फसल की खेती (Crop Cultivation)

सब्जियों में जड़गांठ-सूत्रकृमि

  • अजय कुमार गांगुली , हरेन्द्र कुमार
  • पंकज ,जगन लाल
    सूत्रकृमि विज्ञान संभाग
    भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली

18 अगस्त 2022, सब्जियों में जडग़ांठ-सूत्रकृमि – सब्जियों में जड़गांठ रोग, मेलाइडोगाइनी सूत्रकृमि की कई जातियां फैलाती हैं। यह सूत्रकृमि आर्थिक महत्व की अनेक फसलों, दालों व सब्जियों को हानि पहुंचाती है। सब्जियों का जडग़ांठ रोग पूरे भारत के सब्जी उत्पादन क्षेत्रों में पाया जाता है यह रोग सूत्रकृमि के कम व ज्यादा प्रकोप के अनुसार हानि पहुंचाता है। इस सूत्रकृमि से सब्जियों की उपज में 20-50 प्रतिशत तक हानि देखी गई है। जिससे देश को 100 करोड़ रूपयें का आर्थिक नुकसान होता है। इस सूत्रकृमि का प्रकोप समय अनुसार एक प्रकार की फसल बार-बार लगाने से बढ़ता है, यह फसलों की पौध द्वारा एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में फैलता है।

जड़गांठ सूत्रकृमि का जीवन चक्र

जड़गांठ सूत्रकृमि अपना जीवन चक्र 25-30 दिन में पूरा कर लेता है। एक मादा सूत्रकृमि 400-500 अंडे देती है व पूरे साल में 7-8 पीडिय़ां बनाती है। सूत्रकृमि जड़ों में अंदर घुसकर कोशिकाओं को हानि पहुंचाते है जिससे कोशिकाएं अपना आकार बढ़ा लेती हंै और जड़ों में छोटी-बड़ी गांठें बन जाती हंै। सूत्रकृमि जड़ में परजीवी रहकर अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं। अण्डों से नए सूत्रकृमि निकलकर नई जड़ों की बढ़ोतरी को प्रभावित करते हैं।

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पौधों में रोग के लक्षण
  • सब्जियां, नगदी फसल होने से किसान खेत में पूरे साल लगातार सब्जियां उगाते हैं। जिससे फसल में सूत्रकृमि रोग लग जाता है।
  • सूत्रकृमि पौधों की जड़ों में छोटी-बड़ी गांठें बनाते हैं।
  • रोगी पौधे में जड़ों की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होने से उनकी जमीन से पोषक तत्व व पानी सोखने की क्षमता कम हो जाती है जिससे पौधे पीले व छोटे रह जाते हैं।
  • खेत में रोगी पौधों की पत्तियां पीली पडक़र सूख जाती हैं पौधे मुरझाये से रहते हैं और फल व फूल कम व छोटे आते हैं।
  • जडग़ांठ रोगी पौधों की जड़ों पर मिट्टी की फफूंद आक्रमण कर जड़ों को गला-सड़ा देती है। जिससे पौधे सूखकर मर जाते हैं।
जडग़ांठ सूत्रकृमि का प्रबंधन
  • जडग़ांठ रोगी खेत में 2-3 साल तक फसल चक्र अपनाते हुए सूत्रकृमि अवरोधक फसल उगायें। जैसे- गेहूं, जौ, सरसों व अफ्रीकन गेन्दा।
  • गर्मियों में खेत की हल्की सिंचाई के बाद 2-3 गहरी जुताई 10-12 दिन के अन्तर पर करें। इससे सूत्रकृमि ऊपरी सतह पर आकर सूर्यतपन से मर जायेगें।
  • मई-जून में पौध वाली फसल की नर्सरी लगाने से पहले, नर्सरी की क्यारी को पॉलीथिन चादर से 3-4 हफ्ते तक ढककर, सूर्यतपन करने के बाद क्यारी में नर्सरी लगायें।
  • खेत में हरी खाद के लिए सनई (क्रोटोलेरिया) को 1-2 महीने तक उगाने के बाद खेत में ही जुताई करके अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें। इससे हरी खाद भी मिलेगी व सूत्रकृमि की रोकथाम भी होगी।
  • खेत में सब्जियों की सूत्रकृमि रोधी किस्में लगाने से फसल को सूत्रकृमि रोग से बचाया जा सकता है।
  • सूत्रकृमि अवरोधक किस्में विभिन्न फसलों में –
    टमाटर :- एस. एल-120, हिसार ललित, पी-120, पीएनआर-7, एनटी-3,12, बीएनएफ-8 और रोनिता आदि।
    बैंगन :- विजय हाईब्रिड, ब्लेक ब्यूटी, ब्लैकराउन्ड, जोनपुरी लम्बा और केएस-224
    भिण्डी :- वर्षा, विजया, विशाल और ए.एन. के-41 मध्यम सूत्रकृमि अवरोधक किस्में हैं।
  • खेत में फसल बुआई से पहले कार्बोफ्यूरान 33 कि. प्रति हेक्टेयर या फोरेट 10 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की मात्रा में एक व दो बार बांट कर आवश्यकता अनुसार डालकर सूत्रकृमि का नियंत्रण कर सकते हैं।
  • खेत में पौध रोपाई से पहले पौधे की जड़ों को सूत्रकृमि नाशक दवा होस्टाथियान (ट्राइजोफास) – 40 ई.सी., 250 पीपीएम (2.5 मिली/4 ली. पानी) में 20-30 मिनट डुबोकर रखने के बाद खेत में रोपाई करें।
  • उपरोक्त विधियों में से 2-3 विधियां अपनी अवश्यकता एवं क्षमता के अनुसार अपनाकर समेकित प्रबंधन करें।
    सूत्रकृमि नाशक दवा का प्रयोग खेत में कम करें जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा। सूत्रकृमि निवारण प्रक्रिया अपनाने से पहले खेत में सूत्रकृमि रोग की जांच अवश्य करायें।
जड़-गांठ सूत्रकृमि द्वारा हानि का रोग मापन

रोगी पौधों को जड़ सहित उखाड़ कर पानी से धोयें व जड़ों में गांठ देखकर रोग मापन करें :-

गांठों की संख्या   वर्गीकरण
0- 00 अप्रभावित किस्म
0-25 अवरोधक किस्म
25-50             मध्य प्रभावित किस्म 
50-75   प्रभावित किस्म
75-80  अति प्रभावित किस्म

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