भारत में सर्दियों में ड्रैगन फ्रूट की खेती का वैज्ञानिक और व्यावहारिक प्रबंधन
08 अक्टूबर 2025, नई दिल्ली: भारत में सर्दियों में ड्रैगन फ्रूट की खेती का वैज्ञानिक और व्यावहारिक प्रबंधन – ड्रैगन फ्रूट (Hylocereus undatus) आज भारत के किसानों के लिए एक उच्च मूल्य वाली फसल के रूप में उभर रहा है। यह उष्णकटिबंधीय मूल की कैक्टस प्रजाति है, जो गर्म और सूखे क्षेत्रों में बहुत अच्छा उत्पादन देती है। परंतु भारत के उत्तरी और मध्य भागों में सर्दियों के दौरान जब तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है, तब पौधे का विकास रुक जाता है, तनों पर ठंड का असर दिखने लगता है और नई कलियों की वृद्धि धीमी हो जाती है। यदि किसान इस अवधि में पौधों की वैज्ञानिक पद्धति से देखभाल करें, तो वे सर्दी के नुकसान से बच सकते हैं और अगले मौसम में बेहतर फलन प्राप्त कर सकते हैं।
तापमान नियंत्रण और पौधों को ठंड से सुरक्षा
ड्रैगन फ्रूट के लिए आदर्श तापमान 20 से 35 डिग्री सेल्सियस होता है। तापमान 5 डिग्री से नीचे जाने पर पौधे में शीत तनाव (cold stress) की स्थिति बनती है, जिससे तनों का ऊतक काला पड़ने लगता है। ऐसे में पौधों को ठंड से बचाने के लिए सबसे पहले खेत में माइक्रोक्लाइमेट (सूक्ष्म जलवायु) तैयार करना जरूरी है। किसान बांस या लोहे के पाइपों की सहायता से एक ढांचा बनाकर उस पर पारदर्शी पॉलीथीन शीट लगा सकते हैं। यह कम लागत वाला लो-टनल स्ट्रक्चर दिन में धूप को अंदर आने देता है और रात में तापमान गिरने से बचाता है।
शाम के समय पौधों के चारों ओर की शीट को नीचे कर दें ताकि गर्मी भीतर रहे और सुबह कुछ देर के लिए हवा आने के लिए किनारों को थोड़ा खोल दें। जिन क्षेत्रों में पाला पड़ने की संभावना होती है, वहां रात में खेत के एक ओर सीमित मात्रा में सूखे अवशेष या भूसा जलाकर हल्का धुआं किया जा सकता है, जिससे तापमान 2–3 डिग्री बढ़ जाता है। ध्यान रहे कि धुआं पौधों पर सीधे न जाए।
पौधों की जड़ों की सुरक्षा के लिए सूखी पत्तियों, धान की भूसी या गन्ने की खोई की 6–8 सेंटीमीटर मोटी परत बिछाना चाहिए। यह मल्चिंग मिट्टी का तापमान स्थिर रखती है और नमी को बनाए रखती है। यह परत पौधे के तने से सीधे न सटे, ताकि तना सड़ने का खतरा न हो।
सिंचाई और मिट्टी की नमी का संतुलन
सर्दियों में पौधे की वृद्धि धीमी होती है, इसलिए पानी की आवश्यकता भी कम हो जाती है। अधिक सिंचाई से जड़ों में सड़न और फफूंदजनित रोग (Phytophthora, Fusarium) हो सकते हैं। किसान सिंचाई से पहले हाथ से मिट्टी की नमी जांचें। यदि मिट्टी की ऊपरी 5–7 सेंटीमीटर परत नम महसूस हो, तो सिंचाई टाल दें। ड्रिप प्रणाली इस समय सबसे उपयुक्त रहती है क्योंकि यह नियंत्रित मात्रा में पानी देती है। सामान्यतः सर्दियों में 10 से 15 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई पर्याप्त रहती है।
पानी हमेशा दिन के गर्म समय में देना चाहिए ताकि मिट्टी का तापमान बहुत नीचे न जाए। बोरवेल का ठंडा पानी सीधे देने से बचें; इसे पहले खुले टैंक में रखकर सूर्य की रोशनी से थोड़ा गर्म कर लें। सर्दी के मौसम में खेत में कभी भी पानी जमा नहीं होना चाहिए क्योंकि ठंडे और गीले वातावरण में जड़ों में ऑक्सीजन की कमी होती है और पौधे पीले पड़ने लगते हैं।
छंटाई और पौधों की संरचना का रख-रखाव
सर्दी शुरू होने से पहले पौधों की छंटाई करना अत्यंत आवश्यक है। इससे पौधों में हवा और प्रकाश का संचार बेहतर होता है तथा रोगग्रस्त भाग हट जाते हैं। किसान तेज और साफ छुरी या कैंची से सूखी, बीमार या कमजोर शाखाओं को तने के पास से काट दें। कटे हुए स्थान पर कॉपर ऑक्सी क्लोराइड का पेस्ट या नीम तेल और चुने का मिश्रण लगाने से संक्रमण नहीं फैलता।
छंटाई के दौरान यह ध्यान रखें कि केवल वही शाखाएँ हटाएँ जो एक-दूसरे पर चढ़ी हों या जिनसे नई वृद्धि बाधित हो रही हो। ठंड के चरम महीनों में भारी छंटाई न करें क्योंकि कम तापमान पर पौधों के घाव जल्दी नहीं भरते और वहां फफूंद लगने की संभावना रहती है। फरवरी-मार्च में तापमान बढ़ने पर हल्की नई छंटाई कर सकते हैं जिससे नई कलियों की वृद्धि समान रूप से हो।
छंटाई के बाद सभी सूखे हिस्सों को खेत से बाहर निकालकर जला देना चाहिए ताकि रोगजनक तत्व खेत में न रहें। प्रत्येक पौधे के बाद औज़ारों को फिनायल या 70 प्रतिशत अल्कोहल से साफ करें ताकि संक्रमण अगले पौधे में न फैले।
पोषण और उर्वरक प्रबंधन
सर्दियों के दौरान पौधों की पोषक तत्वों की मांग बहुत कम रहती है, इसलिए इस अवधि में अधिक नाइट्रोजन देने से कोमल नई शाखाएँ निकलती हैं जो ठंड में क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। नवंबर माह में प्रत्येक पौधे के चारों ओर लगभग पाँच किलो सड़ी गोबर की खाद और एक किलो वर्मी कम्पोस्ट डालना पर्याप्त रहता है। इससे मिट्टी में सूक्ष्मजीव सक्रिय रहते हैं और धीरे-धीरे पोषक तत्व पौधे को मिलते रहते हैं।
ठंड सहनशीलता बढ़ाने के लिए हल्की मात्रा में पोटाश देना लाभकारी होता है। किसान प्रति पौधा लगभग 50–60 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश ड्रिप से या सिंचाई के साथ दे सकते हैं। महीने में एक बार 0.2 प्रतिशत पोटाशियम नाइट्रेट का फोलियर स्प्रे करने से पौधे के ऊतक मजबूत होते हैं और ठंड से होने वाले नुकसान की संभावना कम होती है।
कीट और रोगों की पहचान और नियंत्रण
सर्दियों में कीटों की गतिविधि सामान्यतः कम हो जाती है, परंतु नमी और ठंड के कारण फफूंदजनित रोग बढ़ सकते हैं। किसानों को हर 10–12 दिन में पौधों की जांच करनी चाहिए। यदि तनों पर काले भूरे धब्बे, नरम गीले घाव या तनों का गलना दिखाई दे तो यह फ्यूजेरियम या फाइटोफ्थोरा रोग का संकेत है। ऐसे हिस्से तुरंत काटकर खेत से बाहर नष्ट करें।
यदि पौधों पर छोटे गोल धब्बे पीले घेरे के साथ दिखाई दें, तो यह एन्थ्रेक्नोज रोग हो सकता है। इसे रोकने के लिए 0.3 प्रतिशत कॉपर ऑक्सी क्लोराइड या 0.25 प्रतिशत मैंकोजेब का छिड़काव करें। धब्बे वाली शाखाएँ काटने के बाद पेस्ट लगाना न भूलें।
कीटों में मिलीबग और एफिड सर्दियों में कभी-कभी दिखाई देते हैं, विशेषकर तब जब पौधे के आसपास खरपतवार हो या नमी अधिक हो। इनके लक्षण हैं — पौधों पर सफेद रूई जैसी परत, तनों पर चिपचिपा पदार्थ और चींटियों की आवाजाही। किसान इन कीटों को हटाने के लिए नीम तेल (2 प्रतिशत घोल) का छिड़काव कर सकते हैं या संक्रमित तनों को सूती कपड़े से पोंछ सकते हैं। जैविक नियंत्रण के लिए नीम केक या ट्राइकोडर्मा मिश्रण मिट्टी में देना भी उपयोगी है।
प्रकाश, स्वच्छता और अगले मौसम की तैयारी
ड्रैगन फ्रूट को सर्दियों में भी पर्याप्त धूप की आवश्यकता होती है। पौधों को प्रतिदिन कम से कम छह घंटे सीधी धूप मिले यह सुनिश्चित करें। जिन खेतों में पॉलीथीन कवर लगाया गया है, वहां दोपहर के समय उसे कुछ घंटों के लिए खोल दें ताकि पौधे सूख सकें और फफूंद न बने।
खेत की स्वच्छता सर्दियों में अत्यंत जरूरी है। गिरे हुए फल, सूखे तने या छंटाई का अवशेष खेत में न छोड़ें। इनसे रोग फैलने का खतरा रहता है। खेत की मेड़ों और पौधों के बीच की जगह में खरपतवार न उगने दें क्योंकि यही कीटों के छिपने का स्थान बनता है।
फरवरी-मार्च में जब तापमान बढ़ने लगे, तब पॉलीथीन कवर धीरे-धीरे हटा दें ताकि पौधे खुले वातावरण के अभ्यस्त हो सकें। इस समय सिंचाई की आवृत्ति थोड़ी बढ़ाई जा सकती है। नई कलियों की वृद्धि के समय एनपीके (19:19:19) घुलनशील उर्वरक का 0.2 प्रतिशत घोल छिड़कना पौधे को ऊर्जा देता है और फूल आने की तैयारी शुरू होती है I
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