राज्य कृषि समाचार (State News)पशुपालन (Animal Husbandry)

पशुओं में एंटीबायोटिक्स का दुरुपयोग: एक बड़ी समस्या

लेखक – डॉ. सत्यम भंडारी, डॉ. पारुल प्रजापति और डॉ. स्वाति कोली, पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, महु, इंदौर (म.प्र.)

15 दिसंबर 2025, भोपाल: पशुओं में एंटीबायोटिक्स का दुरुपयोग: एक बड़ी समस्या –

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परिचय

भारत की खाद्य व्यवस्था में पशुधन उत्पादन एक महत्वपूर्ण आधार है, जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और जनता के पोषण स्तर को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। यह लाखों लोगों की आजीविका का भी प्रमुख स्रोत है। भारत देश दुनिया में एंटीबायोटिक उपयोग करने वाले देशों में अग्रणी है, जहाँ वर्ष 2019 में लगभग 5,091 मिलियन डिफ़ाइंड डेली डोज़  का उपभोग दर्ज किया गया। देश में बैक्टीरियल संक्रमणों की अधिकता, तेजी से बढ़ती जनसंख्या, एंटीबायोटिक का अनुचित या अत्यधिक उपयोग, स्वास्थ्य अवसंरचना की कमी, और पशुधन उद्योग में वृद्धि-प्रोत्साहक एंटीबायोटिक के उपयोग जैसी समस्याएँ व्यापक रूप से मौजूद हैं। ये सभी कारक मिलकर एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी सूक्ष्जीवों के विकास को तेज करते हैं, जिससे एक गंभीर सार्वजनिक-स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो रही है, जो आगे तक प्रभाव डालती है।

भारत में पालतू पशु एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी सूक्ष्जीवों के प्रति अधिक संवेदनशील होते जा रहे हैं जिसका प्रमुख कारण है उनके चारे में नियमित रूप से एंटीबायोटिक दवाओं का मिलाया जाना। शोध से पता चलता है कि विशेष रूप से डेयरी, बीफ पशुपालन, पोल्ट्री तथा सूकर उत्पादन क्षेत्रों में एंटीबायोटिक के अत्यधिक और अनावश्यक उपयोग होना दवा-प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों के विकास को बढ़ावा देता है। इस बढ़ते प्रतिरोध के परिणामस्वरूप पशुओं में मृत्यु दर और पशुधन क्षेत्र को उल्लेखनीय आर्थिक नुकसान जैसी समस्याओं को झेलना पड़ रहा हैं। आधुनिक वर्षों में एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध में तेज़ी से वृद्धि देखी गई है, जिसका मुख्य कारण मनुष्यों और पशुओं दोनों में एंटीबायोटिक का अत्यधिक तथा अनुचित उपयोग है।

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एंटीबायोटिक्स क्या हैं?

एंटीबायोटिक्स ऐसी दवाएँ होती हैं जो बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमणों को खत्म करने या उनकी वृद्धि को रोकने के लिए उपयोग की जाती हैं। इनके प्रभाव का आधार यह है कि वे बैक्टीरिया की कोशिका को नष्ट करती हैं, या तो कोशिका के विभाजन को रोककर, या फिर कोशिका के किसी आवश्यक कार्य या प्रक्रिया को बदल देती हैं, जिससे बैक्टीरिया जीवित नहीं रह पाता।

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एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध क्या है?

एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसमें एंटीबायोटिक के संपर्क में आने के बाद सामान्य या रोग-जनक बैक्टीरिया उस दवा पर असर न होने वाली क्षमता विकसित कर लेते हैं। एंटीबायोटिक का निरंतर, अनावश्यक या अत्यधिक उपयोग बैक्टीरिया पर चयनात्मक दबाव डालता है, जिससे न केवल हानिकारक बल्कि शरीर में मौजूद सामान्य बैक्टीरिया भी प्रतिरोधी रूपों में बदल सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया की संख्या और उनके फैलने की संभावना बढ़ जाती है। प्रतिरोधी जीन का प्रसार प्लाज़्मिड, बैक्टीरियोफेज और अन्य मोबाइल जेनेटिक तत्वों के माध्यम से क्षैतिज जीन स्थानांतरण द्वारा तेजी से हो सकता है। इस कारण, एंटीबायोटिक की प्रभावशीलता को बनाए रखने के लिए उनका उपयोग केवल आवश्यक परिस्थितियों में और जिम्मेदारी से करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह भी समझना ज़रूरी है कि यह एक लगातार विकसित होने वाली प्रक्रिया है और एक बार बैक्टीरिया प्रतिरोध विकसित कर ले, तो उसका फिर से दवा-संवेदनशील होना सुनिश्चित नहीं है।

प्रतिरोध के फैलाव को बढ़ावा देने वाले कारक

एंटीमाइक्रोबियल दवाओं के गलत और अत्यधिक उपयोग के कई कारण हैं। इनमें सही शिक्षा और जागरूकता की कमी, पशुपालकों की अपेक्षाएँ, पशु चिकित्सकों और पशुपालकों के बीच उचित संवाद का अभाव, आर्थिक प्रलोभन तथा कमजोर नियामक नियंत्रण शामिल हैं। पशुपालकों से संबंधित कारक एंटीबायोटिक के अनुचित उपयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कई पशुपालक यह मानते हैं कि नई और महंगी एंटीबायोटिक्स पुरानी दवाओं की तुलना में अधिक प्रभावशाली होती हैं, जिससे अनावश्यक उपयोग होता है और नई व पुरानी दोनों दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित होता है। प्रतिरोध विकसित होने के अन्य कारण हैं – एंटीबायोटिक का दुरुपयोग, अनियमित खुराक, गलत मात्रा में दवा देना, पशु चिकित्सकीय सलाह के बिना स्वयं दवा देना, तथा उन रोगों में एंटीबायोटिक का उपयोग करना जहाँ उनकी आवश्यकता न हो। पशुधन निरीक्षकों और क्षेत्र स्तर के कर्मचारियों में सीमित ज्ञान भी गलत सलाह और एंटीबायोटिक के अत्यधिक उपयोग को बढ़ावा देता है। निर्धारित उपचार का सही पालन न करना भी एक बड़ी समस्या है, क्योंकि पशुपालक दवा देना भूल सकते हैं, पशु के ठीक दिखने पर उपचार बीच में ही बंद कर देते हैं, या दावा का पूरा कोर्स नहीं खिलते। पशुओं में एंटीबायोटिक का अत्यधिक और अनुचित उपयोग सूक्ष्मजीवों पर चयनात्मक दबाव बढ़ाता है, जिससे प्रतिरोधी जीवाणु जीवित रहते हैं और तेजी से बढ़ते हैं, परिणामस्वरूप एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध का विकास और प्रसार में तेजी आना।

एंटीबायोटिक प्रतिरोध के परिणाम

एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग का एक अनिवार्य परिणाम प्रतिरोधी बैक्टीरिया का विकास और उनका फैलाव है। प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों के कारण होने वाले संक्रमण में दवा के उपचार का सही असर दिखाई नहीं देता, जिससे बीमारी लंबी चलती है और गंभीर मामलों में मृत्यु भी हो सकती है। संक्रमित व्यक्तियों या पशुओं के संपर्क में आने से प्रतिरोधी जीवाणु और अधिक फैलते हैं, जिससे अधिक लोगों या पशुओं को गंभीर रोगों का खतरा रहता है। पशु चिकित्सा में यह आर्थिक नुकसान का कारण है। जब कोई एंटीमाइक्रोबियल दवा प्रभावहीन हो जाती है, तो पशु चिकित्सक दूसरी दवा का उपयोग करने पर मजबूर होते हैं, जिससे किसानों पर खर्च बढ़ता है। इसके अलावा, प्रतिरोध के कारण उपचार का समय लंबा हो जाता है, जिससे पशुओं की उत्पादकता और कार्यशीलता में कमी आ जाती है।

एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध की रोकथाम

एंटीमाइक्रोबियल दवाओं के प्रति प्रतिरोध को अनावश्यक, अनुचित और लंबे समय तक उपयोग से बचाकर रोका जा सकता है। एंटीबायोटिक का सही और सीमित उपयोग सूक्ष्मजीवों पर दबाव को कम करता है और प्रतिरोधी जीवाणुओं के फैलाव को रोकता है। उपचार के लिए एंटीबायोटिक का चयन करते समय जहाँ संभव हो, तेजी से प्रभाव करने वाली और संकीर्ण स्पेक्ट्रम वाली दवाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए। यदि लंबे समय तक उपचार आवश्यक हो, तो आवश्यकता अनुसार दवाओं के संयोजन का उपयोग किया जा सकता है। वायरल और अन्य संक्रमणों का उचित नियंत्रण द्वितीयक जीवाणु संक्रमणों को कम करता है, जिससे एंटीबायोटिक उपचार की आवश्यकता कम करी जा सकती है। सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए पशुओं में एंटीबायोटिक के कुल उपयोग को कम करके प्रतिरोधी जीवाणुओं के विकास और प्रसार को नियंत्रित किया जा सकता है। पशु-चिकित्सा के दृष्टिकोण से, पशु आहार में वृद्धि प्रवर्तक के रूप में एंटीबायोटिक के नियमित उपयोग को बंद करना और प्राकृतिक उपचारों का उपयोग करना एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस को रोकने का एक महत्वपूर्ण उपाय है।

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