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दलहनी – तिलहनी को आत्मनिर्भरता कैसे ?

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देश खाद्यान्न फसलों के उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर हो गया है। गेहूं तथा चावल में तो अब हम दूसरे देशों को निर्यात भी कर रहे हैं। परंतु खाद्यान्न तेल तथा दालों के उत्पादन में हम आत्मनिर्भर नहीं हो पाये हैं। देश के कुल तेल की आवश्यकता का लगभग 50 प्रतिशत हम आयात कर रहे हैं इस प्रकार दलहन की देश की आवश्यकता का हम 25 प्रतिशत आयात करने को बाध्य हैं। इस वर्ष खरीफ तिलहनी फसलों मूंगफली, सोयाबीन, सूर्यमुखी, तिल, रामतिल तथा अरंडी का क्षेत्र बढ़ाकर उत्पादन बढ़ाने के प्रयास सार्थक नहीं रहे क्योंकि हम सभी तिलहनी फसलों का क्षेत्र पिछले वर्ष के क्षेत्र से मात्र 4.98 लाख क्षेत्र ही बढ़ा पाये। इसमें 10.48 लाख हेक्टर मूंगफली में बढ़ा व 1.51 लाख हेक्टर सोयाबीन में। जबकि तिल तथा अरंडी में यह क्रमश: 1.25 व 2.62 लाख हेक्टर घट गया। सूर्यमुखी के क्षेत्र में जहां 10 हजार हेक्टर की वृद्धि देखी गयी वहीं रामतिल के क्षेत्र में 13 हजार हेक्टर की कमी आ गयी। मध्यप्रदेश में तिलहनी फसलों के क्षेत्र में 1.08 लाख की कमी देखी गयी जो मुख्य रूप से सोयाबीन के क्षेत्र में कमी के कारण थी। जबकि राजस्थान में यह 1.49 लाख हेक्टर कम क्षेत्र में बोई गई। छत्तीसगढ़ में तिलहनी फसलों के क्षेत्र में 20 हजार हेक्टर की  वृद्धि हुई। तिलहनी फसलों का क्षेत्र बढ़ा कर उत्पादन बढ़ाने की अब सम्भावनायें कम ही नजर आती है। राष्ट्रीय स्तर पर उत्पादकता बढ़ाने के लिये किये गये प्रयास भी बहुत सार्थक सिद्ध नहीं हुए। इस दिशा में नई सोच के साथ हमें फिर प्रयास करने होंगे। अन्यथा खाद्यान्न तेलों के लिये भी हमें आयात पर निर्भर रहना पड़ेगा। जिसका असर विदेशी मुद्रा के संतुलन पर भी पड़ेगा।
इस वर्ष खरीफ में दलहनी फसलों के क्षेत्र को बढ़ाने तथा किसानों को खरीफ दलहन फसल लेने के लिए प्रेरित करने में हम सफल हुए हैं। पिछले वर्ष यहां सभी दलहनी फसलों का क्षेत्र 113.21 लाख हेक्टर था वहीं इस वर्ष यह बढ़कर 146.24 लाख हेक्टर हो गया है। इस प्रकार इस वर्ष खरीफ दलहनी फसलों के क्षेत्र में 33.03 लाख हेक्टर की वृद्धि हुई है। यह सार्थक वृद्धि है। यह सार्थक वृद्धि कुछ हद तक दलहनी फसलों के आयात को कम करने में सहायक होगी। क्षेत्र में यह वृद्धि खरीफ की सभी दलहनी फसलों में हुई है। क्षेत्र में सबसे अधिक वृद्धि अरहर में हुई जहां पिछले वर्ष की तुलना में यह फसल 14.95 लाख हेक्टर अधिक क्षेत्र में ली गई। जबकि उर्द, मूंग व कुलथी पिछले वर्ष की तुलना में क्रमश: 7.27, 8.48 व 0.07 लाख हेक्टर अधिक क्षेत्र में ली गयी। म.प्र., राजस्थान व छत्तीसगढ़ के किसान भी खरीफ में दलहनी फसल लगाने में पीछे नहीं रहे। उन्होंने पिछले वर्ष की तुलना में 3.99, 7.18 तथा 0.45 लाख अधिक के क्षेत्र में दलहनी फसलें ली। अन्य दलहनी फसलों में भी 2.15 लाख हेक्टर क्षेत्र में वृद्धि हुई है। देश की दलहनों के उत्पादन में किसानों के ये प्रयास सराहनीय हैं। अब समय आ गया है कि हम तिलहनी व दलहनी फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिये नये सिरे से प्रयास करें। इन फसलों के उपयुक्त क्षेत्रों को चिन्हित कर उन क्षेत्र में खाद्यान्न फसलों की खेती को प्रतिबंधित कर तिलहनी व दलहनी फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिये ठोस प्रयास कर लक्ष्य प्राप्त किये जा सकते हैं।

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