फसल की खेती (Crop Cultivation)

कीट नियंत्रण से होगा भरपूर कपास

हरा मच्छर या फुदका – इस कीट के शिशु एवं वयस्क दोनों प्राय: पत्तियों की निचली सतह एवं अन्य पौध भागों की सतह से रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं।

सफेद मक्खी- इस कीट के शिशु एवं वयस्क दोनों प्राय: पत्तियों की निचली सतह व अन्य मुलायम पौध भागों से रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं। पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती है। सूखी हुई पत्तियां, कलियां, फूलपुड़ी एवं घेटे गिरने लगते हैं। अत्यधिक कीट प्रकोप होने पर पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है, घेटे सही ढंग से नहीं खुलते या उनमें बनने वाली रूई में गुणात्मक व परिणामात्मक हृास दिखाई देता है।

Advertisement
Advertisement

माहो – इस कीट के सुस्त प्रकृति के शिशु एवं वयस्क मुलायम शाखाओं एवं पत्तियों की निचली सतह पर बड़ी संख्या में पाए जाते हैं ये रसपान कर हानि पहुंचाते हैं। अत्यधिक प्रकोप की स्थिति में पत्तियां सिकुड़कर पीली पड़ जाती हैं, पौधों की वृद्धि रूक जाती है और वह मुरझाकर सूख जाते हैं।

तेला – तेला फसल की आरंभिक अवस्था से परिपक्वता तक हानि पहुंचाता है। आरंभिक अवस्था की फसल पर कीट प्रकोप होने पर पत्तियां रजत श्वेत दिखाई देती हैं और क्रमश: पीली पड़कर सिकुड़ जाती है। फसल की बढ़वार अवस्था में कीट प्रकोप होने पर पत्तियां ताम्बाई भूरी या काली दिखाई देने लगती है।

Advertisement8
Advertisement

लाल मत्कुण – प्रकोपित घेटे छोटे रह जाते हैं व समय से पूर्व खुल जाते हैं और इनमें रूई खराब हो जाती है। घेटों में कीट द्वारा रस निचोडऩे एवं कीट के पीले मल के कारण रूई बदरंगी हो जाती है। इसके अतिरिक्त नेमोटोस्पोरा गोसीपी नामक जीवाणु के कारण भी रुई बदरंगी होती है। रुई का बाजार मूल्य घट जाता है।

Advertisement8
Advertisement

मिली बग – कपास की फसल को इस कीट की शिशु एवं पंखहीन मादा द्वारा हानि पहुंचायी जाती है। कीट की ये अवस्थाएं पौधों के तने शाखाओं, पर्ण वृन्तों, पत्तियों, फूलपुड़ी-घेटों एवं कभी-कभी जड़ों पर भी समूहों में पायी जाती है। यह शाखाओं एवं पत्तियों पर अधिक रहना पसन्द नहीं करती है।
डस्की काटन बग – इस कीट के शिशु एवं वयस्क अपरिपक्व बीजों से रस चूसते हैं ये बीज फलत: पक नहीं पाते हैं। प्रभावित बीजों का रंग भी चला जाता है और वे वजन में हल्के रह जाते हैं। कारखानों में रुई की जीनिंग के समय कीट की वयस्क अवस्था पायी जाती है। इस कारण ऐसे कपास के बदरंग होने के कारण उसका बाजार मूल्य कम मिलता है।
हरी इल्ली या अमेरिकन डेन्डू छेदक – इस कीट की केवल इल्ली अवस्था फसलों के लिए हानिकारक होती है।
चितकबरी इल्ली – इस कीट की केवल इल्ली अवस्था हानिकारक होती है। फसल की आरंभिक अवस्था में यह विकसित हो रहे पौधे के ऊपरी सिरे से मुख्य तने में प्रवेश कर सुरंग बनाकर हानि पहुंचाती है।

गुलाबी डेन्डू छेदक – इस कीट की इल्ली अवस्था कलियों, फूलों, फूलपुडिय़ों, विकसित एवं विकसित हो रहे घेटों व उनमें बन रहे बीजों को हानि पहुंचाती है।
तम्बाकू की इल्ली – इस कीट की केवल इल्ली अवस्था फसल को हानि पहुंचाती है। यह आरंभ में पत्तियों की निचली सतह पर रहकर हरे पदार्थ को खाती है तत्पश्चात ये सम्पूर्ण खेत में बिखरकर पत्तियों को खाती है और अत्यधिक प्रकोप की स्थिति में पत्तियों की केवल शिराएं शेष रह जाती हैं ये फूलों, कलियों, फूलपुड़ी एवं घेटों को भी महत्वपूर्ण क्षति पहुंचाती है।
ग्रेव्हीविल – कीट की इल्ली एवं वयस्क दोनों अवस्थाएं फसल के लिए हानिकारक होती हैं। इल्ली (ग्रब) भूमि में रहती है और जड़ों व अंकुरित हो रही पौध को हानि पहुंचाती हैं।

अर्धकुण्डलक इल्ली – इस कीट की केवल इल्ली अवस्था पत्तियों पर छोटे-छोटे छिद्र कर हानि पहुंचाती है। बाद की अवस्था में या अधिक प्रकोप की स्थिति में इल्लियां सम्पूर्ण पत्तियों को काटकर नष्ट कर देती है।

गेहूं की फसल को चूहों से बचाने के उपाय बतायें

Advertisements
Advertisement5
Advertisement