पशुपालन (Animal Husbandry)

जानिए खिलारी गाय की विशेषतांए, उत्पत्ति व उपयोग

12 अक्टूबर 2023, भोपाल: जानिए खिलारी गाय की विशेषतांए, उत्पत्ति व उपयोग – भारत में गाय का पालन कई वर्षों से चलता आ रहा हैं। किसान कई सदियों से खेती के साथ गायो को भी पाल रहे हैं। भारत में गाय की बहुत सारी देसी नस्लें हैं, जिनकी सबकी अपनी-अपनी खासियत होती हैं। इनमें से आपने विभिन्न प्रजातियों की गायो को देखा होगा और कुछ के बारें सुना भी होगा, इन्हीं में शामिल हैं एक खिलारी गाय, जो पश्चिमी महाराष्ट्र में पायी जाती है।

इस नस्ल को मंदेशी या शिकारी या थिल्लर के नाम से भी जाना जाता है। इस नस्ल का मूल स्थान महाराष्ट्र और कर्नाटक के जिले हैं और यह पश्चिमी महाराष्ट्र में पायी जाती है। इस नस्ल का नाम खिलार शब्द से लिया गया है, जिसका मतलब है पशुओं का झुंड।

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खिलारी गाय की विशेषताएँ

शरीरः खिलारी मवेशी छोटे आकार के जानवर हैं। इनका शरीर बेलनाकार होता हैं और कमर पर छोटा सा कूबड़ निकला होता हैं।

शरीर का रंगः ये सभी किस्में रंग-रूप में काफी भिन्न होती हैं। दक्कन के पठार की खिल्लारी गाय भरे-सफेद रंग की होती हैं। नर मवेशी के आगे और पीछे का हिस्सा गहरे रंग का होता हैं। इसके अलावा यह मवेशी मुख्य रूप से स्लेटी-सफेद रंग की होती हैं।

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सिर व सींगः खिलारी नस्ल की गायो के अंग मजबूत होते हैं। इनके सींग लंबे, सिंर तंग, खाल हल्की (पतली) और छोटे कान होते हैं।

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वजनः इस नस्ल के नर का औसतन भार 450 किलो और मादा गाय का औसतन भार 360 किलो होता है। इसके दूध की वसा लगभग 4.2 प्रतिशत होती है। यह नस्ल एक दिन में औसतन 240-515 किलो दूध देती है।

खिलारी गाय की मुख्य पहचान

ये सभी किस्में रंग-रूप में काफी भिन्न हैं। दक्कन के पठार की खिल्लरी, म्हसवद और अटपाडी महल प्रकार भूरे सफेद रंग के होते हैं, नर के अग्रभाग और पिछले भाग पर गहरा रंग होता है, चेहरे पर अजीब भूरे और सफेद धब्बे होते हैं। खिल्लारी मवेशी छोटे आकार के जानवर हैं।

खिलारी गाय का शरीर बेलनाकार होता हैं।

खिलारी मवेशी की कमर पर छोटा सा कूबड़ निकला होता हैं।

खिलारी मवेशी के सींग लंबे और सिर तंग होता हैं।

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खिलारी गाय के उपयोग

खिलारी मवेशियों का उपयोग मुख्य रूप से भारवाहक पशु के रूप में किया जाता है। इस नस्ल की गायें अच्छी दूध देने वाली नहीं हैं और लाभदायक दूध उत्पादन के लिए उपयुक्त नहीं हैं।

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