फसल की खेती (Crop Cultivation)

रबी का आगमन

रबी का आगमन – खरीफ मौसम समाप्ति पर है और एक बार फिर हम रबी की देहली•ा पर खड़े हैं। आंशिक क्षेत्रों को छोड़कर कुल मिलाकर मानसून की स्थिति ठीक ही रही। सितम्बर माह की वर्षा से खरीफ-रबी फसल दोनों को लाभ मिलेगा। देश के कुछ राज्यों में मानसून के चक्कर के कारण खरीफ का लक्षित उत्पादन तो मिलने से रहा अब इसकी भरपाई का जरिया केवल एक है जिसे हम रबी कहते हैं। खरीफ मौसम की फसलों से कम उत्पादन को ध्यान में रखते हुए रबी की प्रमुख फसल गेहूं पर हमें विशेष ध्यान देना होगा ताकि अधिक से अधिक क्षेत्र में इसे लगाकर रखरखाव करके लक्षित उत्पादन हासिल किया जा सके। गेहूं देश में तीन-चार स्थितियों में लगाया जाता है।

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एक खरीफ पड़ती के खेतों को तैयार करके उसमें गेहूं की बुआई की जाती है दूसरी स्थिति में खरीफ फसल काटने के उपरांत पलेवा देकर खेत तैयार करके बोनी की जाये इसमें भी दो स्थितियां होती हंै सीमित सिंचाई और भरपूर सिंचाई, तीसरी अवस्था धान के खाली खेतों में बिना तैयारी के जीरो टिलेज करके गेहूं की बोनी की जाये और चौथी अवस्था में देरी से गेहूं की बोनी की जाती है। इस तरह हर स्थिति मेें बुआई हेतु कुछ विकसित तकनीकी है जिनका यदि पालन किया जाये तो अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। पड़ती खेत की तैयारी में की गई कोताही भारी पड़ सकती है इसकी बुआई के बाद नमी संरक्षण का लक्ष्य सामने होना चाहिये।

सीमित सिंचाई में दो पानी की क्रांतिक अवस्था मालूम होना चाहिये साथ ही इसमें उर्वरक उपयोग को भी महत्व देना होगा। दोनों स्थितियों में बुआई हेतु जातियां उपलब्ध हैं उन्हीं जातियों का उपयोग हो असिंचित की बोनी 30 अक्टूबर तक तो सीमित पानी की 15 नवम्बर तक पूरी की जाये। भरपूर पानी की स्थिति के लिये अलग जातियों की सिफारिश है जिनकी बुआई भरपूर उर्वरक के साथ 30 नवम्बर के आसपास तक समाप्त कर दी जानी चाहिये। रहा सवाल देरी से बोनी का तो ध्यान रहे 25 दिसम्बर आखिरी तारीख मानी जाये अन्यथा प्रतिदिन की देरी कुछ किलो उत्पादन में कमी करती जायेगी। उल्लेखनीय है कि गेहूं को अच्छी तरह से पलने-पुसने पकने के लिये कम से कम 90 दिन ठंडी की आवश्यकता है और देरी से बोये गेहूं के लिये 90 ठंडे दिनों में कमी आना साधारण सी बात हो सकती है। इस कारण इस पर ध्यान दिया जाये। बुआई पूर्व बीज का उपचार कवकनाशी कल्चर पी.एस.बी. से जरूरी होगा तथा गेहूं-धान फसल में जीरो टिलेज विधि को अपनाना अत्यंत महत्वपूर्ण बात होगी। ताकि खेत की तैयारी में लगने वाले समय,श्रम तथा अर्थ तीनों की बचत हो सके।

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गेहूं की बुआई कतारों में बुआई उपरांत ‘बन्डफारमर’ का उपयोग करके सिंचाई की पुख्ता व्यवस्था की जाना चाहिये ताकि जल के अपव्यय पर अंकुश लग सके महंगे उर्वरकों की स्थापना भूमि के अंदर बीज के नीचे तथा बुआई के 35 दिनों के भीतर ही खरपतवारों से निजात पाने के लिये उचित प्रयास भी किया जाना चाहिये। गेहूं के बीज की मात्रा आज भी सिफारिश से दुगनी कहीं-कहीं तिगुनी डाली जाती है लालच अधिक पौध संख्या का होता है परंतु परिणाम बिल्कुल उल्टे होते हैं सीमित क्षेत्र में अधिक पौध संख्या होने से फसल कमजोर बनती है। सिफारिश के अनुरूप ही बीज दर का उपयोग किया जाकर स्वयं को, देश को नुकसान से रोकें तो आईये रबी के राजा गेहूं की आवभगत के लिये कमर कस लें। क्योंकि गेहूं हमारी रोजमर्रा की जरूरत है, जीवन है, हमारी अर्थशास्त्र की रीढ़ की हड्डी है।

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