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कितना तार्किक है छत्तीसगढ़ में खेती के लिए भू-जल पर प्रतिबंध?

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छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने रबी की सभी फसलों तथा खरीफ में धान की फसल के उत्पादन में भूमिगत जल के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। कहा जा रहा है कि इस वर्ष छत्तीसगढ़ के आधे से ज्यादा जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किए जाने की स्थिति, घरेलू जलापूर्ति में आती बाधा तथा धान में भूजल का अति उपयोग को देखते हुए प्रतिबंध लगाया है। छत्तीसगढ़ किसान सभा का मत है कि इस प्रतिबंध का लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ खेत मालिकों को मजदूर में बदलना है। किसान सभा इसी आधार पर इस प्रतिबंध का कड़ा विरोध कर रही है। चूंकि भारत के किसी भी राज्य शासन-प्रशासन द्वारा कृषि क्षेत्र पर लगाया गया यह अपनी तरह का पहला प्रतिबंध है लिहाजा, हकीकत से अवगत होना भी जरूरी है और नफे-नुकसान की पड़ताल भी।
छत्तीसगढ़ राज्य गंगा, ब्रह्यमानी, महानदी, नर्मदा और गोदावरी नदियों के बेसिन में पड़ता है। छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा यानी 56.15 प्रतिशत भू-भाग अकेले महानदी बेसिन का हिस्सा है। राज्य सरकार के जल संसाधन विभाग की वेबसाइट के मुताबिक 1,35,097 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले छत्तीसगढ़ राज्य से प्रवाहित होने वाले सतही जल की मात्रा जहां 4,82,960 लाख क्यूबिक मीटर है। अंतरराज्यीय समझौतों के हिसाब से छत्तीसगढ़ में उपयोगी सतही जल की उपलब्धतता 4,17,200 लाख क्यूबिक मीटर है, वहीं भूजल उपलब्धता का आंकड़ा 1,45,480 लाख क्यूबिक मीटर का है।

छत्तीसगढ़ के पास भावी कृषि विकास के लिए वर्तमान खपत के साढ़े चार गुना से अधिक यानी 1,06,692 लाख क्यूबिक मीटर भूजल उपलब्ध है, इसका मतलब है कि छत्तीसगढ़ की खेती में कोई वाटर इमरजेंसी नहीं है। 50 प्रतिशत जिलों की सूखाग्रस्त घोषित किए जाने की मजबूरी के चलते प्रतिबंध घोषित किया गया है, तो प्रदेश के भूजल आंकड़ों के आगे यह तर्क बेमानी लगता है। इस दृष्टि से राज्य में रबी की फसल हेतु भूजल उपयोग पर लगे एकतरफा प्रतिबंध की व्यावहारिकता को लेकर सवाल उठता है कि क्या छत्तीसगढ़ सरकार अथवा किसान ने प्रदेश के हर खेत की नाली तक सतही जल पहुंचाने की अनुशासित सिंचाई प्रणाली को इतना विकसित कर लिया है कि भूमिगत जल पर प्रतिबंध की स्थिति में भी हर खेत में खेती संभव व लाभकर होगी ?

स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ के पास फिलहाल उसके भूजल की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक सतही जल है। छत्तीसगढ़ अभी 1,82,249 लाख क्यूबिक यानी अपने उपलब्धता के आधे से भी कम सतही जल का उपयोग कर रहा है। लिहाजा, छत्तीसगढ़ को भूजल की तुलना में अपने सतही जल का उपयोग ज्यादा करना चाहिए। किंतु इसका यह संदेश कतई नहीं है कि छत्तीसगढ़ में रबी की फसल के दौरान भूजल की सिंचाई पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। गौर कीजिए कि भूजल उपलब्धता को लेकर खुद राज्य सरकार के आंकड़े कहते हैं कि छत्तीसगढ़ के 146 ब्लॉकों में से 138 ब्लॉक अभी भी सुरक्षित श्रेणी में है। गुरुर, बालोद, साजा धामधा, पाटन, धमतरी और बिल्हा ब्लॉक यानी कुछ छह ब्लॉक ही सेमी क्रिटिकल श्रेणी में हैं। छत्तीसगढ़ का कोई ब्लॉक क्रिटिकल (नाजुक) तथा ओवर ड्राफ्ट (अधिक जलनिकासी) वाली श्रेणी में दर्ज नहीं है। छत्तीसगढ़ अभी अपने उपलब्ध भूजल के 20 फीसदी से मामूली अधिक का ही इस्तेमाल कर रहा है।
नि:संदेह, इस 20 फीसदी में से अन्य क्षेत्रों द्वारा उपभोग की तुलना में करीब 65 फ ीसदी का उपयोग अकेले सिंचाई हो रही है। किंतु जब राज्य सरकार अपनी वेबसाइट पर खुद यह आंकड़ा पेश करती हो कि छत्तीसगढ़ के पास भावी कृषि विकास के लिए वर्तमान खपत के साढ़े चार गुना से अधिक यानी 1,06,692 लाख क्यूबिक मीटर भूजल उपलब्ध है, तो इसका मतलब तो यही है कि छत्तीसगढ़ की खेती में कोई वाटर इमरजेंसी नहीं है। न सतही जल के स्तर पर और न भूजल के स्तर पर। अब ऐसे में कोई कहे कि 50 प्रतिशत जिलों की सूखाग्रस्त घोषित किए जाने की मजबूरी के चलते प्रतिबंध घोषित किया गया है, तो प्रदेश के भूजल आंकड़ों के आगे यह तर्क बेमानी लगता है। यूं भी सूखा घोषणा का आधार किसी एक मानसून में वर्षा औसत में आई कमी होती है, न कि भूजल स्तर में गिरावट।
गौर करने की बात है कि भूजल कोष तो होता ही है आपात स्थिति के समय उपयोग के लिए। सामान्य वर्षा वर्ष में संचित करना और कम वर्षा वर्ष में उपयोग करना, भूजल प्रबंधन का यही सिद्धांत है। इस सिद्धांत के मद्देनजर, छत्तीसगढ़ शासन की प्राथमिकता वर्षा जल संचयन बढ़ाने की होनी चाहिए थी। यह सुनिश्चित करती कि फैक्टरी हो या किसान, जो धरती से जितना पानी निकाले, धरती को उताना और वैसा पानी लौटाये। इसी से भूजल संतुलन संभव हैै। प्रतिबंध को सेमीक्रिटिकल ब्लॉकों में भूगर्भ की एक निश्चित उचित गहराई से नीचे न जाने की रोक तक सीमित कर यह किया जा सकता था। किंतु रबी की फसल हेतु भूजल उपयोग पर लगा यह एकतरफा प्रतिबंध तो और आगे आने सूखे के वर्षों में और भी कष्टकर होगा। इस प्रतिबंध की व्यावहारिकता को लेकर एक जरूरी सवाल यह है कि क्या छत्तीसगढ़ शासन अथवा किसान ने प्रदेश के हर खेत की नाली तक सतही जल पहुंचाने की अनुशासित सिंचाई प्रणाली को इतना विकसित कर लिया है कि भूमिगत जल पर प्रतिबंध की स्थिति में भी हर खेत में खेती संभव व लाभकर होगी?
उक्त तथ्यों से यह निष्कर्ष निकलता है कि या तो छत्तीसगढ़ सरकार की वेबसाइट पर पेश भूजल उपलब्धता और उपयोग के आंकड़े झूठे हैं अथवा जमीनी हकीकत वास्तव में भूजल संकट की है। यदि उक्त दोनों ही स्थितियां नहीं है, तो आकलनकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचेगे ही कि प्रतिबंध लगाने के पीछे छत्तीसगढ़ राज्य सरकार की नीयत कुछ और है। नीयत से जुड़ा एक तथ्य यह है कि कृषि की तुलना में उद्योग ज्यादा तेजी और गहराई से भूजल का दोहन करते हैं। यदि भूमिगत जल से रबी की सिंचाई प्रतिबंधित की है, तो फिर अगले मानसून के आने से पहले तक औद्योगिक तथा व्यावसायिक मकसद हेतु भूजल उपयोग भी प्रतिबंधित किया जाना चाहिए था। राज्य सरकार ने ऐसा नहीं किया क्यों?
छत्तीसगढ़ किसान सभा के महासचिव ऋषि गुप्ता का कहना है यह प्रतिबंध कारपोरेट हितों से प्रेरित है, जो चाहते हैं कि किसान खेती छोड़कर शहरों में सस्ते मजदूर के रूप में उपलब्ध हों। कारण कि वैश्विक उदारीकरण के इस दौर में कोई सरकार फैक्टरियों को पानी देने के लिए, खेती का पानी छीनने का फरमान जारी कर दे, तो यह कोई ताज्जुब की बात नहीं। कारण कि आजकल हमारी शासकीय नीतियों का निर्धारण अप्रत्यक्ष रूप से कारपोरेट ताकतें ही कर रही हैं। वैश्विक उदारीकरण का मूल मकसद ही था, आर्थिक शक्तियों द्वारा सत्ता को अपने नियंत्रण में लेना। दुखद है कि छत्तीसगढ़ किसान सभा के नेता रबी में भूजल प्रतिबंध की एवज में 21 हजार रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजे की मांग कर रहे हैं। मामला चाहे भूमि अधिग्रहण का हो अथवा बाढ़-सुखाड़ का, भारत के किसान संगठन, किसानों को मुआवजा दिलाकर ही सदैव संतुष्ट होते दिखे हैं। उन्हें समस्या की तह में जाना चाहिए और उसके समाधान के लिए पूरी मुस्तैदी व एकता के साथ सक्रिय होना चाहिए।
भारत में पानी के बाजार लगातार बढ़ रहे हैं। जलापूर्ति करने वाली कंपनियां आज दुनिया की सबसे अमीर कंपनियों में शुमार हैं। घोटाले बताते हैं कि पानी का अपना धंधा बढ़ाने के लिए वे नौकरशाही व राजनेताओं को घूस देने से भी नहीं चूकते। कहना न होगा कि भूमिगत जल उपयोग पर प्रतिबंध संबंधी इस फरमान के पीछे छिपे असल एजेण्डे की हकीकत का सामने आना जरूरी है। यदि यह फरमान सचमुच सही समय पर अच्छी नीयत से जारी किया गया दूरदर्शी कदम हो, तो क्या किसान, क्या उद्योगपति, क्या व्यवसायी और क्या पानी के घरेलू उपभोक्ता सभी को चाहिए कि वह भावी भूजल संकट से निपटने के लिए अपने-अपने हिस्से की तैयारी अभी से शुरु कर दें। यदि यह फरमान खेती के लिए अनुकूल सतही जल प्रणाली विकसित किए बिना तैयार किए बिना जल्दबाजी में लिया गया एक अच्छा फरमान है, तो राज्य सरकार को चाहिए कि वह किसानों को इसके लिए तैयार होने का पूरा वक्त दें।

  • अरुण तिवारी
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