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पोषक तत्वों से भरपूर पालक

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जलवायु
पालक की सफलतापूर्वक खेती के लिए ठण्डी जलवायु की आवश्यकता होती है। ठण्ड में पालक की पत्तियों का बढ़वार अधिक होता है जबकि तापमान अधिक होने पर इसकी बढ़वार रूक जाती है, इसलिए पालक की खेती मुख्यत: शीतकाल में करना अधिक लाभकर होता है। परन्तु पालक की खेती मध्यम जलवायु में वर्षभर की जा सकती है।
भूमि का चयन व उसकी तैयारी
पालक की सफलतापूर्वक खेती के लिए उचित जल निकास वाली चिकनी दोमट भूमि अधिक उपयुक्त होती है। पालक की अच्छी बढ़वार के लिए यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भूमि का पी.एच. मान 6 से 7 के मध्य हो। भूमि की तैयारी के लिए भूमि का पलेवा करके जब वह जुताई योग्य हो जाए तब मिट्टी पलटने वाले हल से एक जुताई करना चाहिए, इसके बाद 2 या 3 बार हैरो या कल्टीवेटर चलाकर मिट्टी को भूरभूरा बना लेना चाहिए। साथ ही पाटा चलाकर भूमि को समतल करें।
किस्म चयन
पालक की खेती से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए क्षेत्र विशेष की जलवायु व भूमि के अनुसार किस्मों का चयन करना भी एक आवश्यक कदम है। साथ ही पालक की सफल खेती के लिए चयनित किस्मों की विशेषताओं का भी ध्यान रखना चाहिए। पालक की खेती के लिए कुछ निम्नलिखित किस्मों में से किसी एक किस्म का चयन कर किसान अपनी आय को बढ़ा सकते हैं- ऑलग्रीन, पूसा ज्योति, पूसा हरित, पालक नं. 51-16, वर्जीनिया सेवोय, अर्ली स्मूथ लीफ आदि।
बीज की मात्रा
पालक की खेती के लिए खेत में पर्याप्त मात्रा में बीज की आवश्यकता होती है। अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए सही व उन्नतशील बीज का चयन करना चाहिए, जिसे विश्वसनीय दुकान से पालक बीज प्राप्त करना चाहिए। वैसे एक हे. में 25 से 30 कि.ग्रा. बीज पर्याप्त होता है।
बोने का समय
पालक की बुवाई करते समय वातावरण का विशेष ध्यान देना चाहिए। उपयुक्त वातावरण में पालक की बुवाई वर्ष भर की जा सकती है। पालक की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए बुवाई जनवरी-फरवरी, जून-जुलाई और सितम्बर-अक्टूबर में की जा सकती है, जिससे पालक की अच्छी पैदावार प्राप्त होती है।
बुवाई विधि
सामान्यतया पालक की बुवाई छिटकवां विधि से की जाती है। परन्तु पालक की खेती से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए इसकी बुवाई पंक्तियों में करनी चाहिए। पालक की पंक्ति में बुवाई करने के लिए पंक्तियों व पौधों की आपस में दूरी क्रमश: 20 से 25 सेन्टीमीटर और 20 सेन्टीमीटर रखना चाहिए। पालक के बीज को 2 से 3 सेन्टीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए, इससे अधिक गहरी बुवाई नहीं करनी चाहिए।
खाद व उर्वरक
पालक की खेती से अधिक लाभ व गुणवत्तायुक्त पालक प्राप्त करने के लिए खाद व उर्वरक की संतुलित मात्रा का ध्यान रखना अतिआवश्यक व एक महत्वपूर्ण कार्य है। भूमि में खाद व उर्वरक की मात्रा का निर्धारण करने के लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी का परीक्षण करा लेना चाहिए, जिससे खेत में उपलब्ध पोषक तत्व की मात्रा ज्ञात हो जाये। इसके बाद परीक्षण में दिये गये उर्वरक की अनुसंशित मात्रा का ही उपयोग करना चाहिए, जिससे पालक की उत्पादन लागत कम आती है। परन्तु यदि किसी कारण से मिट्टी का परीक्षण समय पर ना हो सके तो उस स्थिति में प्रति हेक्टेयर 25 से 30 टन गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद, 100 किलोग्राम नत्रजन, 50 किलोग्राम स्फुर तथा 60 किलोग्राम पोटाश का उपयोग पालक की फसल में करना चाहिए। खेत में खाद व उर्वरक का प्रयोग करते समय ध्यान रखना चाहिए कि गोबर की खाद को खेत की तैयारी के समय ही अच्छी प्रकार समान रूप से बिखेर कर मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई कर मिट्टी में मिला देना चाहिए। इसके बाद स्फुर व पोटास की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की 20 किलोग्राम मात्रा को भी खेत की अंतिम जुताई के समय खेत में एक समान रूप से फैलाकर मिट्टी में मिला देना चाहिए। तथा नत्रजन की शेष 80 किलोग्राम मात्रा को चार बराबर भागों में बॉटकर, पालक की फसल के प्रत्येक कटाई के बाद खड़ी फसल में डालनी चाहिए। यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि उर्वरक के छिड़काव के दूसरे दिन खेत की सिंचाई अवश्य करनी चाहिए, जिससे पौधों की जड़ों द्वारा पोषक तत्वों को सुगमता से ग्रहण कर लिया जाए जिससे दूसरी कटाई के लिए फसल जल्दी तैयार हो सके।
सिंचाई
पालक की फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए खेत में सिंचाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि पालक पत्ती वाली सब्जी है, जिसकी बढ़वार के लिए पानी की बहुत आवश्यकता होती है। पालक के बीज में अच्छी अंकुरण के लिए बुवाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करना बहुत हितकर होता है। पालक के फसल में उचित बढ़वार के लिए भूमि में पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। अत: खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखने के लिए 7-8 दिन के अन्तर पर सिंचाई की व्यवस्था करें।
कटाई
जब पत्तियों की लम्बाई 15 से 30 सेमी. लम्बी हो जाएं। पालक की पत्तियों की कटाई उसकी कोमल और रसीली अवस्था में ही करनी चाहिए। इस प्रकार से पालक की एक फसल से लगभग 5-6 बार कटाई किया जा सकता है। पालक के फसल की कटाई के तुरन्त बाद इसे बाजार भेजना सुनिश्चित करें।
उपज- पालक की प्रति हेक्टेयर 80 से 90 क्विंटल हरी पत्ती प्राप्त होती है।

पालक हर घर की रसोई की जान है। वर्तमान में पालक से कई प्रकार के व्यंजन तैयार किये जाते हैं। पालक से हमें कई प्रकार के पोषक तत्वों के साथ यह विटामिन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। पालक महत्वपूर्ण पत्तेदार वाली सब्जी है, जिसकी खेती सामान्यतया ठण्ड के मौसम में किया जाता है। पालक की पत्ती बहुत मुलायम होती है जिसका उपयोग घर में सब्जी बनाने के लिए किया जाता है। पालक में कैल्शियम और विटामिन ए अधिक मात्रा में पाया जाता है तथा स्फुर, लोहा और विटामिन सी का भी एक अच्छा स्रोत है। पालक की खेती हरी पत्तियों के लिए एक वर्षीय तथा बीज उत्पादन के लिए बहुवर्षीय फसल के रूप में की जाती है।

 

  • डॉ. अजय कुमार सिंह
  • ओंकार सिंह
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