Animal Husbandry (पशुपालन)

पशुओं में एलएसडी बीमारी : जानिये कारण, बचाव एवं उपचार

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पशुओं में एलएसडी बीमारी : जानिये कारण, बचाव एवं उपचार – मवेशियों में फैली बीमारी एलएसडी की जांच पशुपालन विभाग के पशु चिकित्सकों से करवाएं , बचाव के उपाय करें । अपील:- इस रोग में पशु मृत्यु दर नगण्य है। पशुपालकों से आग्रह किया गया है कि एलएसडी से भयभीत न होकर बताये जा रहे तरीकों से पशुओं का बचाव व उपचार करावें। विशेष परिस्थितियों में निकटम पशु चिकित्सक से तत्काल सम्पर्क करें। विभाग के द्वारा बताया गया है, कि ढेलेदार त्वचा रोग ( लम्पी स्कीन डिसीज- एलएसडी) गौवंशीय में होने वाला विषाणुजनित संक्रामक रोग है। जो कि पोक्स फेमिली के वायरस जिससे अन्य पशुओं में पाॅक्स (माता) रोग होता है। वातावरण में गर्मी एवं नमी के बढ़ने के कारण देश के विभिन्न प्रदेशों में जैसे मध्यप्रदेश, उड़िसा, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल के साथ-साथ छत्तीसगढ़ में भी पाया जा रहा है।

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स्वस्थ पशुओं को यह बिमारी एलएसडी संक्रमित पशुओं के सम्पर्क में आने से व वाहक मच्छर/टिक्स (चमोकन) से होता है। एलएसडी की वजह से दुधारू पशुओं में दुध उत्पादन एवं अन्य पशुओं की कार्यक्षमता कम हो जाती है। लक्षण:- एक या दो दिन तेज बुखार, शरीर एवं पांव में सुजन, शरीर में गठान व चकते, गठान का झड़कर गिरना एवं घाव का निर्माण। बचाव:- संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखे, पशुओं एवं पशुघर में टिक्स मारक दवा का उपयोग करें। उपचार:- चूँकि एलएसडी विषाणु जनित रोग है तथा टीका एवं रोग विशेष औषधी न होने के कारण पशु चिकित्सक के परामर्श से लक्षणात्मक उपचार किया जा सकता है। बुखार की स्थिति में पैरासिटामाल, सूजन एवं चर्म रोग की स्थिति में पशु चिकित्सक की सलाह से दवाईयां तथा द्वितीयक जीवाणु संक्रमण को रोकने हेतु 3-5 दिनों तक एन्टीबायोटिक दवाईयों का प्रयोग किया जा सकता है।

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