नारियल बागों में मसाले और वर्मी-कम्पोस्ट से कमाएं लाखों, मिश्रित फसल का फार्मुला
16 दिसंबर 2024, भोपाल: नारियल बागों में मसाले और वर्मी-कम्पोस्ट से कमाएं लाखों, मिश्रित फसल का फार्मुला – महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में छोटे जोत और पारंपरिक खेती की परंपरा के बीच एक नई सोच ने कृषि में बड़ा बदलाव ला दिया। रत्नागिरी जिले की रहने वाली श्रीमती प्रियंका नागवेकर ने न केवल अपनी खेती की पारंपरिक सीमाओं को पार किया, बल्कि नारियल और मसालों की मिश्रित फसल के जरिए आर्थिक स्वतंत्रता की मिसाल भी पेश की।
12 साल पहले, प्रियंका ने अपने परिवार की 22 हेक्टेयर जमीन पर पारंपरिक फसलें जैसे चावल, बाजरा और सब्जियां उगाना शुरू किया। लेकिन उन्नत कृषि तकनीकों और बेहतर ज्ञान के अभाव में उनकी आय सीमित रही। हालांकि, उन्होंने हार नहीं मानी और खेती में सुधार लाने के नए तरीकों की खोज में जुट गईं।
कैसे हुई शुरुआत?
प्रियंका की सफलता की कहानी तब शुरू हुई, जब उन्होंने भाकृअनुप (ICAR) की अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना से संपर्क किया। नारियल उद्यान “लखीबाग” अवधारणा और वर्मी-कम्पोस्ट उत्पादन तकनीक के बारे में जानकारी ने उन्हें अपने बागानों को एक नया रूप देने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने नारियल बागानों में काली मिर्च, जायफल और दालचीनी जैसे मसालों की मिश्रित फसल शुरू की।
वर्मी-कम्पोस्टिंग: फसल सुधार का अहम हिस्सा
प्रियंका ने अपने बागानों में वर्मी-कम्पोस्टिंग का उपयोग शुरू किया। नारियल के बायोमास, केला के पत्ते और मसालों के अवशेषों को जैविक खाद में बदलने के लिए उन्होंने यूड्रिलस एसपी नामक केंचुए का इस्तेमाल किया। इससे न केवल उनकी फसल की उत्पादकता बढ़ी, बल्कि जैविक खाद के उत्पादन से अतिरिक्त आय भी हुई।
श्रीमती प्रियंका ने रत्नागिरी स्थित क्षेत्रीय नारियल अनुसंधान स्टेशन से नारियल और मसाला खेती पर एक पांच दिवसीय व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया। इसके अलावा, उन्होंने नारियल के पेड़ों पर चढ़ने की तकनीक (एफओसीटी) और नर्सरी प्रबंधन के लिए भी प्रशिक्षण लिया। इन प्रशिक्षणों ने उन्हें अपनी फसल प्रबंधन क्षमताओं को और सशक्त किया।
वित्तीय लाभ और आर्थिक स्थिरता
प्रियंका ने अपनी मेहनत और नई तकनीकों का उपयोग करते हुए अपनी खेती को एक व्यावसायिक स्तर पर पहुंचाया। उनके उद्यम से प्राप्त आय का विवरण निम्न तालिका में दर्शाया गया है:
उत्पादन का प्रकार | उत्पादन क्षमता | बिक्री दर (₹) | वार्षिक टर्नओवर (₹) | खर्च (₹) | शुद्ध लाभ (₹) |
नारियल और मसाले | 6,000 यूनिट | 22/यूनिट | 1,32,000 | 46,000 | 86,000 |
दालचीनी (Cinnamon) | 6 किलोग्राम | 500/किलो | 3,000 | 1,140 | 1,860 |
वर्मी-कम्पोस्ट | 12 टन | 15/किलो | 2,25,000 | 68,000 | 1,56,000 |
वर्मी-कल्चर | 8,000 यूनिट | 800/यूनिट | 8,000 | 3,600 | 4,400 |
ब्लैक पेपर नर्सरी | 5,000 पौधे | 15/पौधा | 75,000 | 28,000 | 47,000 |
बुश पेपर नर्सरी | 1,000 पौधे | 70/पौधा | 70,000 | 19,000 | 51,000 |
कुल आय: 5,73,000 रुपये
कुल शुद्ध लाभ: 3,88,260 रुपये
भविष्य की योजनाएं
प्रियंका अब अपनी कृषि गतिविधियों को और विस्तार देने की योजना बना रही हैं। वह वर्जिन कोकोनट ऑयल उत्पादन शुरू करने पर विचार कर रही हैं, जिससे उनकी आय में और वृद्धि हो सके। इसके अलावा, वह ग्रामीण महिलाओं को वर्मी-कम्पोस्टिंग और मसाला खेती में प्रशिक्षित करने की दिशा में भी काम कर रही हैं।
“कृषि में नवाचार से न केवल आर्थिक स्थिरता प्राप्त की जा सकती है, बल्कि इसे एक प्रेरणादायक व्यवसाय के रूप में भी स्थापित किया जा सकता है,” प्रियंका ने कहा।
प्रियंका की यह यात्रा यह संदेश देती है कि सीमित संसाधनों और पारंपरिक ढांचों के बावजूद, इच्छाशक्ति और नवीन सोच के सहारे किसी भी क्षेत्र में सफलता पाई जा सकती है। उनकी कहानी ग्रामीण किसानों और उद्यमियों के लिए प्रेरणा है।
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