फसल की खेती (Crop Cultivation)

पीले मटर की खेती अधिक फायदा देती

भारत में रबी दलहन परिदृश्य

  • डॉ. ए. के. शिवहरे, संयुक्त निदेशक
    दलहन निदेशालय, केन्द्रीय कृषि मंत्रालय, भोपाल

9 नवंबर 2021,  पीले मटर की खेती अधिक फायदा देती – मटर की खेती सब्जी और दाल के लिये उगाई जाती है। मटर दाल की आवश्यकता की पूर्ति के लिये पीले मटर का उत्पादन करना अति महत्वपूर्ण है, जिसका प्रयोग दाल एवं बेसन के रूप में अधिक किया जाता है। पीला मटर की खेती वर्षा आधारित क्षेत्र में अधिक लाभप्रद है।

फसल स्तर

मटर विश्व में बीन व चने के बाद तीसरी मुख्य दलहन फसल है और भरत में रबी दलहन में चना व मसूर के बाद तीसरी मुख्य फसल है। क्षेत्रफल की दृृष्टि से भारत विश्व में चौथे स्थान (10.53%) व उत्पादन में पाँचवे (6.96%) स्थान पर आता है। (FAO Stat., 2014).

12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-2015) मे मटर का कुल क्षेत्रफल 11.50 लाख हे. व उत्पादन लगभग 10.36 लाख टन है। उत्तर प्रदेश मुख्य मटर की खेती करने वाला राज्य है। यह अकेला लगभग 49 प्रतिशत भागीदारी मूल उत्पादन में रखता है। उतर प्रदेश के अतिरिक्त मध्य प्रदेश, बिहार व महाराष्ट्र राज्य मुख्य मटर उत्पादक राज्य हैं। (डीईएस 2015.16)।

उपज अन्तर

सामान्यत: यह देखा गया है कि अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन की पैदावार व स्थानीय किस्मों की उपज में लगभग 24 प्रतिशत का अन्तर है। यह अन्तर कम करने के लिये अनुसंधान संस्थानों व कृषि विज्ञान केन्द्र की अनुशंसा के अनुसार उन्नत कृषि तकनीक को अपनाना चाहिए।

भूमि का चुनाव

मटर की खेती सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है परंतु अधिक उत्पादन हेतु दोमट और बलुई भूमि जिसका पी.एच.मान 6-7.5 हो तो अधिक उपयुक्त होता है।

भूमि की तैयारी

खरीफ फसल की कटाई के पश्चात एक गहरी जुताई कर उसके बाद दो जुताई कल्टीवेटर या रोटावेटर से कर खेत को पाटा चलाकर समतल और भुरभुरा तैयार कर लें। दीमक, तना मक्खी एवं लीफ माइनर की समस्या होने पर अंतिम जुताई के समय फोरेट 10जी 10-12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर खेत में मिलाकर बुवाई करें ।
बुआई समय: 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर
बीज मात्रा: ऊंचाई वाली किस्म – 70-80 कि.ग्रा./हे.
बौनी किस्में – 100 कि.ग्रा./हे.

बुआई की विधि

बुवाई कतार में नारी हल, सीडड्रिल, सीड कम फर्टीड्रिल से करें।
बोने की गहराई: 4 से 5 से.मी.
कतार से कतार एवं पौधों से पौधों की दूरी: ऊंचाई$ वाली किस्म 30-45 से.मी.
बौनी किस्म 22.5-10 से.मी.

बीजोपचार

बीज जनित रोगों से बचाव हेतु फफूंदनाशक दवा थायरम+कार्बेन्डाजिम (2$1) 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज और रस चूसक कीटों से बचाव हेतु थायोमिथाक्साम 3 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज दर से उपचार करें उसके बाद वायुमण्डलीय नत्रजन के स्थिरीकरण के लिये राइजोबियम लेग्यूमीनोसोरम और भूमि में अघुलनशील फास्फोरस को घुलनशील अवस्था में परिवर्तन करने हेतु पी.एस.बी. कल्चर 5-10 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से उपचार करें। जैव उर्वरकों को 50 ग्राम गुड़ को आधा लीटर पानी में गुनगुना कर ठंडा कर मिलाकर बीज उपचारित करें ।

उर्वरक प्रबंधन

ऊँचाई वाली किस्मों के लिए नत्रजन की मात्रा 20-30 कि.गा्र./हे. व बोनी किस्मों के लिए 40 कि.ग्रा. नत्रजन/हे. आधार उर्वरक के रूप में दें। फास्फोरस व पोटाश की मात्रा को भी आधार उर्वरक के रूप में मृदा परीक्षण के आधार पर दें। अगर मृदा में फास्फोरस व पोटाश की कमी हो तो ऊंचाई वाली किस्मों के लिए 40 कि.ग्रा./हे. फास्फोरस व बोनी किस्मों के लिए 40-60 कि.ग्रा./हे. फास्फोरस दें तथा पोटाश की मात्रा 20-30 कि.ग्रा. व सल्फर 20 कि.ग्रा. /हे. की दर से दें। सभी उर्वरकों के मिश्रण को कतार से 4-5 से.मी. दूरी पर व बीज से नीचे दें। जिन मृदाओं में जिंक की कमी हो उन मृदाओं में 15 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट/हे. दें।

सिंचाई

मृदा में उपलब्ध नमी व शरद कालीन वर्षा के आधार पर फसल को 1-2 सिंचाई की आवश्यकता प्रारंभिक अवस्था मेें होती है। प्रथम सिंचाई 45 दिन पर व दूसरी सिंचाई अगर आवश्यक हो तो फली भरते समय पर करें।

कटाई एवं गहाई

मटर की कटाई का कार्य फसल की परिपक्वता के पश्चात् करें। जब बीज में 15 प्रतिशत तक नमी रहे उस स्थिति में गहाई कार्य करें।

 

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