फसल की खेती (Crop Cultivation)

खीरे की उन्नत खेती

लेखक: सुरेश कुमावत, ड़ॉ. आर के जाखड़, महावीर मेघवाल,रविकांत शर्मा, मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन, कृषि महाविद्यालय, बीकानेर, एस.के.आर.ए.यू. बीकानेर

17 जनवरी 2025, नई दिल्ली: खीरे की उन्नत खेती – आज के आधुनिक युग में प्रत्येक उन्नत किसान वैज्ञानिक तरीके से सब्जियों की खेती करके कम समय में अधिक से अधिक लाभ ले रहा है। खीरे की खेती भी इन में से एक है जो किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रही है। खीरा एक सलाद के लिए मुख्य फसल समझी जाती है। इसकी खेती सम्पूर्ण भारतवर्ष के सभी भागों में की जाती है। खीरे की फसल बसंत तथा ग्रीष्म ऋतु में बोई जाती है। इस फसल के फलों को अधिकतर हल्के भोजन के रुप में इस्तेमाल करते हैं जिसमें कि पानी की मात्रा अधिक होती है। किसान भाई जिनके पास ऐसी भूमि है, जिसमे दूसरी फसलों का उत्पादन अच्छा नहीं होता है, उसी भूमि में खीरे की खेती से अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है।

मिट्टी – खीरे की अच्छी पैदावार के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट एवं बलुई दोमट भूमि उत्तम मानी जाती है। खीरा की खेती के लिए भूमि का पीएच 5.5 से 6.8 तक अच्छा माना गया हैै। नदियों की तलहटी में भी इसकी खेती अच्छी पैदावार देती है। बगीचों के लिये भी यह फसल उपयोगी है जोकि आसानी से बोई जा सकती है। अधिक लम्बी बेल व बढऩे वाली किस्म को चुने तथा अपने खेत को ठीक प्रकार से खोदकर समतल करें और देशी खाद मिला देना अच्छा होता है। खेत में छोटी-छोटी क्यारियां बनाकर तैयार करें।

उन्नत किस्में- टेर्मिनेटर, सेटीश, कियान, इनफाइनीटी, हिल्टन, मल्टीस्टार, डायनेमिक, काफका आदि।

खेत की तैयारी- खीरे की फसल के लिए खेत की कोई खास तैयारी करने की आवश्यकता नही पड़ती है। क्योंकि इसकी फसल के लिए खेत की तैयारी भूमि की किस्म के उपर निर्भर होती है। बलुई भूमि के लिये अधिक जुताई की आवश्यकता नहीं होती। 2-3 जुताई से ही खेत तैयार हो जाता है। जुताई के बाद खेत में पाटा लगाकर क्यारियां बना लें। भारी-भूमि की तैयारी के लिये अधिक जुताई की आवश्यकता पड़ती है। बगीचों के लिये भी यह फसल उपयोगी है। जोकि आसानी से बुवाई की जा सकती है।

खेत की बिजाई – खीरे की फसल के लिए खेतों में बिजाई का सही समय फरवरी-मार्च है।

बीज की मात्रा- एक हेक्टेयर भूमि के लिए 2.5 से 4 किलो बीज पर्याप्त होता है।

खाद व उर्वरक- खीरे की फसल के लिये देशी खाद की 20-25 ट्रैक्टर-ट्रॉली प्रति हेक्टर की दर से मिट्टी में मिलायें। यह खाद खेत की जुताई करते समय ही मिला दें तथा रसायनिक खादों की अलग मात्रा अच्छे उत्पादन के लिये नत्रजन 55-60 किग्रा, 50 किग्रा फॉस्फेट तथा 90 किग्रा पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले तैयारी के समय मिट्टी में मिला दें। शेष नत्रजन की मात्रा बुवाई के 30-45 दिन के बीच पौधों में छिटकें। खीरे की खेती को बगीचे में भी बोया जाता है। खीरा के पौधे के लिए यदि हो सकता है तो राख की मात्रा पौधों पर व भूमि में डालें। पौधों की पत्तियों पर राख बुरकने से कीड़े आदि नहीं लगते हैं। इस प्रकार से 4-5 टोकरियां गोबर की खाद व रसायनिक खाद यूरिया 150 ग्राम, 200 ग्राम डाई अमोनियम फॉस्फेट तथा 250 ग्राम पोटाष 8-10 वर्ग मी. की दर से मिट्टी में भली-भांति मिलायें।

खेत की सिंचाई- बरसात में ली जाने वाली फसल के लिए प्राय सिंचाई की आवश्यकता कम पड़ती है। यदि वर्षा लम्बे समय तक नहीं होती है तो अवश्य ही सिंचाई कर दें। गर्मी की फसल में सिंचाई की जरुरत समय-समय पर पड़ती है इसके लिए आवश्यकतानुसार 7-8 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें। बेलों पर फल लगते समय नमी का रहना बहुत जरुरी है। अगर खेत में नमी की कमी हो तो फल कड़वे भी हो सकते हैं।

खरपतवार नियंत्रण– किसी भी फसल की अच्छी पैदावार लेने के लिए खेत में खरपतवारों का नियंत्रण करना बहुत जरुरी है। इसी तरह खीरे की भी अच्छी पैदावार लेने के लिए खेत को खरपतवारों से साफ रखें। इसके लिए गर्मी में 2-3 बार तथा बरसात में 3-4 बार खेत की निराई-गुड़ाई करें। लता की वृद्धि की प्रारंभिक अवस्था निराई-गुड़ाई करने से पौधों का अच्छा विकास होता है, और फलन भी अधिक होता है। लता की पूर्व वृद्धि हो जाने पर बड़े-बड़े खरपतवारों को हाथ से उखाड़ दें।

उपज– प्रति हेक्टेयर 80 से 100 क्विंटल खीरे की उत्पादता ली जा सकती है।

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