धान की बाली खाली न रह जाए, पूसा वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी और उपाय
23 सितम्बर 2025, नई दिल्ली: धान की बाली खाली न रह जाए, पूसा वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी और उपाय – खरीफ सीजन की रीढ़ मानी जाने वाली धान की फसल इस बार अच्छी बरसात की चपेट में फंस गई है। पूसा कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञों ने किसानों को चेतावनी दी है कि जननिक अवस्था में पहुंच चुकी धान की बालियां बारिश के थपेड़ों से खतरे में हैं। परागण प्रक्रिया बाधित होने से दाने खाली रह सकते हैं, जो सफेद से काले होकर पैदावार को चोट पहुंचा देंगे। लेकिन घबराएं नहीं आज हम आपको रोग-कीट प्रबंधन से लेकर सिंचाई तक की सटीक सलाह दे रहे हैं, ताकि आपकी मेहनत रंग लाए।
जननिक अवस्था: बाली निकलने का मतलब और बारिश का खतरा
धान की फसल पूरे भारत में उगाई जाती है और सितंबर के आखिरी हफ्ते में ज्यादातर खेतों में बाली निकलना शुरू हो चुका है। इसे जननिक अवस्था कहते हैं, जब पौधे के अंदर बालियां बननी शुरू होती हैं। असल में, ये एक महीना पहले ही अंदर विकसित हो जाती हैं। ‘हेडिंग’ यानी बाली निकलने के दिन ही फूल खिलने लगते हैं और परागण प्रक्रिया शुरू हो जाती है। बाली ऊपरी पत्ती से बाहर आने में तीन दिन लगते हैं – पहले दिन ऊपरी तिहाई, दूसरे दिन मध्य भाग और तीसरे दिन निचला हिस्सा।
लेकिन इस साल की लगातार बरसात ने खेल बिगाड़ दिया है। बाली निकलते ही अगर बारिश हो जाए, तो फूलों के पराग कण झड़ जाते हैं। नतीजा? दाने खाली रह जाते हैं शुरू में सफेद दिखते हैं, फिर कवक या फफूंदी लगने से काले पड़ जाते हैं। किसानों की शिकायतें आ रही हैं कि ‘दाने काले क्यों हो रहे हैं?’ लेकिन ये रोग नहीं, बल्कि प्राकृतिक समस्या है। एक बाली में 3-4 से लेकर 10 तक दाने प्रभावित हो सकते हैं। सलाह: घबराएं नहीं, इसका कोई इलाज नहीं। दुकानदार दवाई बेचने को कहें तो मना कर दें। बस, फसल की निगरानी बढ़ाएं।
गर्दन तोड़ रोग: बाली झुक रही हो तो तुरंत एक्शन लें
जननिक अवस्था में सबसे बड़ा खतरा ‘नेक ब्लास्ट’ या गर्दन तोड़ रोग है। यहां बाली तने से जुड़ने वाली गर्दन गल जाती है, बाली टूटकर लटक जाती है। पूसा के वैज्ञानिकों की सलाह है: रोज सुबह-शाम खेत का निरिक्षण करें। अगर कोई बाली झुकी नजर आए, तो तुरंत बाविस्टिन (1 ग्राम प्रति लीटर पानी) का घोल बनाकर छिड़काव करें। जल्दी पहचान ही इससे बचाव का सबसे बड़ा हथियार है।
शीत बिलाइट: पत्ते सूखने से दाने खाली, नेटिवो से करें मुकाबला
दूसरी समस्या है शीत बिलाइट। इसमें पत्ते का आवरण तने से लिपटा रहता है और गहरे भूरे धब्बे बन जाते हैं, जो नीचे की ओर फैलते हैं। पत्ता-पौधा सूख जाता है, दाने खाली रह जाते हैं। उपाय? नेटिवो दवाई (1 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें। ये फसल को मजबूती देगा और नुकसान रोकेगा।
कीटों का आतंक: पत्ता लपेटक और तना छेदक से सावधान
इस मौसम में पत्ता लपेटक कीट अभी भी सक्रिय है। लक्षण: पत्तियां सफेद-फटाफट दिखेंगी, लगेगा जैसे खेत में पुताई हो गई हो। वहीं, तना छेदक (सफेद बाली रोग) से बाली आसानी से खींची जा सकती है। दोनों के लिए कार्टाप हाइड्रोक्लोराइड 4G (25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) का बुरकाव करें। वैकल्पिक रूप से कार्बोफ्यूरान का इस्तेमाल भी फायदेमंद है।
बीपीएच: मच्छर जैसे कीटों की निगरानी जरूरी
ब्राउन प्लांट हॉपर (बीपीएच) का खतरा अभी बरकरार है। ये मच्छर जैसे भूरे फुदकते कीट तनों और पत्तों का रस चूसते हैं, पौधा कमजोर हो जाता है और बाली टूटकर गिर जाती है। उपाय: खेत में घुसकर तनों पर नजर रखें। अगर दिखें, तो कार्बोफ्यूरान 3G (30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) का छिड़काव करें।
सिंचाई और अन्य टिप्स: कटाई से पहले पानी बंद, बीज फसल में रोगिंग
खरपतवार पहले ही निकाल चुके होंगे, चाहे सीधी बुआई हो या रोपाई। अब फसल सुरक्षा पर फोकस। सिंचाई के लिए: इस साल बरसात अच्छी है, लेकिन कटाई से दो सप्ताह पहले पानी बंद कर दें – ज्यादा पानी व्यर्थ जाएगा। अगर बीज उत्पादन के लिए धान उगा रहे हैं, तो बचे हुए खरपतवार निकालें और रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ फेंकें (रोगिंग)। इससे बीज की गुणवत्ता बनी रहेगी।
पूसा के विशेषज्ञ जोर देकर कहते हैं, “फसल सुरक्षा ही अब आपका मुख्य कदम है। लगातार निगरानी से 20-30% नुकसान रोका जा सकता है।”
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