फसल की खेती (Crop Cultivation)

प्राकृतिक कृषि के विभिन्न घटक

30 मई 2023, भोपाल ।  प्राकृतिक कृषि के विभिन्न घटक पेड़-पौधों की वृद्धि और उनसे अच्छा उत्पादन लेने के लिए जिन-जिन संसाधनों की आवश्यकता होती है, उन सभी संसाधनों को पौधों को उपलब्ध कराने के लिए प्रकृति को बाध्य करना ‘प्राकृतिक कृषि’ कहलाती है। मुख्य फसल का लागत मूल्य सहयोगी फसलों में से लेना और मुख्य फसल बोनस के रूप में प्राप्त करना सही रूप में कम लागत ‘प्राकृतिक खेती’ है।

प्राकृतिक कृषि (खेती) के सिद्धान्त :-

देशी गाय 

यह कृषि मुख्य रूप से देशी गाय पर आधारित है। देशी गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से 500 करोड़ तक सूक्ष्म जीवाणु होते हैं जबकि विदेशी गाय के एक ग्राम गोबर में केवल 78 लाख सूक्ष्म जीवाणु पाये जाते हैं। देशी गाय के गोबर एवं मूत्र की महक से देशी केंचुए भूमि की सतह पर आ जाते हैं और भूमि को उपजाऊ बनाते हैं। देशी गाय के गोबर में 16 मुख्य पोषक तत्व होते हैं। ये 16 तत्व ही हमारे पौधों के विकास के लिए उपयोगी हैं। इन्हीं 16 पोषक तत्वों को पौधे भूमि से लेकर अपने शरीर का निर्माण करते हैं। ये 16 तत्व देशी गाय के आंत में निर्मित होते हैं, इसलिए देशी गाय प्राकृतिक कृषि की मूलाधार है।

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जुताई 

प्राकृतिक कृषि में गहरी जुताई नहीं की जाती क्योंकि यह भूमि की उपजाऊ शक्ति को कम कर देती है। 36 डिग्री तापमान होते ही भूमि से कार्बन उठना शुरू हो जाता है और ह्यूमस की निर्माण -क्रिया रूक जाती है जिसके कारण भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है।

जल प्रबंधन 

प्राकृतिक कृषि में सिंचाई पौधों से कुछ दूरी पर की जाती है। इसमें मात्र 10 प्रतिशत जल का ही उपयोग होता है जिससे 90 प्रतिशत जल की बचत हो जाती है। पौधों को कुछ दूरी से जल देने पर पौधों की जड़ों की लम्बाई बढ़ जाती है। जड़ों की लम्बाई बढ़ जाने से पौधों के तनों की मोटाई बढ़ जाती है। इस क्रिया से पौधों की लम्बाई भी बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप उत्पादन बढ़ जाता है।
पौधों की दिशा : प्राकृतिक कृषि में पौधों की दिशा उत्तर-दक्षिण होती है जिससे पौधों को सूर्य का प्रकाश अधिक समय तक मिलता रहे। एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी बढ़ाये जाने के कारण भी पौधों को अधिक मात्रा में सूर्य से ऊर्जा प्राप्त होती है, जिससे पौधे अपने शरीर का निर्माण करते हैं। इससे पौधों पर किसी भी प्रकार के कीट लगने की संभावना भी कम हो जाती है और पौधों में पोषक तत्व भी संतुलित मात्रा में संचित होते हैं। पौधों की दिशा उत्तर-दक्षिण होने से उत्पादन 20 प्रतिशत बढ़ जाता है।

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सहयोगी फसलें 

प्राकृतिक कृषि में मुख्य फसल के साथ सहयोगी फसलों की खेती भी एक साथ की जाती है जिससे मुख्य फसल को नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश आदि मिलता रहे। सहयोगी फसलों की जड़ों के पास नाइट्रोजन स्थिरक जीवाणु जैसे राइजोबियम, एजोस्पिरीलम, एजेटोबेक्टर आदि की मदद से पौधों का विकास होता है। प्राकृतिक कृषि में मुख्य फसलों के साथ सहयोगी फसलें लगाने से मुख्य फसल पर कीट नियंत्रण भी साथ-साथ होता है।

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आच्छादन

भूमि की सतह के ऊपर फसलों के अवशेष को ढकना ‘आच्छादन’ कहलाता है। इससे पानी की बचत होती है और भूमि से कार्बन भी नहीं उड़ता, जिससे भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ती है। आच्छादन हवा से नमी एकत्र करता है और पौधों को प्रदान करता है, इससे सूक्ष्म पर्यावरण का निर्माण होता है और देशी केंचुओं की गतिविधियां बढ़ जाती हैं। देशी केंचुए अपनी विष्ठा भूमि की सतह पर डालते हैं। केंचुओं की विष्ठा में सामान्य मिट्टी से 7 गुना नाइट्रोजन, 9 गुना फास्फोरस और 11 गुना पोटाश आदि होते हैं जिससे भूमि शीघ्र सजीव हो उठती है।

सूक्ष्म पर्यावरण 

प्राकृतिक कृषि में 65 प्रतिशत से 72 प्रतिशत तक नमी, 25 डिग्री से 32 डिग्री तक वायु का तापमान, भूमि के अंदर अंधेरा, वापसा, ऊब और छाया चाहिए। इन परिस्थितियों के निर्माण को ‘सूक्ष्म पर्यावरण’ कहते हैं। ये परिस्थितियां आच्छादन द्वारा निर्मित की जाती हैं। ‘आच्छादन’ करने से भूमि में अंधेरा, नमी, वापसा, ऊब और छाया का निर्माण होता है।

केषाकर्षण शक्ति (पृष्ठ तनाव Capillary Action) 

प्राकृतिक कृषि में पौधे केषाकर्षण शक्ति के द्वारा मिट्टी की गहराई से पोषक तत्वों को प्राप्त कर लेते हैं जिससे भूमि में जीवाणु की गतिविधियां बढ़ जाती हैं। भूमि के 5 इंच नीचे की मिट्टी में जीवाणु पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। रासायनिक खेती में रासायनिक खादों के कारण केषाकर्षण शक्ति कार्य नहीं कर पाती क्योंकि मिट्टी के दो कणों के बीच 50 प्रतिशत नमी व 50 प्रतिशत हवा का संचरण होना चाहिए। रासायनिक खादों से नमक (नैपदा) जमा हो जाता है, जैसे यूरिया में 46 प्रतिशत नाइट्रोजन और 54 प्रतिशत नैपदा (नमक) होता है जो मिट्टी के दो कणों के बीच में जमा हो जाता है। मिट्टी की गहराई में पोषक तत्वों का भंडार होते हुए भी पौधे उन्हें प्राप्त नहीं कर पाते क्योंकि कृषि में केंचुओं की गतिविधियां बढ़ जाने के कारण मिट्टी के दो कणों के बीच 50 प्रतिशत नमी और 50 प्रतिशत हवा का संचरण होता है जिससे प्राकृतिक कृषि में शक्ति का उपयोग करके पौधे अपना विकास कर लेते हैं और अच्छा उत्पादन देने में समर्थ हो जाते हैं।

देशी केंचुओं की गतिविधियां 

हमारे देशी केंचुए धरती माता के हृदय स्थान हैं क्योंकि जैसे हमारा हृदय धडक़ता है, उसी तरह केंचुए भूमि के अंदर जब ऊपर-नीचे आवागमन करते हैं तो इससे भूमि में स्पंदन होता है। देशी केंचुए मानो भूमि की जुताई कर रहे हैं। ये भूमि के अन्दर छेद कर अपनी विष्ठा से भूमि की सतह को खाद्य तत्वों से समृद्ध बनाते हैं लेकिन केंचुओं की गतिविधियों के लिए भूमि की सतह पर आच्छादन चाहिए। भूमि पर अंधेरा होने से सूक्ष्म पर्यावरण का निर्माण होगा। अगर सूक्ष्म पर्यावरण का निर्माण नहीं होता है तो केंचुए अपना कार्य नहीं कर पाते हैं और भूमि बलवान नहीं हो पाती, इसलिए प्राकृतिक कृषि में आच्छादन एक मुख्य घटक होता है।


गुरुत्वाकर्षण बल 

प्राकृतिक कृषि में गुरुत्वाकर्षण बल की मदद से पोषक तत्वों को पौधे बड़ी आसानी से प्राप्त कर लेते हैं क्योंकि जिस पोषक तत्व को पौधा जहां से उठाता है वहां उसको जाना ही पड़ता है। जैसे पौधा अपने शरीर के निर्माण में हवा से 78 प्रतिशत पानी लेता है लेकिन अपने जीवन की समाप्ति पर वह पुन: हवा को ही लौटा देता है। यह कार्य गुरुत्वाकर्षण आदि प्राकृतिक बल की मदद से पूर्ण हो जाता है।

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भवंडर 

प्राकृतिक कृषि में भवंडर की मदद से संतुलित वर्षा होती है। वर्षा द्वारा हवा से नाइट्रोजन प्राप्त करके पौधे विकसित होते हैं। भवंडर सदैव अलग-अलग स्थान पर आते हैं जिससे धरती पर पानी की उपलब्धता बनी रहती है और भूमि में पानी का स्तर बढ़ जाता है। वर्षा का सारा पानी भूमि में ही समा जाने के कारण भूमि मुलायम बन जाती है जिससे सूक्ष्म जीव अपना कार्य तेजी से करते हैं। इस तूफान से पौधों के पत्तों में गतिविधियां बढ़ जाती हैं जिससे पौधे सौर ऊर्जा को अच्छी प्रकार से प्राप्त कर उत्पादन में बढ़ोतरी करते हैं।

देशी बीज 

प्राकृतिक कृषि में देशी बीजों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि देशी बीज पोषक तत्व कम लेकर उत्पादन अधिक देते हैं।

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