खरीफ फसलों के प्रमुख खरपतवार
05 जुलाई 2025, नई दिल्ली: खरीफ फसलों के प्रमुख खरपतवार – खरीफ मौसम में अधिक वर्षा, उच्च तापमान और नमी की स्थिति खरपतवारों की अत्यधिक वृद्धि को बढ़ावा देती है। खरपतवारों की पहचान, उनका वर्गीकरण और जीवन चक्र की समझ प्रभावी प्रबंधन के लिए अनिवार्य है। खरीफ फसलों में खरपतवारों की अधिकतम उपस्थिति बुवाई के 10–30 दिन के भीतर देखने को मिलती है। यदि इस समय इन पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो ये मुख्य फसल को प्रतिस्पर्धा में पीछे कर देते हैं। खरीफ फसलों जैसे धान, मक्का और सोयाबीन में प्रमुख रूप से तीन प्रकार के खरपतवार पाए जाते हैं:
1) चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
इन खरपतवारों की पत्तियाँ चौड़ी, शिरायुक्त और दो बीजपत्रीय होती हैं। ये अधिकांशतः तेज़ी से बढ़ते हैं और प्रारंभिक अवस्था में मुख्य फसल को पूरी तरह ढंक सकते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कुछ की पत्तियाँ बालों वाली और चिपचिपी होती हैं जिससे कीट आकर्षित होते हैं। ये खरपतवार सोयाबीन, मक्का और सीधी बुआई वाले धान में बहुत हानिकारक होते हैं। ये पौधों को झुकाकर उनकी बढ़वार रोक देते हैं।
2) घास कुल के खरपतवार
ये खरपतवार पतली, लम्बी, समानांतर शिरायुक्त पत्तियों वाले होते हैं, और एक बीजपत्रीय होते हैं। इनकी पहचान करना कठिन होता है क्योंकि ये अक्सर मुख्य फसल के प्रारंभिक विकास चरणों में समान दिखते हैं। यह वर्ग विशेष रूप से धान और मक्का में अत्यधिक नुकसान पहुँचाता है। ये खरपतवार नाइट्रोजन के अत्यधिक उपयोग से तेजी से बढ़ते हैं।
3) मोथा परिवार के खरपतवार
इन खरपतवारों की पत्तियाँ घास जैसी दिखती हैं लेकिन इनका तना त्रिकोणीय और ठोस होता है। इनकी जड़ें कंदनुमा होती हैं जो भूमिगत कंदों से पुनः उग सकती हैं, जिससे इनका नियंत्रण अत्यंत कठिन होता है। रोपाई वाले धान में जलभराव की स्थिति में ये तेजी से फैलते हैं।
सारणी 1: खरीफ फसलों के प्रमुख खरपतवार
क्र. | खरपतवार का प्रकार | नाम (हिंदी) | वैज्ञानिक नाम | प्रमुख विशेषताएँ |
1. | चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार | महकुआ | अजेरेटम कोनीजोइडस | नीले फूलों वाली झाड़ीदार खरपतवार |
जंगली चौलाई | ऐमारैंथस विरिडिस | तेजी से फैलने वाली, लाल या हरी पत्तियाँ | ||
सफेद मुर्ग | सिलोसिआ अर्जेंटिआ | रोशनी के लिए प्रतिस्पर्धी, रेशेदार जड़ें | ||
पचकोटा | फायसेलिस मिनिमा | जालीनुमा फल, विषैला फलद्रव्य | ||
बड़ी दुधी | यूफोर्बिआ हिर्टा | फसलों के ऊपर उगकर उन्हें छाया देता है, जिससे फसलों को प्रकाश संश्लेषण के लिए पर्याप्त प्रकाश नहीं मिल पाता है | ||
प्रभाव– प्रारंभिक अवस्था में मुख्य फसल को ढंक देते हैं, विशेषकर सोयाबीन, मक्का और सीधी बुआई वाले धान में | ||||
2. | घास कुल के खरपतवार | साँवा | इकाइनोक्लोआ कोलोना | धान का तरह दिखने वाली, सीधी बुआई वाले धान में सबसे हानिकारक |
जंगली रागी | इल्यूसिन इंडिका | सूखे क्षेत्रों में प्रभावी, तेजी से बढ़ने वाला | ||
दूब घास | साईनोडोन डेक्टाइलोन | रेंगने वाला, जड़ से पुनः उगने वाला | ||
मकड़ा घास | डैकटाइलोटेनिअम इजपटीअम | चपटी पत्तियों वाला, जालीनुमा फल | ||
प्रभाव– धान व मक्का में अत्यधिक नुकसान, नाइट्रोजन के प्रयोग से तेजी से वृद्धि | ||||
3. | मोथा कुल के खरपतवार | सफेद मोथा | साइप्रस इरिया | जलभराव वाले क्षेत्रों में आम |
नागर मोथा | साइप्रस रोटनडस | भूमिगत कंदों द्वारा पुनः उगने वाला | ||
डोरा | फिमब्रिस्टायलिस मिलिएसी | रोपाई वाले धान में सामान्य | ||
प्रभाव- त्रिकोणीय तना, कंदों द्वारा पुनः उगने वाले, जलभराव की स्थिति में तीव्र प्रसार
खरपतवारों से हानियां
1) पोषक तत्वों की हानि
खरपतवार मुख्य फसल के समान ही पोषक तत्वों का उपयोग करते हैं। जब खेत में खरपतवारों की अधिकता होती है, तो ये मिट्टी में उपलब्ध नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्त्वों को तेजी से अवशोषित कर लेते हैं। उदाहरणस्वरूप, एक हेक्टेयर खेत में खरपतवार औसतन 30 से 60 किग्रा नाइट्रोजन, 5 से 15 किग्रा फास्फोरस, 40 से 100 किग्रा पोटाश खपत कर सकते हैं। इससे मुख्य फसल को पोषण की भारी कमी झेलनी पड़ती है, जिससे उत्पादकता घटती है और उर्वरकों का उपयोग अप्रभावी हो जाता है। फलतः किसानों की लागत बढ़ जाती है।
2) जल संसाधनों पर प्रतिस्पर्धा
खरपतवार, विशेषतः घास और मोथा कुल के, मिट्टी से अत्यधिक मात्रा में नमी सोखते हैं। यह स्थिति वर्षा-आश्रित या सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों में गंभीर जल तनाव उत्पन्न करती है, जिससे फसल की वृद्धि बाधित होती है और जल उपयोग दक्षता में कमी आती है।
3) प्रकाश और स्थान की प्रतिस्पर्धा
तेजी से बढ़ने वाले खरपतवार मुख्य फसल को ढँक लेते हैं, जिससे पौधों को प्रकाश संश्लेषण हेतु आवश्यक धूप नहीं मिल पाती। इससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है और पोषण की कमी के लक्षण उभरने लगते हैं।
4) उपज में प्रत्यक्ष हानि
खरपतवारों की उपस्थिति फसलों की उपज पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालती है। वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि धान की उपज में 15 से 85 प्रतिशत तक, मक्का में 30 से 65 प्रतिशत तक, और सोयाबीन में 25 से 70 प्रतिशत तक हानि हो सकती है, विशेषकर जब खरपतवारों का समय पर नियंत्रण नहीं किया जाए।
5) बीज गुणवत्ता और प्रसंस्करण में समस्या
कुछ खरपतवारों जैसे फाईलेन्थस निरुरी और डैकटाइलोटेनिअम इजपटीअम के बीज आकार में बहुत छोटे होते हैं और कटाई के समय मुख्य उपज के साथ मिल जाते हैं। इससे बीज की गुणवत्ता और शुद्धता घट जाती है और बाजार मूल्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
6) कीट और रोगों का आश्रय
कई खरपतवार विभिन्न कीटों और रोगजनकों के लिए आश्रय स्थल का कार्य करते हैं। उदाहरण के लिए अजेरेटम कोनीजोइडस लीफ कर्ल वायरस का संवाहक है, ऐमारैंथस विरिडिस विभिन्न पत्ती खाने वाले कीटों का निवास है, साइप्रस रोटनडस राइजोम के माध्यम से फफूंद जनित रोग फैलाता है। इससे फसल की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है और कीटनाशकों पर निर्भरता बढ़ती है।
7) कृषि कार्यों में बाधा
अत्यधिक खरपतवार खेत में बुवाई, सिंचाई, कटाई, थ्रेसिंग जैसे कार्यों में बाधा उत्पन्न करते हैं। इससे न केवल श्रम लागत और समय बढ़ता है, बल्कि मशीनों की कार्यक्षमता भी घटती है।
8) फसल की गुणवत्ता पर प्रभाव
खरपतवारों की उपस्थिति के कारण फसल के दानों का आकार, रंग, वजन और पोषण स्तर प्रभावित होता है। विशेष रूप से धान में यह देखा गया है कि खरपतवारों के कारण दाने अपूर्ण और हल्के रह जाते हैं।
9) खरपतवार बीज बैंक का निर्माण
यदि खरपतवारों को बीज बनने से पहले न हटाया जाए, तो उनके बीज खेत में गिरकर भविष्य में पुनः उग सकते हैं। यह बीज लंबे समय तक मिट्टी में जीवित रहकर खरपतवारों की समस्या को बनाए रखते हैं। उदाहरण साइप्रस रोटनडस एक बार फैलने पर लगभग 5–6 वर्षों तक भूमिगत कंदों से पुनः उग सकता है।
10) पर्यावरणीय समस्याएं
कुछ खरपतवार जैसे पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस और लैंटाना कैमरा मनुष्यों और पशुओं में एलर्जी और त्वचा संबंधी रोग उत्पन्न करते हैं। ये खरपतवार जैव विविधता को घटाकर पर्यावरणीय असंतुलन को जन्म देते हैं।
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