Crop Cultivation (फसल की खेती)

सरसों को तना गलन से बचायें

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रोग को कैसे पहचानें? – रोग के लक्षण तना, पत्तियों व फलियों पर देखे जा सकते हैं। लक्षण के आधार पर इसे तना गलन, श्वेत अंगमारी, तना कैंकर इत्यादि नाम दिये गये हैं। रोग के आरम्भिक लक्षण पौधे के तना पर ठीक जमीन की सतह से थोड़ा ऊपर जलसिक्त धब्बों के रूप में प्रकट होते हैं। बाद में यह धब्बे श्वेत हो जाते हैं। वे रुई जैसी कवक से ढ़ँके होते हैं। रोग की अधिकता में रुई जैसी कवक वृद्धि तनों की लम्बाई के साथ-साथ फैल जाती है व अंतत: पूरे तने को ग्रसित कर लेती है। ऐसी अवस्था में पौधे मुरझाकर सूख जाते हैं। खेत में रोगग्रस्त पौधे अलग से ही दिखाई पड़ते हैं, क्योंकि वह समय से पहले ही पक जाते हैं। रोगग्रस्त तने भुरभुरे से होते हैं वे प्राय: बिखरकर टूट जाते हैं। पत्तियों, टहनियों व फलियों पर भी सफेद अंगमारी के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। यदि रोगग्रस्त मृत तने को फोड़कर देखा जाए तो उसमें बहुत सारे काले रंग के गोल या अनियमित आकार वाले स्क्लेरोशिया दिखाई देते हैं, जिनका व्यास 2 से 12 मि.मी. तक हो सकता है। जब फसल को काटा जाता है तो रोगग्रस्त ऊतकों से बहुत सारे स्क्लेरोशिया जमीन पर गिर जाते हैं या बीज के साथ मिल जाते हैं।

रोगजनक – यह रोग स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोशियम नामक कवक द्वारा पनपता है। यह रोगजनक मृदोढ़ है व इसके स्क्लेरोशिया प्राथमिक निवेशद्रव्य का कार्य करते हैं। स्क्लेरोशिया दो विधियों द्वारा अंकुरित हो सकते हैं। पहली विधि में उनसे सीधा सफेद कवक जाल निकलता है व पौधों को सवंमित करता है। साधारणतया: सरसों की फसल पर इस प्रकार का संक्रमण कम पाया जाता है। अधिकतर स्क्लेरोशिया अंकुरित होकर एक प्याले के समान एपोथिशियम बनाते हैं। एक स्क्लेरोशिया से कई एपोथिशियम बनते हैं व प्रत्येक एपोथिशियम से बहुत सारे एस्को बीजाणु वायु द्वारा विस्तरित होते हैैं। इन एस्को बीजाणुओं के पौधों के तने या अन्य भागों के गिरने से रोग संक्रमण होता है। एस्को बीजाणुओं के अंकुरण के बाद कवक जाल पौधों की कोशिका भित्ति के एन्जाइम प्रक्रिया द्वारा नष्ट करके पौधों के ऊतकों को कवक के पहँुचने से पहले ही मृत कर देता है। जमीन की ऊपर सतह से अधिक नमी वातावरण में ठंडक इस रोग को पनपने व फैलाने में सहायक होते हैं। जिन खेतों में लगातार सरसों की फसल उगाई जाती है। वहाँ स्क्लेरोशिया का उत्पादन व अंकुरण अधिक होता है। सरसों के फूलों से गिरी पंखुडिय़ाँ एस्कोबीजाणुओं को अंकुरित करने में मदद करती है। अधिक नाइट्रोजन उर्वरक मिलने पर भी रोग के लिये पौधों की ग्रहणशीलता में बढ़ोत्तरी होती है।

नियंत्रण कैसे करें?

अन्य रोगजनकों की तुलना में रोगजनक एक सर्वभक्षी है, जो कि 300 से भी अधिक पौधों की प्रजातियों पर संक्रमण की क्षमता रखता है। अत: ऐसे रोगजनक के लिये रोगरोधी किस्म तैयार करना अत्यन्त कठिन कार्य है। निम्न उपाय करने से रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है। द्य स्वस्थ व स्क्लेरोशिया रहित बीज का प्रयोग करें। बीजाई से पूर्व बीज को अच्छी तरह से जाँच लें कि उसमें रोगजनक के स्क्लेरोशिया न हों। यदि हों तो उन्हें अलग करके नष्ट कर दें व साफ बीज का ही प्रयोग करें।

  • सभी प्रभावित पौधों के अवशेषों को एकत्रित करके जला दें ताकि स्क्लेरोशिया नष्ट हो जाएं।
  • लम्बा फसल चक्र अपनाने से भी रोग को रोकने में मदद मिल सकती है।
  • खेत में गर्मियों में गहरी जुताई करने से स्क्लेरोशिया जमीन में दब जाते हैं व अधिक प्रकाश न मिलने के कारण उनका अंकुरण नहीं हो पाता है।
  • ज्यादा घनी फसल न रखें। पौधों की कतारों में पर्याप्त दूरी रखने से भी रोग में कमी लाई जा सकती है।
  • सरसों की बीजाई देरी से करने पर (अक्टूबर के अंत या नवम्बर) रोग का संक्रमण कम पाया गया है।
  • फसल पर रोग के प्रारम्भिक लक्षण दिखने पर कार्बेन्डाजिम (0.05 प्रतिशत) 2 ग्राम/लीटर पानी में कवकनाशक दवाई के घोल का छिड़काव पौधों पर करें। ध्यान रखें कि छिड़काव रोग पनपने से पहले ही किया जाये व पौधों के सभी भागों पर हो जाए। ज्यादातर रोग फसल पर फल आने के बाद ही पनपता है। इसलिये जब फसल में 25 से 30 प्रतिशत फूल आ जायें, उस समय एक छिड़काव कर दें।
  • हाल ही में परीक्षणों के माध्यम से लहसुन के सत् द्वारा बीमारी पर काबू पाने में सफलता हासिल हुई है। लहसुन के 2 प्रतिशत सत् से बीजोपचार तथा बीमारी का प्रकोप देखकर 2 प्रतिशत सत् का घोल बनाकर फूल आने के समय छिड़काव करें।

लहसुन का सत कैसे तैयार करें?

लहसुन का 2 प्रतिशत सत् तैयार करने के लिये 20 ग्राम लहसुन को मिक्सी या पत्थर की सिली पर बारीक पीसकर कपड़े से छानें और 1 लीटर पान में मिलाकर घोल तैयार करें। 1 लीटर लहसुन का 2 प्रतिशत सत् 5-7 किलोग्राम सरसों के बीजोपचार के लिये पर्याप्त है। इसके लिये बीज को सत् में 10 से 15 मिनिट तक भिगोया जाता है इसके उपरांत उपचारित बीज को छायादार जगह पर सुखाया जाता है। जिससे कि बीज मशीन से बुवाई के लिये आसानी से निकल सकें।

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