फसल की खेती (Crop Cultivation)

ऐसे करें हरी-भरी मटर की खेती

ऐसे करें हरी-भरी मटर की खेती – मटर एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। जो हमारे भोजन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसका उपयोग दाल के रुप में, कच्चे दाने एवं भूनकर किया जाता है।

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जलवायु- यह शीत ऋतु की फसल है एवं ठण्डे मौसम में अच्छा उत्पादन देती है। अंकुरण के लिये 22 डिग्री सेल्सियस तापक्रम की आवश्यकता होती है। पुष्पन अवस्था में पाला फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा सकता है। अत: मटर को पाले से सुरक्षा अति आवश्यक है। फसल की वृद्धि की लिये 13-18 सेल्सियस तापक्रम उत्तम है।

भूमि- भुरभुरी दोमट मिट्टी मटर की खेती के लिए उत्तम मानी जाती है। उचित जल निकास वाली भूमि खेती के लिए सबसे अच्छी होती है।
बुआई समय- बुवाई उद्देश्य अनुसार सितम्बर के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में करें।

बीज की मात्रा- शीघ्र पकने वाली किस्मों के लिए 100-120 किग्रा एवं मध्यम व देर से पकने वाली किस्मों के लिए 80 से 90 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।

बीज उपचार- बीज को थायरम 3 ग्राम प्रति किलो या बाविस्टीन 2 ग्राम प्रति किलो की दर से उपचारित करें एवं इसके बाद 3 ग्राम प्रति किलोग्राम राइजोबियम से भी उपचारित करें।

बीज बोने की दूरी- शीघ्र तैयार होने वाली किस्मों के लिये पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी एवं पौधे से पौधे की दूरी 5-6 सेमी रखें। मध्यम एवं देर से पकने वाली किस्मों में, 45 सेमी पंक्ति से पंक्ति तथा पौधे से पौधे की दूरी 8-10 सेमी रखें। खेत में पलेवा देकर बतर आने पर 5-7 सेमी गहराई पर बोनी मशीन द्वारा करें।

उन्नतशील किस्में-

पूसा प्रगति- फलियों की लंबाई 9-10 सेमी एवं प्रति फली 8-10 दाने पाये जाते हैं। पहली तुड़ाई 60-65 दिन में हो जाती है एवं पाउडरी मिल्डयू प्रतिरोधी किस्म है। इसकी उपज 70 क्विंटल हरी फलियां प्रति हेक्टेयर है।

पीएलएम-3 – फलियों की लम्बाई 8-10 सेमी एवं फलियों में 8-10 दाने पाये जाते हैं। पहली तुड़ाई 60-65 दिन में हो जाती है। इसकी उपज 90 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरी फलियां हैं।

जवाहर मटर-1- यह जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई है। इसकी तुड़ाई 70-80 दिन में आरंभ हो जाती है। इसकी उपज 90-120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरी फली है। फली में दानों की संख्या 8 से 9 एवं प्रोटीन प्रतिशत 24.6 प्रतिशत तक होता है।

जवाहर मटर-2- यह ज.ने.कृ.वि.वि. जबलपुर द्वारा विकसित प्रजाति है। इस किस्म का छिलका मोटा होने के कारण भण्डारण एवं दूरस्थ स्थानों में भेजने के लिए उत्तम है। इसमें प्रोटीन 24.67 प्रतिशत होता है। इसकी उपज 135 से 150 क्विंटल प्रति हे. हरी फलियां है।

जवाहर मटर-3- यह किस्म टी-19 एवं अर्लीबेजर के क्रास से विकसित की गई है। इसमें फलियों की लम्बाई 6-7 सेमी एवं फली में दाने 7 तक होते है। इसकी उपज 75 क्विंटल प्रति हे. हरी फलियां है।

जवाहर मटर-4- यह किस्म बीज की बुवाई से 75 दिन में तैयार हो जाती है। फलियों की लम्बाई 7 सेमी एवं फलियों में 6 दाने पाये जाते हैं इसमें प्रोटीन की मात्रा 28.7त्न तक होती है।

अर्किल- इस प्रजाति की फलियां तलवार नुमा 8-10 सेमी लम्बी एवं औसतन 5-6 दाने युक्त होती है। फसल बुवाई के 60-65 दिन में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू के लिए सहनशील है। इसकी औसत उपज 70-80 क्वि. प्रति हे. हरी फलियां है।

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