे। अंकुरण के बाद अच्छी कम्पनी के निंदानाशक का प्रयोग स्प्रे पम्प से करेंगे।खरपतवारनाशक से घास नहीं उगती जिससे फसल को अच्छा पोषण मिलता है और उपज अच्छी मिलती है।जबकि बिसनखेड़ा (कनाड़िया ) के दिलीप निर्भयसिंह पटेल 45 बीघे में सोयाबीन की बोनी की है। लहसुन भी लगाई है। अच्छे अंकुरण के बाद घास उगने पर निंदा नाशक का प्रयोग करते हैं। हर साल ब्रांड बदल देते हैं। अनचाही घास हटने से फसल को अच्छा पोषण मिलता है और फसल स्वस्थ रहती है। मोहाई जागीर (कन्नौद ) देवास के श्री मनोज पंवार ने 50 एकड़ में सोयाबीन की बोनी की है। फसल उगने के बाद स्प्रे पम्प से बीएएसएफ का परस्यूट का प्रयोग करते हैं। इससे खरपतवार नियंत्रित रहता है। फसल स्वस्थ रहने से उत्पादन भी बढ़ता है। करोंदमाफी ( खातेगांव ) के यहां 15 एकड़ में सोयाबीन बोई जा चुकी है। सोयाबीन उत्पादक क्षेत्र में इस वर्ष मक्का का रकबा बढ़ा है। खरपतवारनाशक के रूप में यूपीएल उत्पाद आइरिस का हाथ के स्प्रे पम्प से छिड़काव करते हैं। आदमपुर ( हरदा ) श्री सुरेश मिश्रीलाल सेवर ने बताया कि 25 एकड़ में लगी सोयाबीन में स्ट्रांग आर्म का प्रयोग किया है। अंकुरण के बाद चारा उगने पर किसी अच्छी कम्पनी की दवा इस्तेमाल करेंगे। मौसम खुला होने पर ट्रैक्टर से कुलपा भी चलाते हैं। चारा नहीं उगने से फसल को पोषण मिलता है और अधिक उत्पादन होता है। बेड़ी (हरदा ) के श्री लक्ष्मीनारायण बलराम पटेल ने अपनी 18 एकड़ ज़मीन में 60 % सोयाबीन और 40 % मक्का लगाई है। बोनी के तुरंत बाद अथॉरिटी /मार्क जैसी दवा का छिड़काव मशीन / ट्रैक्टर से करते हैं, जो चारे को लम्बे समय तक उगने नहीं देता है। चारा होने पर ट्रैक्टर से कुलपे चलाते हैं। देदला ( धार ) के श्री अखिल कैलाश रघुवंशी के यहां करीब 50 बीघे में सोयाबीन बोई है। खरपतवार नियंत्रण के लिए निंदानाशक का इस्तेमाल करते हैं , लेकिन बाज़ार में कई कंपनियों के उत्पाद होने से भ्रमित हो जाते हैं। जो अच्छा बताते हैं उसका ट्रैक्टर से स्प्रे कर देते हैं। वहीं बिजूर ( धार ) के श्री दिनेश कामदार ने 55 बीघे में सोयाबीन बोई है , लेकिन वर्षा अधिक होने से परेशानी हो रही है। नमी अधिक है। प्री इमरजेंस खरपतनाशक का बुवाई के तुरंत बाद छिड़काव कर दिया है। मजदूरी महंगी होने से निंदाई नहीं कराते हैं ,मौसम खुलने पर ट्रैक्टर माउन्ट से कुलपे चलाते हैं। अवांछित चारा हटने से फसल स्वस्थ रहती है और इसका फसल उत्पादन पर सकारात्मक असर होता है। ठीकरी (बड़वानी ) के श्री चन्द्रवीरसिंह चौहान ने 10 -10 एकड़ में कपास और मक्का लगाया है। खरपतवार नियंत्रण के लिए कपास फसल में तो मजदूरों से निंदाई करवाकर अवांछित चारा निकलवा लेते हैं। मक्का में अधिक समस्या होने पर बीएएसएफ का टिंजर इस्तेमाल करते हैं। मौसम खुला होने पर बैल / ट्रैक्टर से कुलपे भी चलाते हैं। श्री चौहान ने कहा कि खरपतवारनाशक महंगे होने के बाद भी किसान इनका प्रयोग करते हैं , क्योंकि यही फसल को तात्कालिक उचित समाधान देते हैं।
रिछी ( नर्मदापुरम ) के श्री गुरुप्रसाद श्रीराम मंडलोई के यहां चार दिन पूर्व 15 एकड़ में सोयाबीन की बोनी हो चुकी है। अंकुरण के बाद एक -दो पत्ती वाले खरपतवारों के लिए बीएएसएफ का परस्यूट का हाथ वाले स्प्रे पम्प से छिड़काव किया है। वैकल्पिक में मजदूरों से निंदाई करवाते हैं। बैल / ट्रैक्टर नहीं होने से कुलपे नहीं चला पाते हैं। बकानिया ( उज्जैन ) के श्री लाखन सिंह चन्दर सिंह राठौर 20 बीघा में सोयाबीन लगाएंगे। बारिश कम होने से अभी बोनी नहीं की है। एक -दो पत्ती वाले खरपतवारों के लिए बीएएसएफ के परस्यूट का इस्तेमाल करेंगे। ट्रैक्टर से कुलपे चलाते हैं। निहालवाड़ी (पंधाना ) खंडवा के श्री धनसिंह भंवरसिंह चौहान ने कपास रासी 459 लगाया है। इसके अलावा 15 एकड़ में मक्का और 4 एकड़ में सोयाबीन लगाई है। फिलहाल बारिश कम हुई है। खरपतवार नियंत्रण के लिए शुरुआत में बीएएसएफ का परस्यूट का इस्तेमाल मजदूर से स्प्रे पम्प से कराते हैं। हालांकि इससे वृद्धि रुकने से फसल करीब 20 दिन पिछड़ जाती है। मजदूरी बढ़ने से निंदाई महंगी पड़ती है। सुलगांव ( पुनासा ) के श्री मुकेश आनंदराम मलगाया ने 25 मई को रासी 659 की 10 एकड़ में बोनी कर दी है। 30 एकड़ में टमाटर भी लगाएंगे। खरतपतवार नियंत्रण के लिए मजदूरों से निंदाई कराते हैं। इसके अलावा गोदरेज के हिटवीड मैक्स का भी प्रयोग करते हैं। मालाखेड़ा ( जावद ) नीमच श्री मुकेश ओंकारलाल पाटीदार 4 बीघा में सोयाबीन लगा दी है। 18 बीघा में बाकी है। खरपतवार नियंत्रण के लिए बीएएसएफ के परस्यूट का एक दशक से इस्तेमाल कर रहे हैं। एक दो पत्ती वाले खरपतवारों में अच्छे नतीजे देता है। कृषि यंत्र से कुलपे चलाकर भी खरपतवार हटाते हैं। जबकि धनोरिया (अठाना ) के श्री कंवरलाल हीरालाल प्रजापत 5 एकड़ में सोयाबीन लगाएंगे। खरपतवार को कृषि यंत्र से नष्ट करते हैं। किसी दवाई का इस्तेमाल नहीं करते हैं। जूनी बावल ( नीमच ) के श्री शांतिलाल हीरालाल धाकड़ ने 8 बीघे में सोयाबीन और 3 बीघे में मक्का लगाई है। मक्का में बीएएसएफ का टिंजर और सोयाबीन में ओडिसी का इस्तेमाल करते हैं। खरपतवार नाशक के प्रयोग से फसल की वृद्धि दो तीन दिन रुक जाती है। निंदाई में 500 रु /बीघा की मजदूरी महंगी लगती है, इसलिए कुलपे चलाते हैं। गत वर्ष तो सोयाबीन का एक बीघे में सिर्फ दो क्विंटल उत्पादन मिला था। हतनारा (पिपलोदा ) रतलाम के श्री शिवलाल तोलाराम पाटीदार की 70 बीघा में बोनी चल रही है। खरपतवार नियंत्रण के लिए तुरंत बाद वाली जो दवा बाजार में जो अच्छी होती है उसका उपयोग स्प्रे पम्प से करते हैं। मौसम साफ हो तो ट्रैक्टर माउन्ट से कुलपे चला देते हैं। पलदुना ( रतलाम ) के श्री प्रकाश कैलाश धाकड़ ने 50 बीघे में सोयाबीन लगाई है। मिर्च और टमाटर भी लगाएंगे। खरपतवार नियंत्रण के लिए दवाई के छिड़काव के साथ कुलपे भी चलाते हैं। मक्सी ( शाजापुर ) के श्री वीरेंद्र पाटीदार ने 25 बीघा में सोयाबीन लगाई है। खरपतवार नियंत्रण के लिए पहले बीएएसएफ का परस्यूट का इस्तेमाल करते हैं। दवाई का छिड़काव पंप / ट्रैक्टर से करते हैं। अन्य दवा के साथ मौसम साफ रहने पर कुलपे भी चलाते हैं।
चाचौड़ा ( गुना ) के श्री हरिओम भारत गुर्जर ने इस साल मक्का और सोयाबीन लगाई है। खरपतवार नियंत्रण के लिए उपयुक्त अच्छी दवा का चयन कर प्रयोग करते हैं। सुनारी ( मोहगांव ) छिंदवाड़ा के श्री हरीश पटेल ने कुम्हड़ा के अलावा 30 एकड़ में मक्का लगाई है। बीएएसएफ का खरपतवार नाशक टिंजर का इस्तेमाल स्प्रे पम्प से करते हैं। आपने डुप्लीकेट उत्पादों पर चिंता व्यक्त कर कहा कि ऐसे उत्पादों के नतीजे अच्छे नहीं मिलते हैं। इसलिए हमेशा ब्रांडेड कंपनी का उत्पाद ही बिल लेकर खरीदना चाहिए। वहीं वासहगेन ( बुधनी ) सीहोर के श्री बबलेश चौहान 20 एकड़ में धान की फसल लेंगे। रोपे लगाना है। धान के खरपतवार को रोकने के लिए रीफिट प्लस इस्तेमाल करेंगे। रायबासा ( पांढुर्ना ) के श्री रोशन पांसे ने 10 एकड़ में मक्का,5 एकड़ में कपास लगाया है। मक्का में खरपतवार रोकने के लिए लाडिस और बीएएसएफ के टिंजर का प्रयोग करेंगे। धानुका के उत्पाद विदाउट का भी इस्तेमाल स्प्रे पम्प से कर लेते हैं। धावड़ीखापा के श्री मंसाराम झोट्या खोड़े ने बताया कि इलाके में वर्षा कम हुई है। एक हफ्ते से बोनी चल रही है। 3 एकड़ में मूंगफली, 10 एकड़ में कपास , 5 एकड़ में सोयाबीन और 3 एकड़ में मक्का भी लगाएंगे। सोयाबीन और मूंगफली में खरपतवार नियंत्रण के लिए परस्यूट का प्रयोग स्प्रे पम्प से करेंगे। सोयाबीन और कपास फसल में यूपीएल के सेंचुरियन का भी प्रयोग करते हैं। सभी फसलों में बोनी के पहले और तुरंत बाद पैराक्वाट भी डालते है। इससे खरपतवार जल्दी खत्म हो जाता है। मौसम ठीक रहने पर बैलों की मदद से कुलपे भी चलाते हैं। पोंडी ( लांजी ) बालाघाट के श्री नंदकिशोर बिलावर ने 2 एकड़ में फूल और 3 एकड़ में धान लगाएंगे। धान 859 का रोपा डाल दिया है। पौधे बड़े होंगे और खरपतवार होने पर नियंत्रण के लिए पीआई इंडस्ट्रीज का नॉमिनी गोल्ड का इस्तेमाल करेंगे। जबकि धौरिया ( लखनादौन ) सिवनी के श्री जयप्रताप सिंह ठाकुर ने 3 एकड़ में सोयाबीन और और 20 एकड़ में मक्का लगाएंगे। बारिश अच्छी होने पर बोनी करेंगे। खरपतवार नियंत्रण के लिए स्वाल कम्पनी के अलिटो का उपयोग करेंगे। लाडिस अथवा बीएएसएफ के उत्पाद टिंजर का मक्का फसल में करेंगे। मजदूरों की समस्या के कारण निंदाई नहीं हो पाती है। कुलपे भी चलाते हैं। लेकिन खरपतवारनाशकों के छिड़काव से पौधे की ग्रोथ रुक जाती है , जिसके लिए पृथक से पोषक तत्व देना पड़ते हैं।
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