State News (राज्य कृषि समाचार)

स्केवयर स्ट्राबेलर का प्रयोग दीपक के लिये रहा सुखद

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सतना जिले में स्ट्रामैनेजमेंट का नवाचार

12 दिसम्बर 2022, सतना: स्केवयर स्ट्राबेलर का प्रयोग दीपक के लिये रहा सुखद – पर्यावरण की सुरक्षा के दृष्टिगत खेतों में फसल कटाई के उपरांत नरवाई जलाने की कुप्रथा पर नियंत्रण के लिये प्रशासन, कृषि वैज्ञानिक तथा विभाग के माध्यम से निरंतर प्रयास किये जा रहे है। लेकिन फिर भी किसानों द्वारा फसल कटाई उपरांत फसल अवशेषों के शीघ्र निपटान के लिये खेतों में आग लगाकर खेत की मिट्टी के लिये लाभदायी तत्वों को नष्ट किया जा रहा है। खेतों में नरवाई में आग लगाने के परिणास्वरुप प्रकृति, पर्यावरण और जान-माल की क्षति के रूप में समाज को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। खेतों में नरवाई प्रबंधन के लिये शासन द्वारा किसानों को जागरुक कर इसके यांत्रिकीय समाधान की ओर रुख करने के प्रयास किये जा रहे हैं।

सरकार  द्वारा नरवाई के यांत्रिकीय समाधान के सुझाव को अपनाते हुये जनपद उचेहरा के ग्राम कुसली इचौल के  दीपक पाण्डेय ने इस ओर कदम बढाया है। दीपक ने स्केवयर स्ट्राबेलर उपकरण का प्रयोग कर नरवाई जलाने की समस्या से छुटकारा पाया है। दीपक ने बताया कि स्क्वेयर स्ट्राबेलर उपकरण के बारे में जानकारी प्राप्त हुई जो कि धान के पैरा की बंडलिंग कर सकता है। स्क्वेयर स्ट्राबेलर के संबंध में स्वयं से अध्ययन पश्चात कृषि अभियांत्रिकी कर्मशाला सतना से इस उपकरण के उपयोग की तकनीक के बारे में जानकारी दी गई। बल्कि उपकरण का प्रत्यक्ष  अवलोकन भी कराया गया। फिर भी दीपक के मन में संशय बना रहा कि स्ट्रॉ बेलर खरीदने का  प्रयोग होगा सफल होगा या नही। कृषि अभियांत्रिकी के अधिकारियों की हौसला अफजाई से दीपक ने स्क्वेयर स्ट्राबेलर क्रय किये जाने का निर्णय किया। स्ट्रॉ बेलर पर शासन  द्वारा अनुदान की भी सुविधा दी गई। नवम्बर 2022 में स्क्वेयर स्ट्राबेलर खरीद  कर दीपक ने काम की शुरूआत अपने ही प्रक्षेत्र से शुरू की। कृषि अभियांत्रिकी संचालनालय के दिशा-निर्देश अनुसार बेलर खरीदने  पर 6 लाख रुपये का अनुदान भी प्राप्त हो गया। मशीन  की कीमत  13 लाख रुपये थी।

दीपक ने बताया की यह मशीन  एक दिन  में 5 से 6 एकड़ के क्षेत्रफल पर आयताकार बेलर बनाने में सक्षम है। एक आयताकार बेलर का वजन 15 से 18 किलो तक होता है तथा एक एकड़ के क्षेत्रफल पर 100 से 120 तक बंडल फसल अवशेष की स्थिति अनुसार तैयार होते है। इस मशीन के आ जाने से न सिर्फ मेरे गांव बल्कि  आसपास के कृषक भी फसल अवशेष में आग न लगाकर उपकरण की प्रतिक्षा करते हैं तथा लोंगो में विश्वास जागृत हो गया और पैरा में आग नही लगाते हैं चाहे उन्हें दो चार दिन प्रतीक्षा करनी पडे। अभी तक मेरे द्वारा लगभग 7000 बंडल तैयार कर लिये गये है तथा लगभग 25 हेक्टेयर क्षेत्रफल पर आग लगाये जाने की कुप्रथा पर नियंत्रण पाया गया। मुझे विश्वास है कि पैरा में आग लगाये जाने की सामाजिक कुप्रथा पर नियंत्रण के साथ-साथ मै इससे आय का भी सृजन करूंगा।

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