भारत में मधुमक्खी पालन के लिए मुख्य प्रजातियाँ; सबसे अधिक शहद के लिए कौनसी प्रजाति पालें
29 मई 2024, भोपाल: भारत में मधुमक्खी पालन के लिए मुख्य प्रजातियाँ; सबसे अधिक शहद के लिए कौनसी प्रजाति पालें – भारत में मधुमक्खी पालन के लिए पांच प्रजातियाँ पाई जाती हैं। सभी पांचो प्रजातियों में शहद उत्पादन की अलग क्षमताएं हैं। ये प्रजातियां विभिन्न जलवायु परिस्थितियों के लिए अलग हैं तथा मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों के लिए भी अलग हैं। सही प्रजाति के चयन के लिए उस क्षेत्र के तापमान और ऊंचाई के हिसाब से उपयुक्त प्रजाति का चयन करना ज़रूरी है। अगर कोई किसान मैदानी क्षेत्र के लिए पहाड़ों की मूल प्रजाति चुनता है और उससे शहद के ज़्यादा उत्पादन की उम्मीद करता है, तो यह संभव नहीं होगा।
- एपीस डोरसेटा, भंवर या सारंग (Apis dorsata)
- एपीस फलेरिया, छोटी मधुमक्खी (Apis florea)
- एपीस इंडिका, भारतीय मौन (Apis cerana indica)
- एपीस मैलिफेरा, यूरोपियन मधुमक्खी (Apis mellifera)
- मैलापोना ट्राईगोना, भुनगा या डम्भर (Apis melipona)
इनमें प्रथम चार प्रजातियों को पालन हेतु प्रयोग किया जाता है। मैलापोना ट्राईगोना प्रजाति की मधुमक्खी का कोई आर्थिक महत्व नहीं होता है, वह मात्र 20-30 ग्राम शहद ही एकत्रित कर पाती है।
एपीस डोरसेटा – यह स्थानीय क्षेत्रों में पहाड़ी मधुमक्खी के नाम से जानी जाती है। यह मक्खी लगभग 1200 मी. की ऊँचाई तक पायी जाती है व बड़े वृक्षों, पुरानी इमारतों इत्यादि पर ही छत्ता निर्मित करती हैं।अपने भयानक स्वभाव व तेज डंक के कारण इसका पालना मुश्किल होता है। इसमें वर्षभर में 30-40 किलो तक शहद प्राप्त हो जाता है।
एपीस फ्लोरिया – यह सबसे छोटे आकार की मधुमक्खी होती है व स्थानीय भाषा में छोटी या लाइट मक्खी के नाम से जानी जाती है। यह मैदानों में झाड़ियों में, छत के कोनों इत्यादि में छत्ता बनाती है। अपनी छोटी आकृति के कारण ये केवल 200 ग्राम से 2 किलो तक शहद एकत्रित कर पाती है।
एपीस इंडिका – यह भारतीय मूल की ही प्रजाति है व पहाड़ी व मैदानी जगहों में पाई जाती हैं। इसकी आकृति एपीस डोरसेटा व एपीस फ्लोरिया के मध्य की होती है। यह बंद घरों में, गुफाओं में या छुपी हुई जगहों पर घर बनाना अधिक पसंद करती है। इस प्रजाति की मधुमक्खियों को प्रकाश नापसंद होता है। एक वर्ष में इनके छत्ते से 2-5 कि. ग्रा. तक शहद प्राप्त होता है।
एपीस मैलीफेरा – इसे इटेलियन मधुमक्खी भी कहते हैं, यह आकार व स्वभाव में भारतीय महाद्वीपीय प्रजाति है। इसका रंग भूरा, अधिक परिश्रमी आदत होने के कारण यह पालन के लिए सर्वोत्तम प्रजाति मानी जाती है। इसमें भगछूट की आदत कम होती है व यह पराग व मधु प्राप्ति हेतु 2-2.5 किमी की दूरी भी तय कर लेती है। मधुमक्खी के इस वंश से वर्षभर में औसतन 50-60 किग्रा. शहद प्राप्त हो जाता है। सबसे अधिक शहद के लिए मधुमक्खी की एपीस मैलीफेटा प्रजाती को पलना फायदेमंद है। इटेलियन मधुमक्खी पालन में प्रयुक्त मौन गृह में लगभग 40-80 हजार तक मधुमक्खियाँ होती हैं, जिनमें एक रानी मक्खी, कुछ सौ नर व शेष मधुमक्खियाँ होती हैं।
इटेलियन मधुमक्खी
इटेलियन मधुमक्खी पालन में प्रयुक्त मौन गृह में लगभग 40-80 हजार तक मधुमक्खियाँ होती हैं, जिनमें एक रानी मक्खी, कुछ सौ नर व शेष मधुमक्खियाँ होती हैं।