फसल की खेती (Crop Cultivation)

टमाटर की खेती

09 सितम्बर 2024, भोपाल: टमाटर की खेती – टमाटर एक महत्वपूर्ण संरक्षित खाद्य है, इसे सभी सब्जियों में डालकर पकाया जाता है, इसके बिना सब्जी अधूरी सी लगती है तथा इसकी खेती संसार के सभी भागों में की जाती है। टमाटर का प्रयोग प्रमुख रूप से सलाद, आचार, टमाटर कैचप, चटनी बनाने में किया जाता है। संसार में आलू और शकरकंद के बाद टमाटर ही सबसे अधिक पैदा की जाने वाली सब्जी है।

भूमि- टमाटर की खेती के लिए उपयुक्त उचित जल निकास वाली दौमट या बलुई दोमट अच्छी मानी जाती है।

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उचित किस्म- स्वर्ण, लालिमा, पूसा।

बीज दर- हाईब्रिड 200 ग्राम, देशी 300 ग्राम।

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लगाने की दूरी- टमाटर के बीज को लगाने से पहले छोटी-छोटी क्यारियां जिसका आकार 1 मीटर चौड़ा और लम्बाई अपने हिसाब से रखते हैं फिर उसमें बीज कतार से कतार डालते हैं। यह 4-5 सप्ताह में तैयार हो जाता है। लगाने का समय खरीफ अगस्त, सितम्बर शीत-नवम्बर-जनवरी, ग्रीष्म अप्रैल-15 जून। लगाने की दूरी पौधा पौधा 45-60 सेमी कतार से कतार 60-90 सेमी।

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गोबर की खाद- खेत की तैयारी के समय पूरी मात्रा दे तथा यूरिया गुड़ाई करते समय 2-3 बार में दें।

सिंचाई- वर्षा ऋतु में रोपी गई टमाटर की फसल में पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती है, और यह सतर्क सिंचाई वाली फसल है. अर्थात् उचित समय में सिचांई बहुत जरूरी है. इसमे कम या अधिक सिंचाई दोनों से हानि होती है गर्मी में 7-10 दिन के अन्तर में सिंचाई एवं ठंडी में 10-15 दिन के अंतर में सिंचाई करें।

अंतः क्रियायें- टमाटर जल्दी जल्दी एवं उथली निराई-गुड़ाई वाली फसल है। टमाटर की प्रत्येक सिंचाई के बाद हेंड हो से जमीन को भुरभुरी कर दें या 30-40 दिन बाद फावड़ा के सहायता से मिट्टी चढ़ा दें जब फसल दो महीने की हो जाये तो पौधे के पास लकड़ी लगाकर बांध दें, जिसे हम सहारा देना कहते हैं ऐसा करने से पौधा अधिक बढ़ता है I

उपज- हाइब्रिड 100-150 कि/ एकठ
देशी-7080 कि/एकड़

कीटः

फल छेदक कीट टमाटर- फसल में कीट की लटे फलों में छेद करके अंदर से खाती है। कभी-कभी इनके प्रकोप से फल सड़ जाते है और उत्पादन में कमी के साथ साथ फलों की गुणवत्ता भी कम हो जाती है।

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नियंत्रण- मैलाथियान 50 ईसी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

सफेद मक्खी, चिप्स, हरा तेला व मोयला- ये कीट पौधों की पत्तियों व कोमल शाखाओं से रस चूस कर कमजोर देते हैं सफेद मक्खी टमाटर में विषाणु रोग फैलाती है इनके प्रकोप से उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

नियंत्रण- फास्फोमिडान 85 एसएल 0.3 मिलीलीटर या उछमिथिएट 30 ईसी या एक मीलीलीटर का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें आवश्यकता पड़ने पर यह छिड़काव 15-20 दिन बाद दोहरायें।

लीफमाइनर- ये कीट बहुत ही छोटे होते है जो पतियों के ऊपरी सतह में टेढ़ी-मेढी सुरंग बनाकर उनको खाते हैं।

रोकथाम- मैलाथियान 50 ईसी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

सफेद लट- यह टमाटर फसल को काफी नुकसान पहुंचाती है। इसका आक्रमण जड़ों पर होता है। इसके प्रकोप से पौधे मर जाते हैं।

नियंत्रण- फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3 जी 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई से पूर्व कतारों में पौधों की जड़ों के पास डालें।

कटवा लट- इस कीट की लटे रात में भूमि से बहार निकल कर छोटे-छोटे पौधों के सतह के बराबर से काटकर गिरा देती है।

नियंत्रण- विवनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिलायें।

रोगः

पौध सड़न- यह रोग नर्सरी में पौधे आधार पर आक्रमण करता है और पौधा गिर कर मर जाता है।
रोकथाम- बीज उपचार बाविस्टीन से 2-3 ग्राम /किग्रा के हिसाब से करके नर्सरी में डालें।
फल विगलन- इस रोग के कारण फलों पर प्रारम्भ में काले धब्बे बनते हैं जो फैलकर फल को सड़ा देते हैं।
रोकथाम- डी एम 45 या बाविस्टीन या केप्टान 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिडकाव करें I

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