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खरीफ फसलों में खरपतवार प्रबंधन

प्रकृति ने अनेक प्रकार की वनस्पतियों को भिन्न प्रकार की जलवायु एवं परिस्थितियों में फलने-फूलने का अवसर दिया है । खेती में मुख्य फसल के अलावा उगने तथा बढऩे वाले अवांछनीय पौधों को खरपतवार की संज्ञा दी गई है। यदि खरपतवार को समय पर नियंत्रण नहीं किया गया तो उपज में गिरावट (15-75 प्रतिशत) देखी गई है। ये प्रकाश, नमी, पोषक तत्व, स्थान आदि के लिये फसलों के साथ प्रतिस्पर्धा करके फसल की वृद्धि, उपज एवं गुणवत्ता में कमी कर देते हैं। खरीफ मौसम में वर्षा की अधिकता एवं अनुकूल वातावरण से खरपतवारों की वृद्धि अधिक होती है। परिणाम स्वरूप अनियं़ित्रत स्थिति में फसलों को हानि की सम्भावनाएं और अधिक बढ़ जाती है । इसके अतिरिक्त खरपतवार फसलों में लगने वाले कीट एवं रोग व्याधियों के जीवाणुओं को भी शरण देते हैं । खरपतवारों की अधिक सघनता से फसल उत्पादन के साथ-साथ फसल की गुणवत्ता तथा मूल्य में गिरावट आ जाती है। खरपवतार मनुष्यों एवं पशुओं के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।

खरपतवारों का नियंत्रण किसी भी एक विधि द्वारा करना सम्भव नहीं है। अत: समन्वित खरपतवार प्रबन्धन अपनाना अधिक श्रेयकर है। इससे उत्पादन एवं आय वृद्धि के साथ-साथ पर्यावरण पर दूषित प्रभाव नहीं पडेगा। खरपतवारों की प्रारम्भिक वृद्धि फसलों की तुलना में अधिक होती है। इसीलिये अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिये नींदा नियंत्रण सही समय व सस्य विधि से किया जाना आवश्यक है। खरीफ फसलों में खरपतवार प्रतिस्पर्धा से फसल की उपज में कम से कम हानि के लिये क्रान्तिक अवस्था, नियंत्रण हेतु निर्धारित की गई है। प्रारम्भिक अवस्था पर खरपतवारों का नियंत्रण करने से फसल को होने वाली हानि को कम किया जा सकता है ।
समन्वित खरपतवार प्रबन्धन उपाय :
धान – रोपणी/बुवाई 3 से 4 दिन बाद ब्यूटाक्लोर 1.0-1.5 कि.ग्रा सक्रिय तत्व/हे. अथवा थायोवेनर्काव 1.0-1.5 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हे. अथवा एनिलोफोप 0.40 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/है. अथवा प्रेटिलाक्लोर 0.5 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व अथवा पेन्डीमिथालिन 1.00 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व /है. के मान से 600 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें । बुवाई के 20-25 दिन बाद खड़ी फसल में 2,4-डी इथाइल ईस्टर 0.75 कि.ग्रा सक्रिय तत्व/है. या बिसपायरी बाक सोडियम 25 ग्राम सक्रिय तत्व/हे. या प्राय जो सल्फ्यूरॉन 25 ग्राम सक्रिय तत्व/हे. को 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। लाइनों में बोई गई फसल में पैडी वीडर चला कर भी खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है।
ज्वार/बाजरा/मक्का – कतार में बोई गई फसल में हेन्ड हो या व्हील हो या निंदाई गुड़ाई आदि 25-30 दिन फसल अवस्था पर यांत्रिक विधियों द्वारा खरपतवारों को नियंत्रण किया जा सकता है। एट्राजिन 0.5-0.75 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हे. या पेन्डीमिथालिन 1.00 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हे. की दर से 600 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के पश्चात किन्तु अंकुरण के पूर्व छिड़काव करें। खड़ी फसल में 2,4 -डी 0.50 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हे. का छिड़काव बुवाई के 25-30 दिन बाद करने से चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का नियंत्रण करें।
सोयाबीन– फसल में खरपतवार प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से क्रान्तिक समय पर पहली निंदाई-गुड़ाई 20-25 दिन की फसल अवस्था पर तथा दूसरी 40-45 दिन बाद करने पर खरपवारों की बढ़वार पर नियंत्रण किया जा सकता है। शाकनाशी फ्लूक्लोरोलिन 1.00 कि.ग्रा. / हे. बुवाई से पहले छिड़कर भूमि में मिला दें । अथवा बुवाई के तुरन्त बाद परन्तु अकुरंण के पूर्व पेन्डीमिथालिन 1.00 कि.ग्रा./ हे. या मेटलाक्लोर 1.00 कि.ग्रा. या एलाक्लोर 1.00 या मेट्रीब्यूजिन 0.5 कि.ग्रा सक्रिय तत्व/हे. मात्रा को 600 लीटर पानी में घोलकर समान रूप से छिड़काव करें। खड़ी फसल में बुवाई के 15-20 दिन बाद इमेजाथापाइर 100 ग्रा./हे या क्लोरोम्यूरान इथाइल 9 .ग्रा./ हे. सक्रिय तत्व/हे. या फिनोक्सीप्राप 100 ग्रा./हे. क्यूजालोफॉप इथाइल 50 ग्रा/हे. की दर से 600 लीटर पानी में घोलकर फ्लेटफेन या फ्लेटजेड नोजन की सहायता से छिड़काव करें।
कपास – कपास की फसल में उगले वाले खरपतवारों को डोरा चला कर नियंत्रण किया जा सकता है। अन्यथा शाकनाशी रसायन ऐलाक्लोर 1.00 कि.ग्रा./हे. या पेन्डीमिथालिन 1.00 कि.ग्रा. / हे. अथवा डायुरोन 0.75 .िक.ग्रा. सक्रिय तत्व/ हे. के मान से बुवाई के तुरन्त बाद परन्तु अंकुरण के पूर्व छिडकाव से खरपतवारों की सघनता में काफी कमी देखी गई है।
गन्ना – गन्ना फसल में 3-4 निदाई गुड़ाई आवश्यक हैं। अन्धी गुड़ाई, सूखी पत्तियँा बिछाकर तथा अन्तरवर्तीय फसलों की बुवाई, गन्ने की कतारों के बीच खाली जगह में करने से खरपतवारों को कुछ सीमा तक फसल के साथ प्रतिस्पर्धा करने से रोका जा सकता है। बुवाई के तुरन्त बाद परन्तु अंकुरण के पूर्व एट्राजिन 1.00 कि.ग्रा./हे. अथवा बाद में उगने वाले चौड़ी पत्ती के खरपतवारों की रोकथाम हेतु 2,4-डी 1.00 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हे. के. मान से बुवाई के 30-35 दिन पश्चात खड़ी फसल पर छिड़काव करें।
खरपतवार प्रबन्धन हेतु नियंत्रण विधियों का समन्वित उपयोग एवं सही समय व सही मात्रा में सावधानीपूर्वक प्रयोग किया जाए तो खरपतवारों पर नियंत्रण कर अधिक फसलोत्पादन अर्जित किया जा सकता है ।

खरपतवार प्रबंधन के उपाय

निवारक उपाय:

  • शुद्ध एवं स्वस्थ बीज जो खरपतवार के बीजों से रहित हो, बोनी हेतु प्रयोग में लाये।
  • अच्छी प्रकार सड़ी हुई गोबर या कम्पोस्ट खाद का ही उपयोग करें ।
  • फूल आने से पहले ही नींदाओं को जड़ से उखाड़ फेंकना ।
  • खेत मेढ़ों व सिंचाई नालियों की सफाई रखना ।
  • खेत में उपयोग से पूर्व कृषि यंत्रों का ठीक से साफ  कर काम में लेना ।
  • पौध के साथ खरपतवारों  के पौधेेे को नहीं रहने देना ।
  • कृषि यंत्रों की सहायता से नींदा नियंत्रण कार्य हस्त चलित यन्त्र, पशुचलित यंत्र तथा शक्ति चालक यन्त्रों को उपयोग में लेकर करें।
  • ग्रीष्मकालीन अवधि में खेत की गहरी जुताई 2-3 साल में एक बार अवश्य करें।
  • कतारों के बीच में सूखी घास, पुआल या भूसा आदि पलवार बिछाकर भी कुछ सीमा तक खरपतवारों का नियंत्रण भी संभव है।
  • फसल चक्र पद्धति को अपनाने से विशेष खरपतवार समस्या से निदायत पाई जा सकती है।
  • फसल की बोनी का समय स्थिति के अनुसार निर्धारित करना चाहिए, उस समय खरपतवार के बीजों का अंकुरण नहीं हो पाए।
  • फसलों को निर्धारित पौध संघनता पर ही बोएं ताकि खरपतवार के पौधे नहीं पनप सकें।
  • फसलों में उवर्रक निर्धारित गहराई पर ही देना चाहिए जिससे खरपतवार उसे तुलनात्मक रूप से ग्रहण नहीं कर सकें।
  • शीघ्र बढऩे वाली किस्मों एवं फसलों के चयन से खरपतवार प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाते है तथा पर्याप्त वृद्धिकारक वातावरण नहीं मिल पाने से या तो मर जाते हैं या ठीक से नहीं बढ़ते, जिसका लाभ मुख्य फसल मिलता है ।
  • प्रयोगों द्वारा ज्ञात जैविक विधि के प्रभावी कीट एवं कवक आदि को नींदा नियंत्रण हेतु प्रयोग करते है विशिष्ट कीट, कवक विशिष्ट नींदा को ही नियंत्रण करते हैं । परन्तु इनका चयन भूमि के प्रकार, मौसम की दशा व भोजन की आदत अनुरूप करना चाहिए ।
  • रसायनिक विधि से नींदा नियंत्रण प्रभावी ढंग से किया जा सकता है। इसमें शाकनाशियों  का चयन फसल तथा खरपतवार के आकार-प्रकार के अनुसार किया जाता है।
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