Uncategorized

कैसे बचाएं बीज

Share

एक आकलन के अनुसार अनाज के कुल उत्पादन का 10 से 15 प्रतिशत भाग प्रतिवर्ष खलिहान तथा भण्डारण में नष्ट हो जाता है। उन्न्त कृषि उत्पादन प्रौद्योगिकी को अपनाने के साथ-साथ यदि हम अनाज को होने वाली क्षति से संरक्षित कर लें तो खाद्यान्न उत्पादन में हम आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को पा सकेंगे अत: आज देश के प्रत्येक नागरिक को इस तथ्य को ध्यान में रखना आवश्यक हो गया है कि अनाज का प्रत्येक दाना कीमती है और उसकी बर्बादी को रोकना उसका कर्तव्य है।
अनाज को संरक्षित रखने के कार्य की शुरुआत खेत में कटाई के समय से आरंभ हो जाती है फसल को उचित समय पर उचित यंत्रों द्वारा काटना किसानों का पहला कत्र्तव्य है। दलहनी फसलों गेहूं, सरसों आदि की कटाई में थोड़ी सी देरी होने पर दाने झड़कर कर गिर जाने की सम्भावना बनी रहती है। इन्हें पकने लगते ही काट लिया जाना चाहिए। फसल की कटाई के काफी समय पहले से ही सिंचाई बंद कर देना चाहिए अन्यथा पौधों और दानों में अधिक नमी आ जाती है और पौधे कटने के बजाय पूरे उखड़ जाते हैं और उनकी गहाई व दावन के समय अनाज में मिट्टी मिल जाती है।
कटाई के पश्चात किसान अपनी भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर अनाज का उचित भण्डारण करें तथा शेष अनाज का विक्रय व्यापारियों तथा उपयुक्त संस्थानों को कर दें। अपनी आगामी आवश्यकताओं के लिये अन्य सभी नागरिक भी यथा समय अनाज जुटाकर रख लेते हैं उन्हें भी भण्डारण में अनाज की सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था करनी चाहिए।
भण्डारित खाद्यान्न में 10 प्रतिशत या इससे अधिक नमी होने पर उसे कीट-व्याधियों द्वारा हानि की अधिक सम्भावना रहती हैं ऐसे अनाज की फफूंदों से भी क्षति हो सकती है। धूप में सुखाने के साथ-साथ इन्हें मोटे छलने से छान लेने से पतले बारीक अविकसित कटे-फटे दाने अलग हो जाते हैं जो कालांतर में कीट-व्याधियों के आक्रमण के स्त्रोत बनते हैं।
दलहनी फसलें
दलहनों का मुख्य शत्रु दाल भृंग का ढोरा नामक कीट हैं यह समूचे दाने को अंदर ही अंदर खाकर उसे पूरी तरह खोखला कर देता हैं। प्रौढ कीट निकलने के पश्चात ही इसका पता लग पाता हैं। यह भृंग दाल के दोनों बीज पत्रों को खा जाता हैं जो प्रोटीन का मुख्य भाग होते हैं। इस कीट के प्रकोप से बीज की अंकुरण-क्षमता ही समाप्त हो जाती हैं अत: समुचित दाल भण्डारण के लिए इन्हें दाल भृंग से बचाना नितांत आवश्यक हैं।
गोदामों में कीट बचाव
सामान्यत: जब फसल की कटाई होती हैं तब अनाज कीटों के प्रकोप से मुक्त रहता हैं। अनाज में कीट-प्रकोप के पहुंचने का स्त्रोत पुराने संक्रमित बोरे या भण्डारण पात्र (कोठियां) या भण्डारगृह होते हैं। भंडार-घरों, कोठियों, बोरों की अनाज रखने से पहले तरह मेलाथियॉन (0.2 प्रतिशत) अथवा भण्डारगृहों को ध्रूमक रसायनों जैसे-ईडीसीटी (35 लीटर/100 घनमीटर) या इथिलीन डाई ब्रोमाइड (10.5 किग्रा/100 घनमीटर) या मिथाइल ब्रोमाइड (3.5 किग्रा/100 घनमीटर) से उपचारित किया जा सकता है। जूट के बोरों में रखे अनाज को बोरों की सतह पर मेलाथियॉन कीटनाशी के छिड़काव द्वारा सुरक्षित रखा जा सकता हैं। अनाज की अधिकता होने पर जहां उसे कोठियों में रखना संभव न हो वहां उसे नए बोरों में भरना चाहिए। बोरों को लकड़ी की पट्टियों या भूसे व बालू या रेत के मिश्रण की तह बिछाकर इस प्रकार रखना चाहिए कि उनके भीतर पर्याप्त हवा आ जा सके।
खाद्यान्न को 5-6 महीने तक सुरक्षित रखने के लिए उसमें धुम्रक रसायनों-एल्यूमीनियम फॉस्फाइड, ई.डी.बी. एम्पूल को रखा जाना चाहिए। यदि भण्डारित किया जाने वाला अनाज कीट संक्रमित हैं तो उसे छानकर उसमें उपयुक्त ध्रूमक रखकर भंडारित करें। अगले वर्ष बुवाई के लिए उपयोग लिए जाने वाले अनाज में मेलाथियॉन 5 प्रतिशत चूर्ण 250 ग्राम / क्विंटल को मिलाकर रखा जा सकता हैं। ऐसा देखा गया हैं कि किसान बी.एच.सी. या डी.डी.टी. भी अनाज में मिलाते हैं लेकिन इनमें अनाज की अंकुरण क्षमता प्रभावित होने की संभावना रहती हैं अत: इनका उपयोग न करें। घरों से दूर उन भण्डागृहों में जहां बड़े पैमाने पर अनाज भण्डारित किया जाता हैं आजकल एल्यूमीनियम फॉस्फाइड की 3 ग्राम की टिकिया उपलब्ध होती हैं। एक टन अनाज के लिए एक या दो टिकिया पर्याप्त होती है। घरेलू अनाज भण्डारण पात्रों में ई.डी.बी. की शीशियां (एम्प्यूल) को तोड़कर रखा जा सकता हैं। प्रत्येक शीशी में 3 मिली. रसायन होता हैं जिससे एक क्विंटल अनाज उपचारित किया जा सकता हैं। इसे आटे या अन्य अनाज उत्पाद तिलहन और नमीयुक्त अनाज में नहीं रखना चाहिए। एल्यूमीनियम फॉस्फाइड या ई.डी.बी. को रखने के बाद भंडार गृह या भण्डारण पात्र (बर्तन)को एक सप्ताह तक पूरी तरह वायुनिरोधी रखना चाहिए। उपचारित अनाज को उपयोग में लाने से पूर्व कुछ देर हवा में फैला देने से रसायनों की गंध दूर हो जाती है। इन सभी उपायों के अतिरिक्त कीटों की रोकथाम की कुछ अन्य वैकल्पिक विधियां छोटे स्तर पर अपनाई जा सकती हैं। साफ व सूखे चावल में 500:1 के अनुपात में चूना मिलाना तथा दलहनों में प्रति क्विंटल 500 ग्राम सूखी रेत या बालू को मिलाया जा सकता हैं। इनसे अंकुरण क्षमता तथा स्वाद पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ता।
गांवों में दालों को कीड़ों से बचाने के लिए खाद्य तेल का उपयोग किया जाता हैं। तेल लगी दलहनों पर कीड़े अण्डे नहीं दे पाते अथवा उनमें इल्ली का विकास नहीं हो पाता। मूंगफली, तिल, सरसों, सोयाबीन या नारियल में से किसी भी तेल की 2 से 3 मिली मात्रा एक किग्रा दलहन को उपचारित करने हेतु पर्याप्त होती है।
चूहों से बचाव
अनाज का भण्डारगृह चूहों का सबसे प्रिय स्थान होता हैं क्योंकि वहां वे अपनी भोजन संबंधी सभी जरुरते पूरी कर सकते हैं। चूहे न केवल अनाज और दूसरा भोजन खा जाते हैं वरन वे अनाज में अपना मल-मूत्र त्यागकर काफी अनाज बर्बाद भी कर देते हैं। जिंक फास्ॅफाइड या कुछ अन्य विषैले रसायनों जैसे वारफेरिन, रोडाफिन, का उपयोग तथा अन्य सुरक्षात्मक उपाय किए जाने चाहिए।

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *