धान को बचाएं शीथ ब्लाइट से
धान को बचाएं शीथ ब्लाइट से – चावल महत्वपूर्ण खाद्य फसलों में से एक है और दुनिया की लगभग आधी आबादी के लिए दैनिक आहार का एक अनिवार्य हिस्सा है, भारत दुनिया में धान का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जो धान की खेती के तहत लगभग 44 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करता है, जो दुनिया के धान उत्पादन का 22 प्रतिशत हिस्सा है परंतु दुनिया भर में चावल का उत्पादन विभिन्न जैविक और अजैविक तनाव से प्रभावित है।
महत्वपूर्ण खबर : रसायनों की खपत कम क्यों ?
जैविक तनावों के बीच, बीमारियों/रोगों को धान के उत्पादन के लिए प्रमुख बाधाओं के रूप में माना जाता है क्योंकि वार्षिक रूप में 10 से 30 प्रतिशत चावल की फसल रोगों के संक्रमण के कारण खो दी जाती है। विभिन्न रोगों में से, चावल में सबसे आम और गंभीर रोग है शीथ ब्लाइट/पर्णच्छंद अंगमारी जो कि राइज़ोक्टोनिया सोलानी फफूंद के कारण होता है और विशेष रूप से बड़े पैमाने पर यूएसए, जापान, चीन और भारत में उपज नुकसान का कारण बनता है।
यह रोग अनाज की महत्वपूर्ण उपज और गुणवत्ता के नुकसान का कारण बनता है और अधिकांश अनुकूल वातावरण के तहत 50 प्रतिशत तक उपज कम करने में सक्षम है।
इस रोग का इतिहास:
शीथ ब्लाइट को सबसे पहले जापान में 1910 में आई. मियाके द्वारा रिपोर्ट किया गया था। तब से, यह रोग दुनिया के लगभग सभी चावल उगाने वाले क्षेत्रों में पाया गया है। भारत में, ई.जे.बटलर (1918) ने पहली बार शीथ ब्लाइट रोग पर ध्यान दिया, जिसमें गन्ने की बेन्डिड स्केलेरोटियल बीमारी के समान लक्षण थे। बाद में, पंजाब और गुरदासपुर जिले में इस बीमारी की उपस्थिति की रिपोर्ट सी.एस. पारासर और डी.एस.चहल (1963) ने दी।
यह बीमारी पंजाब, हरियाणा, पूर्वी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, जम्मू और कश्मीर, मध्य प्रदेश, असम, मणिपुर और त्रिपुरा में एक प्रमुख उत्पादन बाधा बन गई है क्योंकि उच्च उपज वाले चावल की किस्मों की व्यापक प्रसार खेती, रसायनिक उर्वरकों पर भारी निर्भरता और जलवायु में स्पष्ट परिवर्तन के कारण यह बीमारी जबरदस्त रूप ले रही है।
रोग के लक्षण:
पत्ती की शीथ पर प्राथमिक संक्रमण के कारण इस बीमारी को शीथ ब्लाइट नाम दिया गया था। शुरू में इसके प्रकोप से पत्ती के शीथ पर 2-3 सेंटीमीटर लम्बे हरे से भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, धब्बे/चित्तियां पहले खेतों में जल रेखा के निकट प्रकट होती है, तनों व तनों पर लिपटी बाहरी पर्णच्छेद पर अनियमित आकार के मटमैले सफेद गहरे धब्बों के रूप में फुटाव से गाभे की अवस्था के बीच दिखाई देते हैं। जिनके किनारे गहरे भूरे तथा बैंगनी रंग के होते हैं। बाद में इन धब्बों का रंग पुआल जैसा होता है। अधिक प्रकोप की स्थिति में रोग सबसे ऊपर की पत्ती (फलैग लीफ) तक पहुँच जाता है। रोगग्रस्त पौधे की बालियों में दाने हल्के व पूरी तरह नहीं भरते। प्राय: इस रोग के लक्षण शुरु में मेढ़ों के आसपास व खेतों में उन जगहों पर पाए जाते हैं जहाँ खरपतवार हो। प्रभावित पौधों की बालियों में दानें पूरी तरह नहीं भरते तथा हल्का सा झटका लगने पर नीचे गिर जाते हैं। अनुकूल परिस्थितियों में, संक्रमण तेजी से ऊपरी पौधे के हिस्सों और पड़ोसी पौधों में फैलता है और अनाज के खराब दाने भरने का परिणाम बनता है। अधिक प्रकोप में पौधे की सारी पत्तियां अंगमारी से ग्रस्त हो जाती हैं। उग्र अवस्था में रोग तने के ऊपर की ओर फैल जाता है व कभी-कभी धब्बों पर सफेद रंग का कवकजाल भी दिखाई पड़ता है। अंतत: पौधा रोगग्रस्त होकर झुलस जाता है।
रोगजनक/पैथोजन का अस्तित्व और प्रसार:
शीथ ब्लाइट धान की एक फफूंद जनित बीमारी है, जो कि मृदा जनित फफूंद राइज़ोक्टोनिया सोलानी के कारण होती है (टेलोमार्पिक स्टेज: थानाटेफोरस क्यूकुमेरिस (फ्रैंक) डोनक) और यह मेजबान पौधों के मलबे में स्क्लेरोटिया या मायसेलिया के रूप में जीवित रहता है। फफूंद के स्केलेरोटिया संक्रमित शीथ में बनते हैं और सबसे आम तौर पर बूटिंग और हैडिंग् चरणों में निकलते हैं, स्केलेरोटिया धान के खेतों में पानी की सतह पर तैरता है और संक्रमण प्रक्रिया के दौरान संक्रमण कुशन या एप्रेसोरिया बनाता है और पर्णच्छंद पर अंकुरित होता है तथा पौधों में रोग के संक्रमण का कारण बनता है। माइसेलियम युवा होने पर सफेद होता है, लेकिन उम्र के साथ पीले या हल्के भूरे रंग का हो जाता है, लंबे बहु-न्यूक्लियेट कोशिकाओं का उत्पादन करता है जो मुख्य हाइप पर समकोण पर बढ़ते हैं।
फसल के मौसम में या फसल के दौरान, स्क्लेरोटिया जमीन पर गिर जाता है और एक फसल के मौसम से दूसरे तक जीवित रहने के ढांचे के रूप में काम करता है। वे धान उत्पादन क्षेत्रों में 2 साल तक मिट्टी में लंबे समय तक जीवित रहते हैं, और अक्सर समय के साथ खेत में जमा होते रहते हैं। खेत का पानी और सिंचाई स्क्लेरोटिया और संक्रमित पौधे के मलबे के फैलाव में मदद करते हैं। संक्रमण सबसे जल्दी फैलता है जब अतिसंवेदनशील किस्मों को अनुकूल परिस्थितियों जैसे गर्म तापमान (28 से 32 डिग्री सेल्सियस), उच्च आर्द्रता (95 प्रतिशत या अधिक) के तहत उगाया जाता है।
यह रोग क्यों और कहाँ होता है :
शीथ ब्लाइट धान उत्पादन के लिए एक बढ़ती हुई चिंता है, विशेष रूप से तीव्र उत्पादन प्रणालियों में। शीथ ब्लाइट उच्च तापमान (28-32 डिग्री सेल्सियस), नाइट्रोजन उर्वरक के उच्च स्तर और 85-100 प्रतिशत से आर्द्रता वाले क्षेत्रों में होता है। बारिश के मौसम में पौधे शीथ ब्लाइट की चपेट में आ जाते हैं। उच्च बोने की दर या पौधों की करीबी दूरी, फसल की घनी रोपाई, मिट्टी में बीमारी, स्केलेरोटिया या पानी में तैरने वाले सक्रमण शरीर, और अधिक उपज देने वाली उन्नत किस्मों का बढऩा भी रोग के विकास का पक्षधर है।