फसल की खेती (Crop Cultivation)

धान में बकानी और झुलसा दिखे? घबराएं नहीं, ये है उपाय

26 जुलाई 2025, नई दिल्ली: धान में बकानी और झुलसा दिखे? घबराएं नहीं, ये है उपाय – भारत में धान की खेती किसानों की आय का एक प्रमुख स्रोत है। लेकिन विभिन्न रोगों के कारण फसल को नुकसान पहुंच सकता है, जिससे किसानों को आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। पूसा संस्थान के विशेषज्ञों ने हाल ही में धान की फसल में आने वाले प्रमुख रोगों और उनके प्रबंधन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी साझा की है। इस लेख में, हम आपको बताएंगे कि कैसे आप अपनी धान की फसल को स्वस्थ रख सकते हैं और अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं।

बकानी रोग: लक्षण और उपचार

बकानी रोग धान की फसल में एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है। इस रोग से प्रभावित पौधे असामान्य रूप से लंबे हो जाते हैं, पीले और पतले दिखते हैं, और इनमें दाने कम बनते हैं। कुछ दिनों बाद ये पौधे सूख जाते हैं।

उपचार के तरीके:

  • पौध उपचार: जिन किसानों ने अभी रोपाई नहीं की है, वे कार्बेन्डाजिम 50% WP (400 ग्राम 200 लीटर पानी में) या टेबुकोनाज़ोल + ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन (100 ग्राम 200 लीटर पानी में) का घोल बनाएं। पौधों की जड़ों को इस घोल में 12 घंटे तक डुबोएं और फिर रोपाई करें।
  • नर्सरी उपचार: यदि पौध उपचार संभव न हो, तो नर्सरी में कार्बेन्डाजिम 50% WP (500 ग्राम 200 लीटर पानी में) का छिड़काव करें और 3 दिन बाद रोपाई करें।
  • रोपाई के बाद: यदि खेत में बकानी रोग दिखाई दे, तो उपरोक्त फफूंद नाशी दवाओं का छिड़काव करें।

झोंका रोग: रोकथाम के उपाय

झोंका या ब्लास्ट रोग भी धान की फसल के लिए खतरा है। इस रोग में पत्तियों पर आंख या नाव के आकार के धब्बे बनते हैं, जो बाद में आपस में मिलकर पत्तियों को सूखा देते हैं।

रोकथाम का तरीका:

  • टेबुकोनाज़ोल + ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन (75 WG) (100 ग्राम 200 लीटर पानी में) का घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • विशेषज्ञों की सलाह है कि ट्राईसाइक्लाजोल का प्रयोग न करें।

जीवाणु झुलसा: दो चरणों में प्रबंधन

जीवाणु झुलसा या बैक्टीरियल ब्लाइट दो चरणों में फसल को प्रभावित करता है: क्रेसिक और पर्ण झुलसा।

उपचार के तरीके:

  • क्रेसिक चरण: नर्सरी से रोपाई के 10-12 दिन तक यह समस्या दिखाई दे सकती है। स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (60 ग्राम 200 लीटर पानी में) का घोल बनाकर पौधों को 1 घंटे तक उपचारित करें, फिर रोपाई करें।
  • पर्ण झुलसा चरण: स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (40 ग्राम 200 लीटर पानी में) का छिड़काव करें। 10-12 दिन बाद कॉपर ऑक्सी क्लोराइड (500 ग्राम 200 लीटर पानी में) का छिड़काव करें।

अचल झुलसा: सावधानी और नियंत्रण

अचल झुलसा या शीत ब्लाइट उन खेतों में ज्यादा देखा जाता है, जहां पिछले साल भी यह रोग था। इसमें पौधों के निचले हिस्से पर गोलाकार या अंडाकार धब्बे बनते हैं, जो ऊपर की ओर बढ़ते हैं।

नियंत्रण के तरीके:

  • वैलिडामाइसिन (500 मिलीलीटर 200 लीटर पानी में) या हेक्साकोनाज़ोल (400 ग्राम 200 लीटर पानी में) का छिड़काव करें।
  • रोग दिखने पर नाइट्रोजन की टॉप ड्रेसिंग बंद कर दें।

जैविक खेती का विकल्प

जो किसान जैविक खेती करते हैं, उनके लिए स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस (5-10 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव एक प्रभावी और सुरक्षित उपाय है।

“थोड़े से रोग के दिखने पर घबराने की जरूरत नहीं है। जब रोग 3 से 5% तक फैल जाए, तभी फफूंद नाशी दवाओं का इस्तेमाल करें,” पूसा संस्थान के विशेषज्ञ बताते हैं। साथ ही, जहां पौधे सूख गए हों, वहां गैप फिलिंग के लिए उपचारित पौधों का इस्तेमाल करें।

धान की फसल में रोगों की पहचान और समय पर उपचार से न केवल फसल सुरक्षित रहती है, बल्कि उपज भी बढ़ती है। इन आसान उपायों को अपनाकर किसान अपनी मेहनत को सफल बना सकते हैं।

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