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कृषि लोकोक्तियां खेती, पाती, विनती

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पंद्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी राष्ट्रीय पर्व है।
होली, दिवाली, दशहरा त्यौहारों पर हमें गर्व है।
फिर भी महिलाओं का पावन त्यौहार तीज हैं।
इसलिये प्रमाणित बीज ही कृषक का चहेता बीज है॥
यद्यपि स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस हमारे राष्ट्रीय त्यौहार हैं और होली, दिवाली हमारे सामाजिक त्यौहार हैं। परंतु जनसंख्या की आधी आबादी- महिलाओं का परम त्यौहार तीज है। उसी प्रकार खेती में ऊर्जा लाने के लिये प्रमाणित बीज प्रधान है।
अमल में लाना होगा कृषि और बीज ज्ञान को।
    रोज पैदा हो रहे बीज अनुसंधान एवं विधान को॥
कृषि और बीज उद्योग को संबल देने और अधिकतम उत्पादन लेने के लिये कृषकों, बीज विक्रेताओं और बीज उत्पादकों को बीज विज्ञान की नवीनतम तकनीकियों से अवगत होना पड़ेगा तथा नित नये अनुसंधान तथा बीज कानून को समझना होगा अन्यथा रोजाना बीज निरीक्षक की प्रताडऩा को सहना होगा।
   उत्तम खेती मध्यम बाण
    निकृष्ट चाकरी, भीख निदान।
खेती उत्तम व्यवसाय बताया गया है तथा वणिज (व्यापार) करना द्वितीय श्रेणी में आता है। नौकरी करना भले ही राजा महाराजा की हो, श्रेष्ठ नहीं है और भीख मांगना हेय है। आज भी कृषि उत्तम ही नहीं बल्कि अति उत्तम है और नई तकनीकियों तथा यंत्रीकृत होने के कारण खेती लाभ के व्यवसाय की और बढ़ रही है।
खेती, पाती, विनती और घोड़े की तंग,
    अपने हाथ संवारिये चाहे लाख लोग हो संग।
खेती करना, प्रेम पत्र लिखना, भगवान की आराधना स्वयं करनी चाहिए और घोड़ी की काठी मनुष्य को स्वयं बांधनी चाहिए। मजदूर सांझी या नौकर के बूते खेती नहीं हो सकती क्योंकि उनका सम्पर्क नहीं होगा। इसका उदाहरण सरकारी फार्मों का हमेशा घाटे में रहना। प्रेम पत्र दूसरे से लिखवाने से गोपनीयता नहीं रहती। इसी प्रकार भगवान की भक्ती स्वयं करंे न कि किसी पंडित ब्राह्मण को पैसे देकर 10 लाख मंत्रों का जाप करायें। घोड़े की सवारी हेतु भी मनुष्य को काठी को स्वयं बांधना चाहिए अन्यथा कहीं भी पठकनी खा सकता है।
 परहथ वनिज संदेशे खेती बिन वर देखे ब्याहे बेटी,
    द्वार पराये गाड़े थाती ये चारों मिल पीटे छाती॥
किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा वाणिज्य कराना, शहरों या परदेश में रहकर संदेश दे-देकर खेती करवाना, बिना दूल्हे को देखे लड़की की शादी करना तथा अपना धन किसी अन्य घर में रखने वाले ये चारों प्रकार के प्राणी अंत में छाती पीट कर रोते हैं पछतावा करते हैं उनका धन ही नहीं मान-सम्मान और सामाजिक अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है।
 बैल चौकना जोत में घर में चमकीली नार।
    ये बैरी है जान के कुशल करे करतार॥
जोत में अचानक चौकने वाला बेल खुद के लिये और कृषक को चोट पहुंचा सकता है उसी प्रकार घर में अति चंचल नारी कभी पति को चैन नहीं दे पाती और कभी भी अपने मालिक के मान-सम्मान को ध्वस्त कर सकती है।
 सींग बाकी भैंस सोहवे कान बाकी घोडिया,
    मूछ बाका मर्द सोहवे नयन बाकी गौरिया।
जिस भैंस के सींग आकर्षक होंगे वह भैंस उत्तम है जैसे मुर्रा भैंस, इसी प्रकार जिस घोड़ी के कान सीधे खड़े होंगे वह आकर्षक होगी। मूंछ से व्यक्ति का गौरव झलकता है तथा मर्द कहलाता है तथा स्त्रियों के आकर्षक नयन उनकी सुन्दरता में चार चांद लगा देता है और वे कहलाती है मृगनयनी, सुलोचनी, सुनयना।
 कृषि सर्वोत्तम आजीविका है, विद्वानों की सोच है।
    सम्पन्नता की सर्वोच्चता ही जीवन का मोक्ष है।
खेती आजीविका चलाने का सर्वोत्तम साधन है ऐसा विद्वानों ने सोच समझ कर बताया है कृषि वर्तमान युग में तो और भी उत्तम व्यवसाय है क्योंकि खेती लाभकारी उद्योग की ओर बढ़ रही है और इस प्रकार सम्पन्नता बढ़ेगी और सम्पन्नता ही     मोक्ष है।

 समय रहते खेती यदि रोग मुक्त नहीं होगी
    तो कयामत से पहले कयामत होगी।
किसान हड्डी तोड़ ठंड में तथा तपती धूप में श्रम कर फसल तैयार करता है परंतु कीट, रोग के कारण खाली हाथ रह जाता है। इसलिये यह आवश्यक हो गया है कि खेती रोग मुक्त होनी जरूरी है अन्यथा बढ़ती हुई जनसंख्या का भरण-पोषण नहीं हो पायेगा और विनाश लीला करेगी और प्रलय से पहले ही विनाश हो जाएगा। कपास में कभी हरी सुन्डी, कभी मरोडिया तथा अन्य फसलों  में भी कीड़ों-बीमारियों की इसी प्रकार पुनरावृत्ति होती रहती है।
कृषक कर्ज में डबूते हैं तो सरकार को दोष देते हैं।
फसल ना मिले तो किस्मत को दोष देते हैं।
सोच समझ कर किस्म का चुनाव करते नहीं।
उपज ना मिले तो बीज को दोष देते हैं।
किसान अच्छी उपज के लालच में अपनी आर्थिक सामर्थ से अधिक पैसा लगाते हैं और कर्जदार होकर असमय मृत्यु को गले लगा लेते हैं और इसका दोष सरकार के सिर मढ़ते हैं। बीज खरीदते समय सोच-विचार नहीं करते और कृषि विभाग, विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों के परामर्श को दरकिनार कर बीज विक्रेता के कहे अनुसार जो उसके पास किस्म होती है उसे खरीदते हैं। प्रमाणित बीज नहीं लेते हैं और फिर उपज ठीक न होने पर बीज किस्म को दोष देते हैं।
 कृषि ज्ञान से जो है अनभिज्ञ,
    बीज उद्योग में वह है कानून भिज्ञ।
बीज विक्रय करने वाले लाइसेंसी, बीज उत्पादन कम्पनियों के प्रतिनिधि जो कृषि ज्ञान रहित हैं वे किस्मों के बारे ज्ञान बांटते फिरते हैं और गांव के किसानों को मोहित कर अपनी कम्पनियों के बीज बेच आते हैं कृषि ज्ञाता माने जाते हैं। कुछ व्यक्ति बीज उद्योग में बीज कानून की जानकारी न होते हुए किसानों की फसल में नुकसान होने पर राय चन्द बनते है और भोले-भाले किसानों को न्यायिक उलझन में फंसा देते हैं।

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