मूंग की खेती
भारत में खरीफ दलहन परिदृश्य-4
- डॉ. ए. के. तिवारी, निदेशक , डॉ. ए. के. शिवहरे, संयुक्त निदेशक
दलहन विकास निदेशालय,
(कृषि मंत्रालय, भारत सरकार) भोपाल
25 जून 2021, भोपाल । मूंग की खेती – मूंग का सामान्य क्षेत्र 40.34 लाख हे. है। जिनमें से खरीफ के मौसम के दौरान 76 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र और 69 प्रतिशत उत्पादन का योगदान है, शेष 24 प्रतिशत क्षेत्र और 31 प्रतिशत उत्पादन रबी द्वारा किया जाता है खरीफ मूंग का सामान्य क्षेत्र 30.49 लाख हे. है, जो 441 किलोग्राम/हेक्टेयर की उत्पादकता के साथ 13.46 लाख टन का उत्पादन करता है। कुल मूंग में खरीफ मूंगबीन क्षेत्रफल में लगभग 76 प्रतिशत और उत्पादन में 69 प्रतिशत का योगदान है।
प्रमुख राज्य
क्षेत्राच्छादन में योगदान 98त्न : राजस्थान 53%, महाराष्ट्र 13%, कर्नाटक 12%, मध्य प्रदेश 6%, ओडिशा 4%, गुजरात एवं तेलंगाना प्रत्येक 3%, तमिलनाडु,झारखण्ड एवं उत्तर प्रदेश प्रत्येक 1%,
उत्पादन में योगदान 97%, राजस्थान 57त्न, महाराष्ट्र 13%, कर्नाटक एवं मध्य प्रदेश प्रत्येक 7त्न, गुजरात एवं तेलंगाना प्रत्येक 4%, ओडिशा 3%, तमिलनाडु एवं झारखण्ड प्रत्येक 2%,, उत्तर प्रदेश 1%,
2018-19 के दौरान उच्चतम क्षेत्र 38.34 लाख हे. था, उत्पादन 18.26 लाख टन और 2019-20 के दौरान 519 किलोग्राम/हेक्टेयर की उत्पादकता थी।
कृषि कार्यमाला
मूंग के दाने में 24-25%, प्रोटीन 56%, कार्बोहाइड्रेट व 1.3%, वसा पायी जाती है।
मृदा
दोमट मृदा सबसे अधिक उपयुक्त होती है। इसकी खेती मटियार और बलुई दोमट में भी की जा सकती है जिनका पीएच 7.0 से 7.5 हो, इसके लिए उत्तम है। खेत में जल निकास उत्तम हो।
बुआई का समय
खरीफ मूंग की बुआई का उपयुक्त समय जून के द्वितीय पखवाड़े से जुलाई के प्रथम पखवाड़े के मध्य है।
खेत की तैयारी
खरीफ की फसल हेतु एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें एवं वर्षा प्रारंभ होते ही 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर खरपतवार रहित करने के उपरान्त खेत में पाटा चलाकर समतल करें। दीमक से बचाव के लिये क्लोरोपायरीफॉस 1.5%, चूर्ण 20-25 कि.ग्रा/हे. के दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलायें।
बीज शोधन
मृदा एवं बीज जनित रोगों से बीजों के बचाव के लिए थायरम 2 ग्राम+कार्बेन्डाजिम 1 गा्रम अथवा कार्बेन्डाजिम+केप्टान (1:2) 3 ग्राम दवा या कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्रा. प्रति किग्रा बीज की दर से शोधित कर लें। इसके बाद बीज को इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस से 7 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज के हिसाब से उपचारित करें।
बीजोपचार
बीज शोधन के 2-3 दिन बााद बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें। 50 ग्राम गुड़ या शक्कर को आधा लीटर जल में घोलकर उबालें व ठंडा कर लें। ठंडा होने पर इस घोल में राइजोबियम कल्चर डालकर 10 किग्रा बीज को उपचारित करें। उपचारित बीजों को 4-5 घंटे तक छाया में फेला देते हैं। उपचारित बीज को धूप में नहीं सुखायें। बीज उपचार दोपहर में करें ताकि शाम को अथवा दूसरे दिन बुआई की जा सके। बीजोपचार कवकनाशी-कीटनाशी एवं राइजोबियम कल्चर को क्रम में ही करें।
बीज दर
खरीफ में कतार विधि से बुआई हेतु मूंग 12-15 कि.ग्रा./हे. पर्याप्त होता है। मिश्रित फसल में मंूग की बीज दर 8-10 कि.ग्रा./हे. रखते है।
बुवाई की बिधि
सीड ड्रिल या देशी हल के पीछे नाई या चोंगा बांधकर केवल पंक्तियों में ही बुवाई करें। खरीफ फसल के लिए कतार से कतार की दूरी 45 से.मी. रखी जाती है। पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखते हुये 4 से.मी. की गहराई पर करें।
उर्वरक
15-20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 30-40 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 20 कि.ग्रा. जिंक प्रति हे. दें। नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की पूर्ति के लिए 100 कि.ग्रा. डीएपी प्रति हे. प्रयोग करें। उर्वरकों का प्रयोग फर्टीसीड ड्रिल या हल के पीछे चोंगा बांधकर कूड़ों में बीज से 2-3 से.मी. नीचे दें।
गौण एवं सूक्ष्म पोषक तत्व
गंधक (सल्फर)-काली एवं दोमट मृदाओं में 20 कि.ग्रा. गंधक (154 कि.ग्रा. जिप्सम/ फॉस्फो-जिप्सम या 22 कि.ग्रा. बेन्टोनाइट सल्फर) प्रति हेक्टर की दर से बुवाई के समय प्रत्येक फसल के लिये देना पर्याप्त होगा। कमी ज्ञात होने पर लाल बलुई मृदाओं हेतु 40 कि.ग्रा. गंधक (300 कि.ग्रा. जिप्सम/ फॉस्फो-जिप्सम या 44 कि.ग्रा. बेन्टोनाइट सल्फर) प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करें।
जिंक-जिंक की मात्रा का निर्धारण मृदा के प्रकार एवं उसकी उपल्बधता पर के अनुसार की जाये।
लाल बलुई व दोमट मृृदा- 2.5 कि.ग्रा. जिंक (12.5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट हेप्टा हाइड्रेट या 7.5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट) प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करें।
काली मृदा- 1.5 से 2.0 कि.ग्रा. जिंक (7.5 से 10 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट) प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करें।
लैटेराइटिक,जलोढ़ एवं मध्यम मृृदा- 2.5 कि.ग्रा. जिंक (12.5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट हेप्टा हाइड्रेट या 7.5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट) के साथ 200 कि.ग्रा. गोबर की खाद का प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करें।
उच्च कार्बनिक पदार्थ वाली तराई क्षेत्रों की मृदा- बुवाई के पूर्व 3 कि.ग्रा. जिंक (15 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट हेप्टा हाइड्रेट या 9 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट) प्रति हेक्टर की दर से तीन वर्ष के अंतराल पर दें।
कम कार्बनिक पदार्थ वाली पहाड़ी बलुई दोमट मृदा-2.5 कि.ग्रा. जिंक (12.5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट हेप्टा हाइड्रेट या 7.5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट) प्रति हेक्टर की दर से एक वर्ष के अन्तराल में प्रयोग करें।
बोरॉन-बोरॉन की कमी वाली मृदाओं मेंं उगाई जाने वाली मूँग की फसल में 0.5 कि.ग्रा. बोरॉन (5 कि.ग्रा. बोरेक्स या 3.6 कि.ग्रा. डाइसोडियम टेट्राबोरेट पेन्टाहाइडे्रट) प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करें।
मैंगनीज-मैंगनीज की कमी वाली बलुई दोमट मृदाओं मेंं 2त्न मैंगनीज सल्फेट के घोल का बीज उपचार या मैंगनीज सल्फेट के 1त्न घोल का पर्णीय छिड़काव लाभदायक पाया गया है।
मॉलिब्डेनम- मॉलिब्डेनम की कमी वाली मृदाओं मेंं 0.5 कि.ग्रा. सोडियम मॉलिब्डेट प्रति हेक्टर की दर से आधार उर्वरक के रूप में या 0.1%, सोडियम मॉलिब्डेट के घोल का दो बार पर्णीय छिड़काव करें अथवा मॉलिब्डेनम के घोल में बीज शोषित करें। ध्यान रहे कि अमोनियम मॉलिब्डेनम का प्रयोग तभी किया जाये जब मृदा में मॉलिब्डेनम तत्व की कमी हो।
खरपतवार नियंत्रण
बुआई के 25 से 30 दिन तक खरपतवार फसल को अत्यधिक नुकासान पहुंचाते हैं यदि खेत में खरपतवार अधिक हैं तो बोवाई के 20-25 दिन के बाद निराई कर दें। दूसरी निंराई बुआई के 45 दिन के बाद करें। जिन खेतों में खरपतवार गम्भीर समस्या हों वहां खरपतवारनाशक रसायन का छिड़काव करने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। खरपतवार नाशक दवाओ के छिड़काव के लिये हमेशा फ्लैट फेन नोजल का ही उपयोग करे। पेन्डिमिथिलीन 30 ई.सी. (स्टाम्प) 750-1000 ग्राम सक्रिय पदार्थ/है बुवाई के 0-3 दिन तक प्रयोग घासकुल एवं कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है।
सिंचाई
सामान्यत: खरीफ की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। यदि वर्षा का अभाव हो तो एक सिंचाई फलियाँ बनते समय अवश्य दें।
कटाई एवं मड़ाई जब 70-80 प्रतिशत फलियॉं पक जाएं, हंसिया से कटाई आरम्भ कर दें। तत्पश्चात बण्डल बनाकर फसल को खलिहान में ले आते हैं। 3-4 दिन सुखाने के पश्चात सुखााने के उपरान्त डंडे से पीट कर या बैलों की दायें चलाकर या थ्रेसर द्वारा भूसा से दाना अलग कर लेते हैं।
उपज
वर्षाकालीन फसल से 10 क्विंटल/हे. मिश्रित फसल में 3-5 क्विंटल/हे. उपज प्राप्त की जा सकती है।
भण्डारण
भण्ड़ारण करने से पूर्व दानों को अच्छी तरह धूप में सुखाने के उपरान्त ही जब उसमें नमी की मात्रा 8-10: रहे तभी वह भण्डारण के योग्य रहती है।
खरीफ मूंग परिदृश्य | |||||||
राज्य | सामान्य | 2019-20 | 2020-21 (डीईएस) द्वितीय अग्रिम अनुमान | ||||
क्षेत्र | उत्पादन | उपज | क्षेत्र | उत्पादन | क्षेत्र | उत्पादन | |
राजस्थान | 16.16 | 7.66 | 474 | 23.23 | 12.99 | 25.49 | 14.15 |
महाराष्ट्र | 4.08 | 1.55 | 380 | 3.87 | 1.51 | 4.3 | 2.27 |
कर्नाटक | 3.64 | 0.97 | 265 | 3.72 | 1.38 | 3.8 | 1.4 |
मध्य प्रदेश | 1.79 | 0.91 | 508 | 0.46 | 0.14 | 0.67 | 0.26 |
गुजरात | 1.05 | 0.54 | 512 | 0.92 | 0.59 | 0.94 | 0.37 |
तेलंगाना | 0.92 | 0.53 | 570 | 0.6 | 0.47 | 0.6 | 0.47 |
ओडिशा | 1.12 | 0.34 | 301 | 0.71 | 0.23 | 0.65 | 0.19 |
तमिलनाडु | 0.3 | 0.2 | 688 | 0.23 | 0.13 | 0.23 | 0.2 |
झारखण्ड | 0.27 | 0.2 | 760 | 0.23 | 0.19 | 0.26 | 0.22 |
उत्तर प्रदेश | 0.45 | 0.16 | 356 | 0.49 | 0.14 | 0.39 | 0.16 |
अन्य | 0.71 | 0.4 | 560 | 0.77 | 0.5 | 0.81 | 0.51 |
अखिल भारतीय | 30.49 | 13.46 | 441 | 35.21 | 18.26 | 38.14 | 20.19 |
स्रोत : आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालयए भारत सरकारय सामान्य औसत . 2014-15 से 2018-19 |
राज्यवार प्रमुख प्रजातियाँ | |
राज्य | प्रजातियां |
आंध्रप्रदेश | मधिरा-429,पूसा-9072, डब्लू.जी.जी.-2, आई.पी.एम 02-14, ओ.यू. एम. 11-5, को.जी.जी. 912 |
आसाम | आई.पी.एम. 2-3, पंत मूँग 4, नरेन्द्र मूंग -1, ए.जी.-1, पंत मूंग-2 |
बिहार एवं झारखंड | आई.पी.एम. 2-3, एम.एच. 2-15, पंत मूंग -4 ,हम-1, पंत मूंग-2, नरेन्द्र मूंग -1, सुनैना, पी.डी.एम.-139, एम.एच.-2-15 |
गुजरात | गुजरात मूँग-3, गुजरात मूँग-4, के-851,पी.के.वी.ए.के.एम-4 |
हरियाणा | आई.पी.एम. 2-3, एम.एच. 2-15, मुस्कान |
हिमाचल/जम्मू कश्मीर | पूसा 672, के.एम. 2241, शालीमार मूँग- 1 |
कर्नाटक | आई.पी.एम. 02-14 एवं 2-3, हम-1,पी.के.वी.ए.के.एम-4,को.जी.जी. |
मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ | हम-1,टी.जे.एम.-721, बी.एम.-4, मेहा |
महाराष्ट्र | हम-1, बी.एम. .2002-1, पी.के.वी.ए.के.एम-4, बी.एम. 4, टार्म-2 |
ओडीशा | पी.डी.एम.139, ओ.यू.एम.11-5, को.जी.जी. 912, आई.पी.एम. 2-3 |
पंजाब | आई.पी.एम.2-3, एम.एच. 2-15, एम.एल. 818, एम.एल. 613 |
राजस्थान | एस.एम.एल. 668, आई.पी.एम. 2-3, आर.एम.जी. 492, एम.एच. 2-15 |
उत्तर प्रदेश/उत्तराखंड | पंत मूँग 5, पंत मूँग 4, नरेन्द्र मूंग -1 |
तमिलनाडू | आई.पी.एम.2-3, को 6, टी.एम. 96-2, वंबन 2, वंबन 3 |
पश्चिम बंगाल | एम.एच. 2-15, पंत मूँग 5, पंत मूँग 4, नरेन्द्र मूंग -1, |
स्त्रोत:– सीडनेट, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार एवं भा.द.अनु.सं.-भा.कृ.अनु.प., कानपुर। |