संतरा, माल्टा के रोग, रोकथाम
नीबू वर्गीय फसल उष्ण उपोष्ण कटिबंधीय देशों की महत्वपूर्ण फसल है। ये फल विटामिन सी, शर्करा, अमीनो अम्ल एवं अन्य पोषक तत्वों के सर्वोत्तम स्रोत होते हैं। नीबू वर्गीय फसलों में अनेक प्रकार की बीमारियां होती हैं जो कि इन फसलों की उपज कम करती है। नींबू वर्गीय फसलों के प्रमुख रोग एवं उनकी रोकथाम इस प्रकार हैं:-
टहनी मार रोग (नींबू का एन्थ्रेक्नोज):
यह रोग फफूंद द्वारा होता है। इस रोग में टहनियां ऊपर से सूखनी शुरू हो जाती हंै। पत्तियां सूख कर गिरने लगती है। प्राय: बड़ी टहनियां भी सूखने लगती है एवं इस रोग से ग्रस्त पेड़ के फल व तने भी गल जाते हैं।
संतरा व माल्टा का कोढ़ (सिट्रस कैंकर) :
यह वर्षा ऋतु में होने वाला सबसे गम्भीर रोग है। यह रोग जेन्थोमोनास कॉम्पेस्ट्रिस पेथोवार सिट्राई नामक जीवाणु से होता है। इस रोग में पत्तों, टहनियों और फलों पर गहरे रंग के खुरदरे धब्बे पड़ जाते हैं। कैंकर रोग से ग्रसित फलों का बाजार में मूल्य गिर जाता है।
गूंद निकलने का रोग
यह रोग फफूंद द्वारा होता है। यह रोग विशेषत: अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अधिक होता है। इस रोग में जमीन के पास से तने की छाल गल जाती है और तने के अन्दर की लकड़ी मर जाती है एवं उसमें से गूंद जैसा पदार्थ निकलने लगता है।
तने व फल का गलना:
इस रोग में पहले पत्तों टहनियों एवं फलों पर बाहर से पीले रंग के गोलाकार धब्बे पड़ जाते हैं। कुछ समय बाद ये धब्बे ऊपर की ओर उभर कर खुरदरे एवं हल्के-भूरे रंग के हो जाते हैं। धब्बों के बाहर वाला पीला रंग खत्म हो जाता है और पत्तियों व फलों की सतह कागज की तरह हो जाती है।
मोटल लीफ (जस्ते की कमी)
इस रोग में पत्तों की नसों के दोनों तरफ की जगह सफेद सी हो जाती है।
प्रबन्धन:
इन बीमारियों के रोकथाम के लिए नीचे दिये गये छिड़काव कार्यक्रम अपनायें:-
दिसम्बर से फरवरी के महीनों के दौरान –
- पौध गलन वाले भागों को कुरेद कर साफ करें एवं उस पर बोर्डो पेस्ट लगायें और फिर एक सप्ताह बाद दोबारा लगाएं।
- काट-छांट करें और उसके बाद 0.3 प्रतिशत कॉपर-ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें।
- पहला छिड़काव अक्टूबर में, फिर दूसरा दिसम्बर माह में व तीसरा फरवरी के महीने में करें।
- अप्रैल-मई के महीने में 0.3 प्रतिशत कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें। उसके बाद 3 किलोग्राम जिंक सल्फेट एवं 1.5 किलोग्राम बुझा हुआ चूना 500 लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाये और इस घोल का छिड़काव जस्ते की कमी को रोकने के लिए करें।
- जुलाई के महीने में – बरसात की पहली बौछार के तुरन्त बाद 0.3 प्रतिशत कॉपर – ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें।
अगस्त व सितम्बर के महीने के दौरान – - संतरे व माल्टे के कोढ़ की रोकथाम के लिए जिन दिनों पानी न बरसे उन दिनों में कॉपर-ऑक्सीक्लोराइड (0.3 प्रतिशत) का छिड़काव करें। 3 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट एवं 1.5 कि.ग्रा. बुझा हुआ चूना को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर सितम्बर माह में छिड़काव करें। केवल स्वस्थ प्रमाणित तनों की कटान ही लगायें।
- अक्टूबर-नवम्बर के महीने में 0.3त्न कॉपर-ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें।
- रिन्कू रानी
- जीताराम शर्मा
- कुशल राज
- अन्नु
- पूजा सांगवान