फसल की खेती (Crop Cultivation)

ड्रैगन फ्रूट खेती की महत्वपूर्ण जानकारी

लेखक: रामअवतार चौधरी 1 एवं आस्था 1, विद्यावाचस्पती बागवानी (फल विज्ञान), राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय,, ग्वालियर- 474011 (मध्यप्रदेश), ramawatarmoond1999@gmail.com

03 जनवरी 2025, भोपाल: ड्रैगन फ्रूट खेती की महत्वपूर्ण जानकारी – ड्रैगन फ्रूट एक उष्णकटिबंधीय फल है जो हाल के वर्षों में तेजी से लोकप्रिय हो गया है। ड्रैगन फ्रूट ‘हिलोसेरियस कैक्टस’ के पादप पर उगता है, जिसे होनोलूलू क्वीन के नाम से भी जाना जाता है, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मिलेंगे। पौधे का नाम ग्रीक शब्द “हाइले” से आया है, जिसका अर्थ है “वुडी,” और लैटिन शब्द “सेरेस“, जिसका अर्थ है “मोम” बाहर से, फल गुलाबी, लाल या पीले रंग के बल्ब के रूप में दिखाई देता है, जिसके चारों ओर स्पाइक जैसी हरी पत्तियाँ आग की लपटों की तरह चमकती हैं। इसे खोलकर काटने पर अंदर काले बीज वाले मांसल सफेद पदार्थ को खाने के लिए उपयोग में लिया जाता हैं। यह फल लाल और पीले रंग वाली किस्मों में आता है। कैक्टस मूल रूप से दक्षिणी मेक्सिको और दक्षिण और मध्य अमेरिका में विकसित हुआ। ड्रैगन फ्रूट कैक्टस की विभिन्न प्रजातियों का फल है। इसमें कई एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन और खनिज होते हैं जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं। जो स्वस्थ शरीर के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। ये पौधा दक्षिणी मेक्सिको और मध्य अमेरिका के मूल निवासी है। इसे कई नामों से जाना जाता है, जिनमें पपीता, पिठ्या और स्ट्रॉबेरी नाशपाती शामिल हैं। ड्रैगन फ्रूट दिखने में भले ही आकर्षक लगे, लेकिन इसका स्वाद दूसरे फलों की तरह ही होता है। इसका स्वाद कीवी और नाशपाती के बीच थोड़ा मीठे के रूप में वर्णित किया जा सकता है।

पोषण तत्व:-

ड्रैगन फ्रूट में कम मात्रा में कई पोषक तत्व होते हैं। यह आयरन, मैग्रीशियम और फाइबर का भी एक अच्छा स्रोत है। 100 ग्राम ड्रैगन फ्रूट में निम्न पोषक तत्व कैलोरी 60, प्रोटीन 1.2 ग्राम, कार्बोहाइड 13 ग्राम, फाइबर 3 ग्राम, विटामिन सी पाए जाते है। उच्च मात्रा में फाइबर और मैग्रीशियम के साथ-साथ बेहद कम कैलोरी सामग्री से भरपूर, ड्रैगन फ्रूट को अत्यधिक पोषक तत्वों से भरपूर फल माना जा सकता है।

ड्रैगन फ्रूट फल के रूप में खेती की जाती है। ड्रैगन फ्रूट में कीवी की तरह बीज होते हैं। इसके फल को खाद्य पदार्थों में भी प्रयोग किया जाता है। जिसमें पौधों को सजावट के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इसके फल से जैम, जेली, आइसक्रीम, जूस और वाइन बनाया जाता है मधुमेह और कोलेस्ट्रॉल को ड्रैगन फ्रूट से नियंत्रित कर सकते हैं।

ड्रैगन फ्रूट किसी भी उपजाऊ मिट्टी में खेती की जा सकती है। इसकी खेती में उचित जल निकासी वाली भूमि होनी चाहिए, क्योंकि जल भराव पौधों को कई तरह के रोगों से पीड़ित करता है। भूमि का pH मान 6-7 के बीच होना चाहिए। इसके पौधों को गर्म मौसम की जरूरत होती है, तथा सामान्य बारिश भी उपयुक्त होती है। किन्तु सर्दियों में गिरने वाला पाला पौधों को हानि पहुंचाता है। ड्रैगन फ्रूट के पौधों को आरम्भ में 25 डिग्री तापमान तथा पौधों पर फल बनने के दौरान 30 से 35 डिग्री तापमान चाहिए होता है। इसके पौधे न्यूनतम 7 डिग्री तथा अधिकतम 40 डिग्री तापमान पर ही ठीक से विकास कर सकते है।

ड्रैगन फ्रूट के स्वास्थ्य लाभ:-

डायबिटीज:- इस रोग को सबसे खतरनाक रोगो में गिना जाता है। ड्रैगन फ्रूट के फल में नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट के अलावा फेनोलिक एसिड, फाइबर, फ्लेवोनोइड और एस्कॉर्बिक एसिड की पर्याप्त मात्रा पायी जाती है। जो शरीर में ब्लड शुगर को बढ़ने से रोकता है। जिन लोगो को डायबिटीज की समस्या नहीं है। वह इस फल का सेवन कर डायबटीज़ के शिकार होने से बच सकते है।

कैंसर के रोग में:- इसके फलो में एंटीऑक्सीडेंट, एंटीट्यूमर और एंटी इंफ्लेमेटरी के गुण पर्याप्त मात्रा में पाए जाते है। कई रिसर्च में यह पता चला है, की ड्रैगन फ्रूट में मौजूद खास गुण महिलाओ में ब्रैस्ट कैंसर के होने वाले खतरे को कम करता है।

हृदय की समस्याओ में लाभकारीः- ड्रैगन फ्रूट का फल हृदय संबंधित समस्याओ में भी सहयता प्रदान करता है। जब शरीर में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस का प्रभाव बढ़ जाता है, तब डॉक्टर एंटीऑक्सीडेंट गुण की मात्रा को पूरा करने के लिए फल और सब्जी खाने की सलाह देते है। इस दौरान ड्रैगन फ्रूट के फल का सेवन आपके लिए अधिक लाभकारी है।

कोलेस्ट्रॉलः- वर्तमान समय में कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना एक आम समस्या हो गयी है। शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाने पर कई तरह की समस्याए होने लगती है। इसमें हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी घातक बीमारी भी हो सकती है। ड्रैगन फ्रूट का सेवन कोलेस्ट्रॉल में लाभकारी माना जाता है।

गठिया में सहायकः- गठिया या आर्थराइटिस एक ऐसी समस्या है, जो शरीर के जोड़ो को विशेष रूप से प्रभावित करता है। यह बीमारी जोड़ो में दर्द और सूजन को बढ़ा देती है, जिससे रोगी को उठने बैठने में अधिक तकलीफ का सामना करना पड़ता है। ड्रैगन फ्रूट ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को बढ़ने से रोकता है, क्योकि यह गठिया का एक मुख्य कारण भी है। इसलिए गठिया से परेशान व्यक्तियों को ड्रैगन फ्रूट का सेवन करना चाहिए।

इम्युनिटी बढ़ाने के लिए:- हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति (Immunity) हमें कई तरह की बीमारियों से लड़ने में मदद करती है। यह इम्यून सिस्टम शरीर के खास अंग, केमिकल और सेल्स की सहायता से बनता है। जो हमारे शरीर में आने वाले संक्रमणों को नष्ट करने में सहायता प्रदान करता है, ड्रैगन फ्रूट हमारे शरीर की इम्यून सिस्टम को भी मजबूत करता है।

पेट संबंधी विकारो में:- ड्रैगन फ्रूट में ओलिगोसैकराइड (एक प्रकार का केमिकल) के प्रीबायोटिक गुण पाए जाते है। जो आंतो में मौजूद स्वस्थ बैक्टीरिया की मात्रा को बड़ाता है, जिससे पाचन शक्ति मजबूत होती है। इसलिए यह फल पेट के लिए भी अच्छा होता है।

डेंगू में लाभकारी:- डेंगू एक खतरनाक बीमारी होती है, जिससे कभी-कभी लोगो की कुछ ही समय में अधिक हालत खराब हो जाती है। डेंगू का रोग शरीर को अधिक तेजी से हानि पहुंचाता है। ड्रैगन फ्रूट के बीजो में एंटीवायरल और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते है, जो डेंगू के लक्षण को तेजी से कम करने में मदद करता है।फ्रूट के बीजो में एंटीवायरल और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते है, जो डेंगू के लक्षण को तेजी से कम करने में मदद करता है।

ड्रैगन की उन्नत किस्में:

  1. लाल गुलाब ड्रैगन फ्रूटः भारत में यह प्रजाति बहुत दुर्लभ है। इसके पौधों से निकलने वाले फलों का आंतरिक और ऊपरी भाग गुलाबी रंग का होता है। यह फल अधिक स्वादिष्ट है। इस किस्म का बाजार भाव अधिक है।
  2. सफ़ेद ड्रैगन फ्रूटः ड्रैगन फ्रूट की इस किस्म को भारत में अधिक मात्रा में उगाया जाता है। क्योकि इसका पौधों आसानी से प्राप्त हो जाता है। इसके पौधों पर निकलने वाले फलो का भीतरी भाग सफ़ेद और छोटे-छोटे बीजो का रंग काला होता है। इस क्रिस्म का बाज़ारी भाव अन्य किस्मों से थोड़ा कम होता है।
  3. पीला ड्रैगन फ्रूटः इस क़िस्म का उत्पादन भी भारत में बहुत ही कम होता है। इसमें पौधों पर आने वाले फलो का बाहरी रंग पीला और आंतरिक रंग सफ़ेद होता है। यह फल स्वाद में काफी अच्छा होता है, जिसकी बाज़ारी कीमत भी सबसे अधिक होती है।

खेत की तैयारी, उवर्रक:- फसल को खेत में लगाने से पूर्व खेत को ठीक तरह से तैयार कर लेना होता है। खेत की मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर दी जाती है, इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है। जिससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है, पाटा लगाकर समतल कर दिया जाता है। समतल खेत में पौधों की रोपाई के लिए गड्ढो को तैयार कर लिया जाता है। इन गड्डो को पंक्तियों में तैयार किया जाता है, जिसमे प्रत्येक गड्ढे को तीन मीटर की दूरी रखी जाती है। यह सभी गड्ढे डेढ़ फीट गहरे और 4 फ़ीट चौड़े व्यास के होने चाहिए। गड्डो की पंक्तियों के मध्य चार मीटर की दूरी होनी चाहिए।

गड्डे बनाने के पश्चात् गड्डो को उचित मात्रा में उवर्रक देना होता है, जिसके लिए प्राकृतिक और रासायनिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए 10-15 Kg पुरानी गोबर की खाद के साथ 50-70 Kg एन.पी. के. की मात्रा को मिट्टी में अच्छे से मिलाकर गड्डो में भर दिया जाता है। इसके बाद गड्डो की सिंचाई कर दी जाती है। उवर्रक की इस मात्रा को तीन वर्ष तक पौधों को दे।

सपोर्टिंग सिस्टम तैयार करने का तरीका:- ड्रैगन फ्रूट के पौधों से 20-25 वर्ष के लम्बे समय तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। किन्तु इसके पौधों को तैयार होने के लिए खेत में सपोर्ट की आवश्यकता होती है। जिसमे अधिक खर्च भी आता है। पौधों को सपोर्ट देने के लिए सीमेंट के 7 से 8 फीट लम्बे खम्भों को तैयार कर लिया जाता है। जब पौधा बड़ा हो जाये तो उन्हें, इन खम्भों के सहारे बांध दे, और निकलने वाली शाखाओ को पिल्लर के चारो और लटका दिया जाता है। एक हेक्टेयर के खेत में करीब 1200 पिलर्स लगाने पड़ते है।

पौध की रोपाई का तरीका और समय:- रोपाई बीज और पौध दोनों ही तरीको से की जा सकती है। किन्तु पौध के माध्यम से पौधों की रोपाई करना सबसे अच्छा होता है। पौध के माध्यम से की गयी रोपाई के पश्चात पौधा पैदावार देने में दो वर्ष का समय ले लेता है। यदि आप रोपाई बीज के रूप में करना चाहते है, तो आपको पैदावार प्राप्त करने में 6 से 7 वर्ष तक इंतजार करना पड़ सकता है।

सिंचाई:– ड्रैगन फ्रूट के पौधों को कम ही पानी की आवश्यकता होती है। गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को सप्ताह में एक बार तथा सर्दियों में 15 दिन में एक बार पानी देना होता है। बारिश के मौसम में समय पर बारिश न होने पर ही पौधों की सिंचाई करे। जब इसके पौधों पर फूल आना शुरू कर दे उस दौरान पौधों को पानी बिल्कुल न दे, तथा खेत में फल बनने के दौरान नमी बनाये रखे। इससे अच्छी गुणवत्ता वाले फल प्राप्त होते है। पौधों की सिंचाई के लिए ड्रिप विधि का इस्तेमाल सबसे अच्छा माना जाता है।

खरपतवार नियंत्रण:- इसके लिए पौधों की निराई गुड़ाई की जाती है। इसकी पहली गुड़ाई पौध रोपाई के एक माह पश्चात् की जाती है, तथा बाद की गुडाइयो को खेत में खरपतवार दिखाई देने पर करे। ड्रैगन फ्रूट की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक विधि का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

रोग:- ड्रैगन फ्रूट की फसल में अभी तक किसी तरह के रोग देखने को नहीं मिले है। किन्तु फल तुड़ाई के पश्चात् शाखाओ से निकले रस पर चीटिया लग जाती है। इन चीटियों के आक्रमण को रोकने के लिए नीम की पत्ती या नीम के तेल का छिड़काव पौधों पर करे ।

फलो की तुड़ाई:- पौध के रूप में की गयी रोपाई से ड्रैगन के पौधे दो वर्ष पश्चात् पैदावार देना आरम्भ कर देते है। मई के महीने में इसके पौधों पर फूल निकलने लगते है, तथा दिसंबर तक फलो का उत्पादन होता रहता है। इसके फल 5 से 6 तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है। जब फलो का रंग हरे से गुलाबी हो जाये तब उन्हें तोड़ ले। पूर्ण रूप से पका फल लाल रंग का दिखाई देता है।

पैदावार और लाभ:- ड्रैगन फ्रूट की पहली फसल से 400 से 500 Kg का उत्पादन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्राप्त हो जाता है। किन्तु जब पौधा 4 से 5 वर्ष पुराना हो जाता है, तो यदि उत्पादन बढ़कर 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर हो जाता है। ड्रैगन फ्रूट के एक फल का वजन 400 से 800 gm तक होता है। जिसका बाज़ारी भाव 150 से 300 रूपए प्रति किलो तक होता है। किसान भाई इसकी पहली फसल से 60,000 से लेकर डेढ़ लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते है, तथा चार से पांच वर्ष पुराने पौधों से अधिक पैदावार प्राप्त कर 30 लाख तक की कमाई प्रति वर्ष कर किसान भाई अधिक मात्रा में लाभ कमा सकते हैं।

सारांश:- विश्व और भारत में ड्रैगन फ्रूट की बढ़ती मांग किसानो की आय में बढोत्तरी का एक बहुत अच्छा विकल्प है। उत्पादकों के लिए लाभप्रदता और मौसम में लगातार परिवर्तन दुनिया भर में ड्रैगन फ्रूट की खेती की ओर ध्यान आकर्षित करती है। परन्तु अभी भी इस फल की खेती से जुडी जानकारी एवं फायदे सीमित है। किसान अन्य फलों की खेती के बारे में जागरूक है, वहीं ड्रैगन फ्रूट की खेती से वंचित है। आने वाले समय में इस फल की कीमत में गिरावट की जरुरत है, तभी जाकर यह आम आदमी की पहुंच में होगा। इस खेती में प्रारंभिक निवेश अधिक है, लेकिन यह एक साल के भीतर तेजी से रिटर्न देता है। फलों की लाल और गुलाबी किस्मे बेहतर उपज देती है।

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