अश्वगंधा की खेती से लाभ कमायें
भूमि
इसकी खेती के लिये बलुई दोमट से हल्की रेतीली भूमि जिसका पी.एच. 7 से 8 हो तथा जल निकास की पर्याप्त व्यवस्था हो, उपयुक्त रहती है। निम्न भूमि में भी अश्वगंधा की खेती से संतोषजनक उपज ली जा सकती है।
खेत की तैयारी
डिस्क हैरो या देशी हल से दो या तीन बार अच्छी तरह जुताई करके सुहागा लगाकर खेत को समतल बना लें। खेत में खरपतवार ढेले नहीं होने चाहिए।
किस्म
जवाहर अश्वगंधा-20, जवाहर अश्वगंधा-134 किस्में मुख्य हैं। सीमेप ने भी पोषिता किस्म विकसित की है।
बोने का समय
अश्वगंधा की बुवाई के समय खेत में अच्छी नमी होनी चाहिये। जब एक-दो बार वर्षा हो जाती है तथा खेत की जमीन अच्छी तरह से संतृप्त हो जाये तभी बुवाई करनी चाहिए। अगस्त का महीना अश्वगंधा की बुवाई के लिये उत्तम है। सिंचित अवस्था में उसकी बिजाई सितम्बर के महीने में भी कर सकते हैं।
बीज की मात्रा
अगर बिजाई छिटककर की जाती है तो लगभग 4 किलो बीज की आवश्यकता होती है। लाईनों में बिजाई करने से बीज की मात्रा कम लगती है। नर्सरी में बुवाई करने के लिये 2 किलो बीज प्रति एकड़ काफी होता है।
बोने की विधि
सीधे बीज से अश्वगंधा की बिजाई अधिकतर छिड़काव द्वारा की जाती है। बीजों को बोने से पहले नीम के पत्तों के काढ़े से उपचारित करें। जिससे फफूंदी आदि से हानि न होने पाये। अश्वगंधा अच्छी फसल के लिये कतार के कतार का फासला 20 से 25 से.मी. तथा पौधे से पौधे का 4-6 से.मी. होना चाहिये। बीज 2-3 से.मी. से अधिक गहरा नहीं होना चाहिये। इससे एक एकड़ में लगभग 3-4 लाख पौधे लग सकते हैं। बुवाई के लगभग 15 दिनों बाद अंकुरण निकलने शुरू हो जाते हैं। नर्सरी के पौधे तैयार करके भी खेत में लगाये जा सकते हैं तथा 6-7 सप्ताह बाद पौधों को नर्सरी से खेत में लगा दिया जाता है। जिससे लाइन से लाइन का फासला 20-25 से.मी. तथा पौधे से पौधे का फासला 4-6 से.मी. रखना चाहिये। एक एकड़ नर्सरी के लिये 200 वर्गमीटर क्षेत्रफल काफी होता है। नर्सरी में क्यारियां 1.5 मीटर चौड़ी तथा लंबाई सुविधानुसार रखकर बनाएं। नर्सरी जमीन से 15-20 से.मी. उठी हुई हो तथा अच्छे जमाव के लिये नर्सरी में नमी बनाएं रखें?
खाद
अच्छी फसल लेने के लिये खेत की तैयारी के समय 8-10 टन गोबर की अच्छी गली-सड़ी खाद मिला दें।
सिंचाई
अश्वगंधा की फसल को पानी में अधिक आवश्यकता नहीं होती व वर्षा समय पर न हो तो अच्छी फसल लेने के लिये 2-3 सिंचाई करें।
निराई – गुड़ाई – अश्वगंधा की अच्छी फसल के लिये समय-समय पर खरपतवार नियंत्रण करें ताकि जड़ों को अच्छी बढ़त हो सके। इसके लिये बिजाई के 25-30 दिन बाद खुरपे से तथा 45-50 दिन बाद कसौले से गुड़ाई करें। अगर दो या अधिक पौधे एक साथ हो तो छंटाई भी कर दे।
अश्वगंधा विथानिया सोमनीफेस सोलेनेसी कुल का पौधा है तथा यह लगभग समस्त भारत में पाया जाता है। अधिकतर यह राजस्थान, म.प्र., गुजरात, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, केरल एवं हिमाचल के पर्वतों पर 1600 मीटर ऊंचाई तक पाया जाता है। भारत के अतिरिक्त यह औषधीय पौधा जॉर्डन पूर्वी अफ्रीका, मिस्त्र, पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान प्रांत में, श्रीलंका, स्पेन, मोरक्को में भी पाया जाता है। यदि इसके ताजे पत्ते तथा जड़ को मसल कर सूंघे तो उनसे घोड़े के मूत्र जैसी गंध आती है। इसी कारण से इसका नाम अश्वगंधा रखा गया है। पत्ते हल्के हरे रंग के, सफेद रोयेंदार तथा अंडाकार होते हैं। फूल पत्रकोण से निकलकर, शाखाओं के अग्रभाग पर दिसम्बर से मार्च तक आते हैं। फल गोलाकार तथा रसभरी के समान होते हैं। फल के अंदर असंख्य बीज होते हैं। इसकी जड़ मूली की तरह लेकिन पतली होती है। जिसकी मोटाई 2.5 से 4.0 से.मी. तक तथा लंबाई 30 से 50 से.मी. तक होती है। यह जंगलों में भी बहुत मिलता है परंतु उगाई गई अश्वगंधा की जड़ें अच्छी होती हैं।
- डॉ. सुधीर सिंह भदौरिया
- डॉ. प्रद्युम्न सिंह
- राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि वि.वि., ग्वालियर email : dtpmasters@yahoo.co.in