फसल की खेती (Crop Cultivation)

गुलाबी इल्ली कपास की उभरती हुई कीट समस्या

गुलाबी इल्ली कपास की उभरती हुई कीट समस्या – कपास की फसल पर विभिन्न अवस्थाओं में लेपीडोप्टेरा गण के अनेक कीटों द्वारा हानि पहुँचायी जाती है। इन कीटों में गुलाबी इल्ली या गुलाबी डेंडू छेदक, पेक्टीनोफोरा गोसीपिला (सांर्डस) एक महत्वपूर्ण हानि पहुँचाने वाला कीट है जो विश्व के समस्त कपास उत्पादक क्षेत्रों में देखा जाता है। (कर्ल एंड व्हाइट, 1952)। गुलाबी इल्ली का सर्वप्रथम वर्णन सन् 1842 में डल्ब्यू. डल्ब्यू. सांर्डस ने कपास के क्षतिग्रस्त घेटों के नमूनों में से डिप्रेसेरिया गोसीपिला के रुप में किया। सन् 1980 से बी.टी. कपास के आगमन तक गुलाबी इल्ली, अमेरिकन डेंडू छेदक के पश्चात् दूसरा महत्वपूर्ण हानिकारक कीट सम्पूर्ण देश में रहा। वैसे गुलाबी इल्ली की समस्या लगभग 30 वर्षों पश्चात् पुन: उभरकर आयी है। गुलाबी इल्ली का वयस्क गहरे, भूरे रंग का लगभग 10 मिमी लम्बा होता है जिसके पंखों का फैलाव 15 मिमी होता है। अगले जोड़ी पंखों पर एक काला धब्बा पाया जाता है और पिछड़े जोड़ी पंखों के किनारे झालरनुमा होते हैं। इल्ली आरम्भ में मटमेले पीले रंग की होती है। जो बाद में गुलाबी रंग की हो जाती है। पूर्ण विकसित इल्ली लगभग 15 मिमी लम्बी होती है।

गुलाबी इल्ली द्वारा हानि

गुलाबी इल्ली के वयस्क उडऩे वाले अत्यंत सक्रिय कीट होते हैं जबकि इल्ली (लार्वा) मुख्यत: आंतरिक बेधक है जो घेटों में रहकर बीजों पर अपना पोषण प्राप्त करती है। इल्ली घेटों के अतिरिक्त फूलों एवं फूलपुडिय़ों में भी पायी जाती है और यह उन्हें महत्वपूर्ण हानि पहुँचाती है। इल्ली फूलों की पंखुडिय़ों को एक विशिष्ट तरीके से बुनती है जो अपने विशेष लक्षणों के कारण दूर से ही पहचाने जाते है। इल्लियों के घेटों के अन्दर रहने के कारण वे विकृत हो जाते हैं, सड़ जाते हैं अपरिपक्व अथवा अपूर्ण रेशों की लम्बाई कम हो जाती है और उनमें रंजक के कारण गुणात्मक ह्यस भी होता है। यह कीट बहुत ही सीमित पोषक पौधों पर अपना पोषण प्राप्त करता है।

चीन के बाद, भारत दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता (उपयोगकर्ता देश है यहाँ वर्ष 2008-09 में विश्व का लगभग 21 प्रतिशत कपास उत्पादन हुआ। भारत विश्व का एक बड़ा कपास उत्पादक देश है जहाँ वर्ष 2014-15 में 103.29 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में 295.0 लाख गठानों का उत्पादन 486 कि.ग्रा. /हे. की उत्पादकता के साथ हुआ। डेन्डू छेदक कीटों में गुलाबी इल्ली एक महत्वपूर्ण हानिकारक कीट के रुप में पिछले वर्षों में देखा जाता रहा है (घोष, 2001)। विश्व भर में गुलाबी इल्ली एक आर्थिक रुप से अत्यंत हानिकारक कीट के रुप में जाना जाता रहा है। गुलाबी इल्ली द्वारा प्रतिवर्ष 2.8 से 61.9 प्रतिशत हानि उपज में 2.1 से 47.10 प्रतिशत हानि तेल उपलब्धता में एवं 10.7 से 59.2 प्रतिशत हानि सामान्य डेन्डू खुलने में पायी गई है (पाटिल,2003)। गतवर्षों में बी.टी. कपास द्वारा डेन्डू छेदक कीटों (यथा हेलीकोपरवा आर्मीजेरा, एरियाय वाइटेला व पेक्टीनोफोरा गोसीपिला) के लिए उच्च प्रतिरोधकता प्रयोगशाला व खेतों में प्रदान की गई (घोष 2002, क्रांति एवं सहयोगी 2002, क्रांति एवं क्रांति 2004)। सन् 2009 में जी.ई.ए.सी. द्वारा 248 नई बी.टी. प्रजातियाँ अनुमोदित की गई जो वर्ष 2008 में अनुमोदित 274 बी.टी. प्रजातियों के अतिरिक्त थी। इस प्रकार वर्ष 2009 में कुल 522 बी.टी. प्रजातियाँ किसानों के लिए उपलब्ध हो गयी (चौधरी एवं गौर 2010) वर्तमान में किसानों के लिए 1000 से अधिक बी.टी. प्रजातियाँ उपलब्ध है (जी.ई.ए.सी.2012)।

बीटी में बढ़ा प्रकोप

बी.टी. प्रजातियों में डेन्डू छेदक के लिए प्रतिरोधकता का अध्ययन प्रतिवर्ष केन्द्रीय कपास अनुसंधान केन्द्र द्वारा किया जाता रहा है। इसके लिए प्रत्येक कपास उत्पादक राज्य से कपास के घेटे एकत्रित करवाए जा उनका परीक्षण किया जाता रहा है। इसके अतिरिक्त आवश्यकता पडऩे पर खेतों का सर्वेक्षण भी किया जाता रहा है। इस प्रकार वर्ष 2012 व 2013 में गुजरात के अमरेली एवं भावनगर जिलों में किए गए सर्वेक्षणों में बी.टी. कपास की बी.जी. 2 प्रजातियों पर गुलाबी इल्ली का प्रकोप गुजरात के अनेक कपास उत्पादक जिलों में देखा गया। गुलाबी इल्ली का प्रकोप बढ़कर वर्ष 2015 में आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना व महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में भी देखा गया। मध्यप्रदेश के कुछ कपास उत्पादक जिलों विशेषकर गुजरात से लगे जिलों में गुलाबी इल्ली का प्रकोप देखा गया।
भारतीय कृषि अनुसंधान केन्द्र के केन्द्रीय कपास अनुसंधान केन्द्र द्वारा वर्ष 2012-14 में गुलाबी इल्ली के प्रति प्रतिरोधकता के लिए किए गए अध्ययन से भी यह पुष्टि होती है कि डेन्डू छेदक कीट में क्राइ वन.ए.सी., क्राइ टू ए बी के लिए प्रतिरोधकता विकसित हो चुकी है।

गुलाबी इल्ली की पुर्नउत्पत्ति के कारण

कपास की फसल में गुलाबी इल्ली की पुर्नउत्पत्ति के अनेक कारण पहचाने गए हैं जिनमें प्रमुख है-

  • फसल के अवशेेषों का लम्बे समय तक खेतों में पड़े रहना। प्राय: वे अवशेष अगली फसल तक खेतों में ही पड़े रहते हंै।
  • कीट की सीमित प्रजाति के पौधों पर पोषण प्राप्त करने की क्षमता।
  • लम्बी अवधि वाली बी.टी. कपास की संकर प्रजातियों का लगाना जिससे कीट को लगातार पोषण मिलता रहता है।
  • बी.टी. कपास की अत्यधिक प्रजातियों की उपलब्धता जिनमें विविध समय पर पुष्पन एवं फलन होता है। इस कारण कीट को लगातार पोषण मिलता रहता है।
  • सामान्यत: गुलाबी डेन्डू छेदक की इल्ली (लार्वा) नवम्बर-दिसम्बर माह में फसल को हानि पहुँचाती है। इसके पश्चात् फरवरी में कपास फसल की अनुपस्थिति में फसल के ठूँठ में सुसुप्तावस्था में जाती है फसल की उपलब्धता फरवरी के पश्चात् भी बनी रहने पर कीट फसल वाले पौध भागों पर सक्रिय बना रहता है।
  • अनेक स्थानों पर कपास की फसल को वर्ष भर खेतों में बनाए रखा जाता है, जिससे सम्पूर्ण समय कीट का जीवन चक्र/क्रम बना रहता है।
  • बी.टी.कपास के आसपास नान बी.टी. कपास (रिफ्यूजिया) की पाँच कतारें अथवा कुल क्षेत्र का 20 प्रतिशत लगाना अनिवार्य होता है। परन्तु इसका पालन भी कृषकों द्वारा नहीं किया जा रहा है। इस कारण कीट में प्रतिरोधकता विकसित हो रही है।
  • मौसम की परिस्थितियों के कारण भी कपास के पौधों में बी.टी. का असर विपरीत तौर पर प्रभावित हो रहा है।
  • अपरिपक्व कपास का लम्बे समय तक जिनिंग मिल में भंडारण भी अगली फसल में गुलाबी डेन्डू छेदक के प्रकोप का कारण बन रहा है।
  • बी.टी. संकर प्रजातियों की पहली पीढ़ी में बीजों का प्रगुणन भी पौधों पर घेटों में गुलाबी इल्ली के लिए प्रतिरोधकता विकास को बढ़ा रहा है।
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