मेंथा की खेती कैसे करें
हमारे देश में मेंथा की खेती बड़े पैमाने पर होती है, इसे कई अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है, देश के कई हिस्सों में इसे मेंथा प्रीपरेटा कहा जाता है तो कई किसान इसे पुदीना भी कहते हैं। कुल मिलाकर मेंथा, मेंथा प्रीपरेटा और पुदीना की एक ऐसी प्रजाति है, जिससे बहु उपयोगी तेल निकाला जाता है, जिसकी खेती आर्थिक तौर किसानों के लिए बेहद लाभदायक है। मेंथा एक एरोमेटिक फसल है, हमारे देश में 1960 में हरित क्रांति के समय इसकी खेती पर विशेष ध्यान दिया गया, यह एक वर्षीय झाड़ीनुमा पौधा है, जो यूरोपीय देश से हमारे यहां लाया गया है…इसीलिए इसको यूरोपियन मिंट भी कहते हैं, हमारे देश में मेंथा पीपरेटा, सिवाली, सक्षम, कुशल, कोशी जातियां अधिकतर लगाई जाती है, इसके तेल में तीन विशेष तत्व पाए जाते हैं,साइट्रोनिल्ला 30 से 35 प्रतिशत,जेरेनियल 12 से 18 प्रतिशत, जेरेनाइल एसिटेट 3 से 8 प्रतिशत। |
जलवायु- टैम्प्रेट क्लामेटिक का पौधा है। अगर हम आम भाषा में कहे तो मेंथा की बढ़वार के समय बर्षा का होना बहुत बेहतर माना जाता है, ध्यान रखें कि कटाई के समय वायु मंडल साफ हो और सूर्य का प्रकाश पूरी तरह से बना रहे।
भूमि एवं भूमि की तैयारी- इसके लिए गहरी भूमि, बलुई दोमट से दोमट भूमि अच्छी मानी जाती है। भारी मिट्टी पिपरमेंट लिए अच्छी नहीं है। तथा साथ ही साथ जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। और साथ ही भूमि में वायु संचार अच्छा होना चाहिए। इसके लिए भूमि का भुरभुरा होना बहुत आवश्यक होता है। मैंथा की खेती के लिए गहरी जुताई की जरूरत होती है। इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हल से कम से कम एक बार जुताई करें। और साथ ही साथ 250 से 300 क्वंटल प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद या कंपोस्ट की खाद खेत में डालें। उसके बाद दो या तीन जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से करें और पाटा लगाकर भूमि को समतल कर ले।
नर्सरी- मेंथा की रोपाई के लिए सकर्स और जड़ों, दोनों को ही प्रयोग में लाते हैं…लेकिन सकर्स से अधिक पैदावार प्राप्त होती है। सकर्स के लिए एक थोड़े से स्थान पर खेत को तैयार कर क्यारियां बना लेते हैं और उसमें जड़ों को घना बोकर सिंचाई करते रहते हैं, इस प्रकार उन जड़ों से निकलने वाले कल्ले (सकर्स) तैयार होंगे, जो रोपाई के लिए उपयोग किये जाते है।
रोपाई का समय- रोपाई का उचित समय जनवरी-फरवरी होता है। तराई भागों में बरसात से पहले रोपाई कर देनी चाहिए, उत्तरप्रदेश के मध्यक्षेत्र में अधिकांशत: किसान आलू की खेती के बाद मेंथा की रोपाई करते हैं। और मध्य प्रदेश के किसान जून जुलाई तथा मार्च-अप्रैल में मेंथा की रोपाई करते है।
रोपाई- रोपाई करने से पहले खेत में डाली जाने वाली उर्वरकों की संस्तुति मात्रा
1- 50 किलो नाइट्रोजन (प्रति हेक्टेयर)
2-75 किलो फास्फेट ( प्रति हेक्टयर)
3-37 किलो पोटाश (प्रति हेक्टयर)
4-200 किलो जिप्सम (प्रति हेक्टेयर)
उपर्युक्त मात्रा को अच्छी तरह मिला लें, उसके बाद खेत में रोपाई के लिए क्यारियां व सिंचाई की नालियां बनाते हैं नर्सरी से पौधे उखाड़कर तैयार क्यारियों में उचित दूरी पर रोप देते हंै। कुछ किसान क्यारियों में पहले ही पानी भरकर सकर्स को लगाते हैं। और कुछ किसान क्यारियों में सकर्स को लगाकर तुरंत पानी क्यांरियों में भर देते हैं।
सिंचाई व जल निकास – मेंथा की उपज और तेल की गुणवत्ता पर सिंचाई का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। अत: सिंचाई उचित समय व उचित मात्रा में की जानी चाहिए। पहली सिंचाई बुआई के तुरंत बाद की जानी चाहिए, क्योंकि पौधों की बढ़वार एवं विकास गर्मियों में होती है। कटाई के तुरंत बाद सिंचाई को करना चाहिए अन्यथा अंकुवें निकलने में बाधा पड़ सकती है। कटाई के एक सप्ताह पूर्व सिंचाई रोक देनी चाहिए।
खाद एवं उर्वरक – 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गोबर या कंपोस्ट की खाद खेत की तैयारी के समय प्रयोग करें 50 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर, 75 किलो फास्फेट प्रति हेक्टयर,37 किलो पोटाश प्रति हेक्टयर, 200 किलो जिप्सम प्रति हेक्टेयर उपर्युक्त उर्वरकों एवं जिपसम को रोपाई से पहले अच्छी तरह खेत में डालकर मिला दें उसके बाद मेंथा में टॉप ड्रेसिंग हेतु 75 किलो नाइट्रोजन को अलग से लेकर तीन भागों में बांट लें। जो इस प्रकार है।
- पहली टॉप ड्रेसिंग 25 किलो प्रति हेक्टेयर, 20 से 25 दिन पर करें।
- दूसरी टॉप ड्रेसिंग 25 किलो प्रति हेक्टेयर पहली कटाई के बाद करें।
- तीसरी टॉप ड्रेसिंग 25 किलो प्रति हेक्टेयर, दूसरी कटाई के बाद करें।
प्रत्येक टॉप ड्रेसिंग के बाद सिंचाई करना बहुत जरूरी है।
खरपतवार नियंत्रण – पुदीना की फसल के साथ अनेक खरपतवार उग आते हैं, जो पौधों को विकास एवं बढ़वार पर प्रतिकूल प्रभाव डालते है। परीक्षणों से पता चला है कि बोआई के 30 से 75 दिन बाद और पहली कटाई से 15 से 45 दिन बाद फसल खरपतवारों से मुक्त रहनी चाहिए। अत: खरपतवार की रोकथाम के लिए तीन बार निराई करनी चाहिए। पहली निराई बोआई के एक माह बाद, दूसरी दो माह बाद और तीसरी कटाई के 15 दिन बाद करनी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवरनाशी रसायनों का उपयोग भी किया सकता है।