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ड्रिप सिंचाई पद्धति का महत्व

ड्रिप सिंचाई पद्धति का जन्म
सिमका ब्लोग नामक एक इजराइली इंजीनियर ने 1940 में देखा कि पानी के पाइप से रिसाव होने वाले स्थान के पौधों में वृद्धि अन्य क्षेत्र के पौधों की तुलना में अधिक है, इसके आधार पर उन्होंने 1964 में ड्रिप सिंचाई पद्धति विकसित की गई। साठवें दशक के अंत में ड्रिप सिंचाई पद्धति का प्रचार-प्रसार विश्व के अन्य देशों में प्रारंभ हो गई परन्तु भारत में सत्तर के दशक में इस पद्धति से परिचित हुए एवं अस्सी के दशक में इस पद्धति के द्वारा सिंचाई करने लगे। सतत् अनुसंधान एवं सुधार से ड्रिप सिंचाई पद्धति की लोकप्रियता बढ़ी है एवं अधिक प्रचार प्रसार के कारण भी लोगों ने इस पद्धति को अपनाया है।
ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग
ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग कम पानी वाले क्षेत्रों एवं अद्र्धशुष्क क्षेत्रों, उबड़-खाबड़ एवं पहाड़ी वाले क्षेत्रों, बागवानी की फसलों जैसे अंगूर, अनार, नींबू, केला, अमरुद, लीची, आम, पपीता आदि में किया जाता है। इस विधि का प्रयोग कतार में लगाई जाने वाली सब्जियों तथा गन्ना, कपास इत्यादि नगदी फसलों में किया जाता है। इस विधि का प्रयोग ग्रीन-हाउस में फूलों और सब्जियों की फसलों के लिये भी किया जाता है।
ड्रिप सिंचाई का उद्देश्य
ड्रिप सिंचाई प्रणाली का मुख्य उद्देश्य सिंचाई जल प्रयोग दक्षता, एक समान जल प्रदान करना तथा उपज की उचित वृद्धि के लिए फसल के जड़ क्षेत्र में जलधारण क्षमता के आस-पास नमी बनाए रखना।
ड्रिप सिंचाई प्रणाली की कार्य विधि
सिंचाई की इस प्रणाली में जल स्त्रोत से पानी उठाने के लिए पंप, डिलेवरी पाईप, बाईपास वाल्व, प्रेशर गेज, फिल्टर, मुख्य लाइन, लेटरल लाइन, एमिटर लगे रहते हैं । पंप से पानी डिलेवरी पाईप में, डिलेवरी पाईप से पानी मुख्य लाइन में, मुख्य लाइन से पानी लेटरल लाइन में, लेटरल लाइन से पानी एमिटर ओरिफिस एवं अंत में एमिटर से होता हुए पौधों की जड़ो में पहुंचता है।
पानी को सिंचाई प्रणाली में कहीं रोकने या शुरू करने के लिए बाईपास वाल्व, पानी का दबाव नापने के लिए प्रेशर गेज, पानी की अशुद्धियों को छानने के लिये फिल्टर तथा पाइप की सफाई के लिए फ्लश वाल्व लगते हैं। फसल की आवश्यकता के अनुसार खाद तथा दवाई देने के लिए खाद का एक टेंक पानी की मुख्य लाइन के समानांतर लगा होता है. एक एमिटर प्रति घंटे 2-10 लीटर कि दर से पानी देता है। जिससे पौधे को प्रतिदिन की पानी की आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है।
ड्रिप सिंचाई में पानी की मात्रा का निर्धारण
ड्रिप सिंचाई विधि में पानी का सही उपयोग करने के लिये निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।

  • भूमि की स्थलाकृति की पूर्ण रूप से जानकारी होना चाहिए।
  • सिंचाई हेतु उपलब्ध जल की मात्रा की जानकारी होना चाहिए।
  • जलशीर्ष व उपलब्ध जल दबाव का आकलन होना चाहिए।
  • उगाई गई फसल की किस्म एवं जल उपयोग क्षमता का ज्ञान होना चाहिए।
  • वाष्पोत्सर्जन की गणना करने के लिए जलवायु सम्बन्धी आंकड़े की जानकारी होना चाहिए।
  • मृदा का प्रकार उसकी पारगम्यता एवं अंत:क्षरण की दर की जानकारी होना चाहिए।
  • पौधे के उपभौमिक उपयोग हेतु दैनिक जल की आवश्यक मात्रा की जानकारी होना चाहिए।

ड्रिप सिंचाई प्रणाली को उपयोग करने में निम्न सावधानियों को ध्यान रखना चाहिए

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  • भारतीय मानक ब्यूरो (आईएसआई) द्वारा प्रमाणित ड्रिप सिंचाई के उपकरणों एवं पम्पसेट मोटर का ही प्रयोग करना चाहिये। प्रमाणित गुणवत्ता के आधार पर ड्रिप सिंचाई प्रणाली लम्बे समय तक प्रयोग की जा सकती है।
  • सिंचाई के लिये उपयोग किया गया जल साफ एवं स्वच्छ हो उसमे ज्यदा कचरा, मिट्टी के कण ना हो अन्यथा ड्रिपर मे फंस सकते हैं अत: फिल्टर को समय-समय पर साफ करते रहना चाहिए।
  • मुख्य लाइन तथा लेटरल लाइन को साल मे कम से कम 2 बार साफ कर लेना चाहिए।
  • योजनाबद्ध तरीके से समय-समय पर सम्पूर्ण खेत का निरीक्षण करें एवं बंद ड्रिपरों को साफ करें।
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