फसल की खेती (Crop Cultivation)

ड्रैगन फ्रूट की खेती

आकाश जोशी, आदेश गुर्जर, अजय पटेल, सेज विश्वविद्यालय, इंदौर

12 अप्रैल 2024, भोपाल: ड्रैगन फ्रूट की खेती – ड्रैगन फ्रूट की खेती फल के रूप में की जाती है। यह अमेरिकी मूल का फल है, जिसे इजऱाइल, श्रीलंका, थाईलैंड, वियतनाम में अधिक मात्रा में उगाया जाता है। भारत में इसे पिताया नाम से भी जानते हैं। ड्रैगन फ्रूट का इस्तेमाल काट कर खाने के लिए किया जाता है, और फलों के अंदर कीवी की तरह ही बीज पाए जाते है। इसके फल का इस्तेमाल खाद्य पदार्थों को बनाने के लिए भी किया जाता है। जिसमे इसके फल से जैम, जेली, आइसक्रीम, जूस और वाइन को तैयार किया जाता है, तथा पौधों को सजावट के लिए इस्तेमाल में लाते है। ड्रैगन फ्रूट का सेवन कर मधुमेह और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित कर सकते हैं। यह बहुत ही लाभकारी फल है, जिसकी मांग अब भारत में अधिक मात्रा में होने लगी है।

ड्रैगन फ्रूट के पौध की रोपाई का तरीका और समय

ड्रैगन फ्रूट के बीजों की रोपाई बीज और पौध दोनों ही तरीकों से की जा सकती है। किन्तु पौध के माध्यम से पौधों की रोपाई करना सबसे अच्छा होता है। पौध के माध्यम से की गयी रोपाई के पश्चात पौधा पैदावार देने में दो वर्ष का समय ले लेता है। इसलिए आप किसी सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से पौधों को खरीद सकते है। यदि आप रोपाई बीज के रूप में करना चाहते है, तो आपको पैदावार प्राप्त करने में 6 से 7 वर्ष तक इंतजार करना पड़ सकता है। खऱीदे गए पौधों को खेत में तैयार गड्ढों में लगाना होता है, गड्ढे के चारों ओर सपोर्टिंग सिस्टम को तैयार कर लें। इसके पौधों की रोपाई के लिए जून और जुलाई का महीना सबसे उपयुक्त होता है। इस दौरान बारिश का मौसम होता है, जिससे पौध विकास के लिए अनुकूल वातावरण मिल जाता है। सिंचित जगहों पर पौधों की रोपाई फऱवरी से मार्च के माह तक भी की जा सकती है। एक हेक्टेयर के खेत में तकऱीबन 4450 पौधे लगाए जा सकते हैं।

Advertisement
Advertisement

ड्रैगन फ्रूट की खेती कैसे होती है

ड्रैगन फ्रूट की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है। इसकी खेती में भूमि उचित जल निकासी वाली होनी चाहिए, क्योंकि जल भराव में पौधों को कई तरह के रोग लग जाते हैं। इसकी खेती में भूमि का पी.एच. मान 6 से 7 के मध्य होना चाहिए। भारत में ड्रैगन फ्रूट को गुजरात, दिल्ली, महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों में उगाया जाता है। इसके पौधों को उष्णकटिबंधीय जलवायु की जरूरत होती है।

जिस वजह से इसे गर्म मौसम की जरूरत होती है, तथा सामान्य बारिश भी उपयुक्त होती है। किन्तु सर्दियों में गिरने वाला पाला पौधों को हानि पहुंचाता है। ड्रैगन फ्रूट के पौधों को आरम्भ में 25 डिग्री तापमान तथा पौधों पर फल बनने के दौरान 30 से 35 डिग्री तापमान चाहिए होता है। इसके पौधे न्यूनतम 7 डिग्री तथा अधिकतम 40 डिग्री तापमान पर ही ठीक से विकास कर सकते है।

Advertisement8
Advertisement

ड्रैगन फ्रूट उपयोग के लाभ

ड्रैगन फ्रूट में कई तरह से पोषक तत्व पाए जाते हैं, जिस वजह से यह फल अधिक लाभदायक होता है। यह बीमारियों को ख़त्म तो नहीं करता है, किन्तु बीमारी के लक्षणों को बढऩे से रोकता है, और शरीर को आंतरिक विकारों से लडऩे में सहायता प्रदान करता है।

Advertisement8
Advertisement

डायबिटीज में लाभकारी: इस रोग को सबसे खतरनाक रोगों में गिना जाता है। ड्रैगन फ्रूट के फल में नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट के अलावा फेनोलिक एसिड, फाइबर, फ्लेवोनोइड और एस्कॉर्बिक एसिड की पर्याप्त मात्रा पायी जाती है। जो शरीर में ब्लड शुगर को बढऩे से रोकता है। जिन लोगों को डायबिटीज की समस्या नहीं है। वह इस फल का सेवन कर डायबिटीज़ के शिकार होने से बच सकते हैं।

हृदय की समस्याओं में लाभकारी

  • कैंसर के रोग में
  • कोलेस्ट्रॉल
  • पेट संबंधी विकारों में
  • गठिया में सहायक
  • इम्युनिटी बढ़ाने के लिए
  • डेंगू में लाभकारी

ड्रैगन की उन्नत किस्में

भारत में ड्रैगन फ्रूट की तीन किस्में ही उगाई जाती है। इसकी किस्मों को फलों और बीजों के रंग के आधार पर विभाजित किया गया है।

सफेद ड्रैगन फ्रूट

ड्रैगन फ्रूट की इस कि़स्म को भारत में अधिक मात्रा में उगाया जाता है। क्योंकि इसका पौधों आसानी से प्राप्त हो जाता है। इसके पौधों पर निकलने वाले फलों का भीतरी भाग सफ़ेद और छोटे-छोटे बीजों का रंग काला होता है। इस कि़स्म का बाज़ारी भाव अन्य किस्मों से थोड़ा कम होता है।

लाल गुलाबी

Advertisement8
Advertisement

यह कि़स्म भारत में बहुत ही कम उगाई जाती है। इसके पौधों पर निकलने वाले फलों का ऊपरी और आंतरिक रंग गुलाबी होता है। यह फल खाने में अधिक स्वादिष्ट होता है। इस कि़स्म का बाज़ारी भाव सफ़ेद वाले फलों से अधिक होता है।

पीला

इस कि़स्म का उत्पादन भी भारत में बहुत ही कम होता है। इसमें पौधों पर आने वाले फलों का बाहरी रंग पीला और आंतरिक रंग सफ़ेद होता है। यह फल स्वाद में काफी अच्छा होता है, जिसकी बाज़ारी कीमत भी सबसे अधिक होती है।

खेत की तैयारी, उवर्रक

ड्रैगन फ्रूट की फसल को खेत में लगाने से पूर्व खेत को ठीक तरह से तैयार कर लेना होता है। इसके लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर दी जाती है, इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते हंै। जुताई के बाद खेत में पानी लगाकर पलेवा कर दें। इसके बाद खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है। जिससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। भुरभुरी मिट्टी को पाटा लगाकर समतल कर दिया जाता है। समतल खेत में पौधों की रोपाई के लिए गड्ढों को तैयार कर लिया जाता है। इन गड्ढों को पंक्तियों में तैयार किया जाता है, जिसमे प्रत्येक गड्ढे को तीन मीटर की दूरी रखी जाती है। यह सभी गड्ढे डेढ़ फ़ीट गहरे और 4 फ़ीट चौड़े व्यास के होने चाहिए। गड्ढों की पंक्तियों के मध्य चार मीटर की दूरी होनी चाहिए।

गड्ढे बनाने के पश्चात् गड्ढों को उचित मात्रा में उवर्रक देना होता है, जिसके लिए प्राकृतिक और रासायनिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए 10 से 15 किलोग्राम पुरानी गोबर की खाद के साथ 50 से 70 किलोग्राम एन.पी.के. की मात्रा को मिट्टी में अच्छे से मिलाकर गड्ढों में भर दिया जाता है। इसके बाद गड्ढों की सिंचाई कर दी जाती है। उवर्रक की इस मात्रा को तीन वर्ष तक पौधों को दें।

पौधों की सिंचाई

ड्रैगन फ्रूट के पौधों को कम ही पानी की आवश्यकता होती है। गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को सप्ताह में एक बार तथा सर्दियों में 15 दिन में एक बार पानी देना होता है। बारिश के मौसम में समय पर बारिश न होने पर ही पौधों की सिंचाई करें। जब इसके पौधों पर फूल आना शुरू कर दें उस दौरान पौधों को पानी बिल्कुल न दें, तथा खेत में फल बनने के दौरान नमी बनाये रखें। इससे अच्छी गुणवत्ता वाले फल प्राप्त होते हैं। पौधों की सिंचाई के लिए ड्रिप विधि का इस्तेमाल सबसे अच्छा माना जाता है।

खरपतवार नियंत्रण

ड्रैगन फ्रूट की फसल में भी खरपतवार नियंत्रण की जरूरत होती है। इसके लिए पौधों की निराई – गुड़ाई की जाती है। इसकी पहली गुड़ाई पौध रोपाई के एक माह पश्चात् की जाती है, तथा बाद की गुड़ाइयों को खेत में खरपतवार दिखाई देने पर करें। ड्रैगन फ्रूट की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक विधि का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

कीमत, पैदावार और लाभ

ड्रैगन फ्रूट की पहली फसल से 400 से 500 किलो का उत्पादन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्राप्त हो जाता है। किन्तु जब पौधा 4 से 5 वर्ष पुराना हो जाता है, तो यदि उत्पादन बढ़कर 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर हो जाता है। ड्रैगन फ्रूट के एक फल का वजन 400 से 800 ग्राम तक होता है। जिसका बाज़ारी भाव 150 से 300 रूपए प्रति किलो तक होता है। किसान भाई इसकी पहली फसल से 60,000 से लेकर डेढ़ लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते हंै, तथा चार से पांच वर्ष पुराने पौधों से अधिक पैदावार प्राप्त कर 30 लाख तक की कमाई प्रति वर्ष कर किसान भाई अधिक मात्रा में लाभ कमा सकते है।

(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)

(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़,  टेलीग्रामव्हाट्सएप्प)

Advertisements
Advertisement5
Advertisement