सरसों फसल में पत्ती पर धब्बा रोग व सफ़ेद रतुआ रोग का प्रबंधन
22 फ़रवरी 2025, भोपाल: सरसों फसल में पत्ती पर धब्बा रोग व सफ़ेद रतुआ रोग का प्रबंधन – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा कृषि विभाग, गुरुग्राम के कृषि विस्तार अधिकारियों के लिए सरसों फसल में समन्वित कीट प्रबंधन विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें 25 अधिकारी एवं क्षेत्र सहायक शामिल हुए।
कृषि विज्ञान केंद्र के कीट वैज्ञानिक डॉ. भरतसिंह ने सरसों फसल के हानिकारक प्रमुख कीट व रोगों की पहचान, संक्रमण, क्षति का आँकलन कर उचित प्रबंधन के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बजाय कीटनाशी प्रयोग के कीटनाशी रहित तकनीकों से कीट व रोगों का प्रबंधन प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए जिससे पर्यावरण हितेशी कारकों जेसे परभक्षी एवं परजीवियों की संख्या में बृधी होने से हानिप्रद कीटों का नियंत्रण प्राकृतिक तरीक़े से किया जा सके। सरसों फसल में चेंपा माहू, आरा मखी, रोएँदार गिड़ार कीटों का प्रकोप पाया जाता है, जिनको नष्ट करने के लिए जैविक नियत्रक कारक भी बहुतायत से पाए जाते है।आर्थिक क्षति स्तर से ऊपर नुक़सान का आँकलन होने पर पर्यावरण हितेशी कीटनाशी का छिड़काव किया जाना चाहिए।
- रसायन रहित कीट नियन्त्रण पर बल
- सफ़ेद रतुआ रोग के रोग के संक्रमण की करे निगरानी व् समबद नियन्त्रण
डॉ. भरत सिंह ने बताया कि इस वर्ष अभीतक ज़िले में सरसों फसल में किसी प्रकार के रोग का अधिक प्रभाव नहीं देखा गया है जबकि यदाकदा कुछ गाँव क्षेत्रों जेसे त्रिपरी, वसुंदा, वासपदमका, तथा सोहना खंड के लोहटकी, बलुदा व राइसीना में पत्ती के धब्बा रोग व सफ़ेद रतुआ रोग का आंसिक स्तर पर रोग संक्रमण देखा गया है। यदि प्रति पौधा 5-6 पत्ती इन रोगों संक्रमित हों तब फफूँदनाशी कारबेंडाजिम 12%+ मेंकोज़ेब 63% दर 0.2% घोल या मेटालैकसिल 4% + मेंकोज़ेब 64% दर 0.1% रोग नियंत्रण में कारगर रहता है।
कार्यक्रम के अंत में कृषि विभाग के खंड कृषि अधिकारी श्री नवीन कुमार ने प्रशिक्षण के सफल आयोजन पर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. भरत सिंह एवं सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद किया।
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