फसल की खेती (Crop Cultivation)

कृषि उत्पादन में ट्राइकोडर्मा का महत्व

देवी लाल किकरालियाँ, स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर; अनुज कुमार, कृषि विश्वविद्यालय, कोटा; माया चैधरी, स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर

17 जनवरी 2023, बीकानेर: कृषि उत्पादन में ट्राइकोडर्मा का महत्व – हमारे मिट्टी में कवक (फफूदीं) की अनेक प्रजातियाँ पायी जाती है इनमें से एक ओर जहाँ कुछ प्रजातियाँ फसलों को हानि (शत्रु फफूदीं) पहुॅचाते हैं वहीं दूसरी ओर कुछ प्रजातियाँ लाभदायक (मित्र फफूदीं) भी हैं जैसे कि द्राइकोडरमा । खेती किसानी में ट्राइकोडर्मा कवक के फ़ायदे जानकर आप अचरज में ज़रूर पड़ जाएँगे । ट्राइकोडर्मा के खेती में प्रयोग करने के बेशुमार लाभ हैं । ट्राइकोडर्मा एक कवक यानी फ़ंगस है । यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण एवं कृषि की दृष्टि से उपयोगी है। इसका प्रयोग प्रमुख रूप से रोगकारक जीवों की रोकथाम के लिये किया जाता है। ट्राइकोडर्मा फसलों में विभिन्न प्रकार की कवक जनित बीमारियों को रोकने में कारग़र है। केचुये की तरह किसानो का दोस्त होता है ट्राईकोडमा। ट्राइकोडर्मा पौधों के जड़ विन्यास क्षेत्र (राइजोस्फियर) में खामोशी से अनवरत कार्य करने वाला सूक्ष्म कार्यकर्ता है। इसलिए मिट्टी में फफूदों के द्वारा उत्पन्न होने वाले कई प्रकार की फसल बिमारीयों के प्रबंधन के लिए यह एक महत्वपूर्ण फफूदीं है। यह मृदा में पनपता है एवं वृध्दि करता है तथा जड़ क्षेत्र के पास पौधों की तथा फसल की नर्सरी अवस्था से ही रक्षा करता है। ट्राईकोडर्मा की लगभग 6 स्पीसीज ज्ञात हैं लेकिन केवल दो ही ट्राईकोडर्मा विरिडी व ट्राईकोडर्मा हर्जीयानम मिट्टी में बहुतायत मिलता है। यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण एवं कृषि की दृष्टि से उपयोगी है। यह एक जैव कवकनाशी है और विभिन्न प्रकार की कवक जनित बीमारियों को रोकने में मदद करता है। इससे रासायनिक कवकनाशी के ऊपर निर्भरता कम हो जाती है। इसका प्रयोग प्रमुख रूप से रोगकारक जीवों की रोकथाम के लिये किया जाता है। इसका प्रयोग प्राकृतिक रूप से सुरक्षित माना जाता है क्योंकि इसके उपयोग का प्रकृति में कोई दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिलता है।

ट्राइकोडर्मा उत्पादन विधि

ट्राइकोडर्मा के उत्पादन की ग्रामीण घरेलू विधि में कण्डों (गोबर के उपलों) का प्रयोग करते हैं। खेत में छायादार स्थान पर उपलों को कूट- कूट कर बारिक कर देते हैं। इसमें 30 किलो ग्राम सूखे कण्डे रहते हैं। इनमें पानी मिला कर हाथों से भली भांति मिलाया जाता है। जिससे कि कण्डे का ढेर गाढ़ा भूरा दिखाई पड़ने लगे। अब उच्च कोटी का ट्राइकोडर्मा शुद्ध कल्चर 60-70 ग्राम इस ढेर में मिला देते हैं। इस ढेर को पुराने जूट के बोरे से अच्छी तरह ढक देते है और फिर बोरे को ऊपर से पानी से भिगो देते हैं। समय-समय पर पानी का छिड़काब बोरे के ऊपर करने से उचित नमी बनी रहती है। 14 से 18 दिनों के बाद ढ़ेर को अच्छी तरह से मिलाते हैं। और पुनः बोरे से ढ़क देते है। फिर पानी का छिड़काव समय-समय पर करते रहते हैं। लगभग 16 से 20 दिनों के बाद हरे रंग की फफूंद ढ़ेर पर दिखाई देने लगती है। लगभग 28 से 30 दिनों में ढे़र पूर्णतया हरा दिखाई देने लगता है। अब इस ढे़र का उपयोग मृदा उपचार के लिए कर सकते हैं ।

ट्राइकोडर्मा के प्रयोग की विधि

बीज का उपचार – बीज के उपचार के लिये 5 ग्राम पाउडर प्रति किलो बीज में मिलाते हैं। यह पाउडर बीज में चिपक जाता है बीज को भिगोने की जरूरत नहीं है क्योंकि पाउडर में कार्बक्सी मिथाइल सेल्यूलोज मिला होता है। बीज के जमने के साथ साथ द्राइकोडर्मा भी मिट्टी में चारो तरफ बढ़ता है और जड़ को चारों तरफ से घेरे रहता है जिससे कि उपरोक्त कोई भी कवक आसपास बढ़ने नहीं पाता। जिससे फसल के अन्तिम अवस्था तक बना रहता है।

मिट्टी का उपचार – एक किग्रा ट्राईकोडर्मा पाउडर को 25-30 किग्रा गोबर की खाद (एफ वाई एम) में मिलाकर एक हफ्ते के लिये छायेदार स्थान पर रख देते हैं जिससे कि स्पोर जम जाय फिर इसे एक एकड़ खेत की मिट्टी में फैला देते हैं तथा इसके उपरान्त बोवाई कर सकते हैं। बोने के 5 दिन पहले 150 ग्राम पाउडर को 1 घन मीटर मिट्टी में 4 से 5 सेमी गहराई तक अच्छी तरह मिला लें फिर बोवाई करें। बाद में यदि समस्या आवे तो पेड़ों के चारो ओर गडढा या नाली बनाकर पाउडर को डाला जा सकता है जिससे कि पौधों के जड़ तक यह पहँचु जाय।

सीड प्राइमिंग- बीज बोने से पहले खास तरह के घोल की बीजों पर परत चढ़ाकर छाया में सुखाने की क्रिया को सीड प्राइमिंग कहा जाता है। ट्राइकोडर्मा से सीड प्राइमिंग करने हेतु सर्वप्रथम गाय के गोबर का गारा (स्लरी) बनाएँ। प्रति लीटर गारे में 10-15 ग्राम ट्राइकोडर्मा उत्पाद मिलाएँ और इसमें लगभग एक किलोग्राम बीज डुबोकर रखें। इसे बाहर निकालकर छाया में थोड़ी देर सूखने दें फिर बुवाई करें। यह प्रक्रिया खासकर अनाज, दलहन और तिलहन फसलों की बुवाई से पहले की जानी चाहिए।

पर्णीय छिड़काव – कुछ खास तरह के रोगों जैसे पर्ण चित्ती, झुलसा आदि की रोकथाम के लिये पौधों में रोग के लक्षण दिखाई देने पर 5 से 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

जड़ उपचार- 250 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति 10 से 20 लीटर पानी में मिलाये व प्रत्यारोपित किये जाने वाले पौधों की जड़ों को 30 मिनट तक कन्द, राइजोम एवं कलम को उस घोल में 15 से 30 मिनट तक डुबोकर रखे, उसके पश्चात् खेत में लगाएं।

ट्राईकोडर्मा के प्रयोग से कुछ मुख्य रोगों का प्रबन्धन-
  • दलहनी व तिलहनी फसलों से उकठा रोग
  • फूलों में कार्म सड़न
  • चुकन्दर का आद्रपतन।
  • अदरक का प्रकंद विगलन
  • सब्जियों में आद्रपतन , उकठा, जड़गलन, कालर राट
  • कपास का उकठा, आद्रपतन, सूखा, जड़गलन विगलन ।
  • मूगंफली में कालर राट।
ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से लाभ
  • यह रोगकारक जीवों की वृद्धि को रोकता है या उन्हें मारकर पौधों को रोग मुक्त करता है। यह पौधों की रासायनिक प्रक्रियाओं को परिवर्तित कर पौधों में रोगरोधी क्षमता को बढ़ाता है। अतः इसके प्रयोग से रासायनिक दवाओं विशेषकर कवकनाशी पर निर्भरता कम होती है।
  • यह पौधों में रोगकारकों के विरुद्ध तंत्रगत अधिग्रहित प्रतिरोधक क्षमता (सिस्टेमिक एक्वायर्ड रेसिस्टेन्स) की क्रियाविधि को सक्रिय करता है। यह मृदा में कार्बनिक पदार्थों के अपघटन की दर बढ़ाता है अतः यह जैव उर्वरक की तरह काम करता है।
  • यह पौधों में एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि को बढ़ाता है। टमाटर के पौधों में ऐसा देखा गया कि जहाँ मिट्टी में ट्राइकोडर्मा डाला गया उन पौधों के फलों की पोषक तत्वों की गुणवत्ता, खनिज तत्व और एंटीऑक्सीडेंट, गतिविधि अधिक पाई गई।
  • यह पौधों की वृद्धि को बढ़ाता है क्योंकि यह फास्फेट एवं अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों को घुलनशील बनाता है। इसके प्रयोग से घास और कई अन्य पौधों में गहरी जड़ों की संख्या में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।
सावधानियां
  • मृदा में ट्राइकोडर्मा का उपयोग करने के 4 से 5 दिन बाद तक रासायनिक फफूंदीनाशक का उपयोग न करें।
  • सूखी मिट्टी में ट्राइकोडर्मा का उपयोग न करें।
  • ट्राइकोडर्मा के विकास एवं अस्तित्व के लिए उपयुक्त नमी बहुत आवश्यक है।
  • ट्राइकोडर्मा उपचारित बीज को सीधा धूप की किरणों में न रखें।
  • ट्राइकोडर्मा द्वारा उपचारित गोबर की खाद को लंबे समय तक न रखें।

महत्वपूर्ण खबर: कपास मंडी रेट (13 जनवरी 2023 के अनुसार)

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