फसल की खेती (Crop Cultivation)

मेंथा की आधुनिक खेती

  • मो. शाहलम , नीलम कुमारी
  • जयनाथ पटेल

16 दिसंबर 2021, मेंथा की आधुनिक खेती – मेंथा की खेती पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्रों जैसे की बरेली, रामपुर, फिरोजाबाद, पीलीभीत, बदायूं, मुरादाबाद, सहारनपुर, मेरठ आदि में किसानों द्वारा अत्यधिक पैमाने में की जाती है। हिंदुस्तान में मेंथा का90 प्रतिशत उत्पादन उत्तरप्रदेश में किया जाता है जबकि शेष 10 प्रतिशत के साथ पंजाब, राजस्थान आदि के छोटे क्षेत्रों में होता है। मेंथा तेल का उपयोग दवाओं, टूथपेस्ट, माउथ-वॉश, च्युइंगगम और सौंदर्य प्रसाधन, इत्र उत्पादों के निर्माण में एक औद्योगिक इनपुट के रूप में ेंकिया जाता है। पुदीने की पत्तियों का उपयोग पेय पदार्थ, जेली और सिरप में ंकिया जाता है। मेंथा पाचन में सहायता और सिर दर्द से राहत जैसे स्वास्थ्य उपचार के लिए उपयोगी है। मेंथा की खेती आर्थिक दृष्टि से बहुत लाभदायक है। निर्यात बाजार में बढ़ती मांग और लाभकारी कीमतों ने राज्य में मेंथा की खेती को बढ़ावा दिया है। मेंथा की खेती बहुत कम लागत में की जाती है और इसके साथ – साथ ही इसमें कम समय में अधिक आय उत्पन्न कर सकते हैं ।

भूमि

पुदीने की खेती कई प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है हालाँकि, दोमट या मटियार दोमट या कार्बनिक पदार्थों से भरपूर गहरी मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे अच्छी होती है एवं इसकी खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी बहुत जरूरी है। पुदीना 7.5 पीएच में सबसे अच्छा पनपता है।

Advertisement
Advertisement
खेत की तैयारी

एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2-3 जुताइयाँ कल्टीवेटर से मिट्टी को भुरभुरी बनाने के लिए आवश्यक होता है तथा इसके उपरान्त पाटा लगा दें।

उन्नतशील किस्में

सिम उन्नति , कालका HY-77, शिवालिक, हिमालय, एमएसएस -1, किरण , पंजाब स्पेअरमिंट -1 , कोशी।

Advertisement8
Advertisement
बुवाई का समय

मध्य जनवरी से मध्य फरवरी मेंथा की बुवाई के लिए सर्वोत्तम समय माना जाता है। बुवाई में देरी के कारण मेंथा की उपज कम हो जाती है तथा तेल की मात्रा भी कम हो जाती है। अगर बुवाई में देर हो जाये तो पौधों को नर्सरी में तैयार करके मार्च से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक खेत में पौधों की रोपार्ई अवश्य कर दें। विलम्ब से मेंथा की खेती के लिए कोसी प्रजाति का चुनाव करें।

Advertisement8
Advertisement
बुवाई की विधि

देशी पोदीना की रोपाई के लिए लाइन क ीदूरी 45-60 सेमी तथा पौधों से पौधों की दूरी 15 सेमी. रखें। बुवाई/रोपाई के लिए जड़ों की मात्रा 4-5 क्विंटल होती है जड़ों को 8-10 सेमी. के टुकड़े में उपयुक्त किया जाता है। जड़ों की रोपाई 3 से 5 सेमी. की गहराई पर कूंड़ों में करें। रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई कर दें।

उर्वरक की मात्रा

नाइट्रोजन उर्वरकों के भारी उपयोग के लिए पुदीना बहुत अच्छी तरह से प्रतिक्रिया करता है। सामान्य परिस्थितियों में मेंथा की अच्छी उपज के लिए 8-10 क्विंटल गोबर की खाद तथा 120-150 किलोग्राम नाइट्रोजन , 50-60 किलोग्राम फॉस्फोरस , 40 किलोग्राम पोटाश तथा 20 किलोग्राम जिंक सलफेट का प्रयोग करें। जड़ों में रोपाई से पहले 35-40 किग्रा नाइट्रोजन की बेसल खुराक डाली जाती है तथा फास्फोरस, पोटेशियम और जिंक को पूरी खुराक डालें। शेष नाइट्रोजन को रोपाई के 40-45 दिनों के बाद दिया जाये लेकिन अगर नाइट्रोजन की टॉपड्रेसिंग 70-75 दिन तथा पहली कटाई के 20 दिन के बाद करने से तथा इसके साथ ही सिंगल सुपरफॉस्फेट का भी प्रयोग करने से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

सिंचाई

पुदीने की पानी की आवश्यकता बहुत अधिक होती है। मिट्टी के प्रकार और जलवायु के आधार पर मेंथा की सिंचाई निर्भर करती है। पहली सिंचाई बुवाई के तुरन्त बाद करें तथा इसके बाद 20-25 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई करते रहें। अच्छी मिट्टी की निकासी प्रदान करके बरसात के मौसम में पानी के ठहराव से बचें।

खरपतवार प्रबंधन

पुदीना की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए महत्वपूर्र्ण दिन बुवाई के 75- 90 दिनों तक होते हैं, फसल की वृद्धि के शुरुआती चरणों में ेंनियमित अंतराल पर निराई और गुड़ाई की आवश्यकता होती है। रोपण के पहले छह हफ्तों के भीतर हाथ या यांत्रिक कुदाल से निराई-गुड़ाई करने से खरपतवारों पर नियंत्रण होता है। पेंडीमिथालिन 0.75 मिली प्रति हे. 700- 800 लीटर पानी में घोलकर बुवाई/ रोपाई के पश्चात ओट आने पर यथा शीघ्र छिडक़ाव कर देें। निर्बाध खरपतवार वृद्धि से तेल का उत्पादन लगभग 60 प्रतिशत तक काम हो जाता है।

कटाई

पुदीने की कटाई साल में 2-3 बार की जाती है यानी जून और अक्टूबर महीनों में काटा जाता है। पहली कटाई 100-120 दिनों की वृद्धि के बाद जब पौध में कलिया आने लगे और दूसरी कटाई पहली कटाई के लगभग 80-90 दिनों में काटी जाती है। कटाई के चरण में ताजा जड़ों में 0.5 से 0.68 प्रतिशत तेल होता है और 5-7 घंटे तक सूखने के बाद आसवन के लिए तैयार होता है। कटाई करने के पश्चात पौधों को 4-6 घंटों तक खुली धूप में छोड़ दें उसके बाद कटी फसल को छाया में हल्का सुखाकर जल्दी आसवन विधि द्वारा यंत्र से तेल निकाल लें।

Advertisement8
Advertisement
उपज

20-30 टन प्रति हेक्टेयर होती है जो दो कटाइयों में प्राप्त होती है। जिसे एक वर्ष में 125-150 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तेल की पैदावार होती है।

 

पौध संरक्षण :-

कीट प्रबंधन 

दीमक – दीमक फसल की जड़ों को नुकसान पहुँचता है जिसके फलस्वरूप पौधे सूख जाते हैं। दीमक से फसल को बचाने के लिए क्लोरोपाइरीफास 2.5 लीटर प्रति हे. की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करें।
लीफ फोल्डर कीट – इस कीट की सूडियां अगस्त-सितंबर के दौरान पत्ती को रोल के रूप में मोड़ती है और पत्ती ऊतक के अंदर से खाती है। इसकी रोकथाम के लिए फेनवेलरेट 750 मिली. प्रति हेक्टेयर की दर से 600 से 700 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करें।
बालदार सूंडी – यह पत्तियों की निचली सतह पर रहती है और पत्तियों को खाती है। इसकी रोकथाम के लिए डाइक्लोरोवास 500 मिली. या फेनवेलरेट 750 मिली. प्रति हे. की दर से 600-700 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करें।
लाल कद्दू बीटल – यह कीट बढ़ती पत्तियों और कलियों को खाता है। इस कीट से फसल की सुरक्षा के लिए मैलाथियान 1 मि.ली./ लीटर पानी का छिडक़ाव करें।

रोग प्रबंधन

जड़ सडऩ रोग- इस रोग में जड़ों में नुकसानदेह फफूंदी के प्रकोप से जडं़े काली पडक़र सडऩे लग जाती हंै। गुलाबी रंग के धब्बे जड़ों पर उभर आते हंै। 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी में घोलकर बुवाई से पहले जड़ों का शोधन करें।

पत्ती धब्बा रोग- इस बीमारी के प्रकोप से पत्तियों पर धूलदार नारंगी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो गंभीर स्थिति में भूरे या काले रंग के हो जाते हैं जिससे पौधे का विकास रुक जाता है। पुरानी पत्तियां पीली होकर गिरने लगती है। इसके रोग को फैलने से रोकने के लिए संक्रमित पौधों और प्रकंदों को हटा दें; जड़ों का ताप उपचार रोग को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है तथा मैंकोजेब 75 डब्लूपी नामक फफूंदीनाशक की 2 किलोग्राम मात्रा 700-800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टर की दर से छिडक़ाव करें।

Advertisements
Advertisement5
Advertisement