State News (राज्य कृषि समाचार)

ग्रीष्म कालीन मूँग की खेती

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  • विशाल अहलावत, ज्योति शर्मा मृदा विज्ञान विभाग
  • आर.एस. दादरवाल, शस्य विज्ञान विभाग 
  • दीपिका ढांडा, पर्यावरण विज्ञान विभाग
  • चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार हरियाणा

8 फरवरी 2023,  ग्रीष्म कालीन मूँग की खेती  – उत्तर भारत के सिचिंत क्षेत्र में चावल-गेहूं फसल प्रणाली में ग्रीष्मकालीन मूंग का रकबा बढ़ाने की अपार सभावनाएं हंै। जिन क्षेत्रों में सिंचाई की पूर्ण स़ुविधा है वहां पर किसान गेहूँ, सरसों, चना, मटर, आलू आदि फसल के बाद ग्रीष्मकालीन मंूग की खेती करके अल्प अवधि में अधिक आर्थिक लाभ अर्जित कर सकते हैं। लेकिन ज्यादातर किसान गेहूं की कटाई के उपरांत आगामी ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई के लिए परंपरागत  तरीकों से खेत को तैयार कर फसल बोने में 15 से 20 दिन का समय लग जाता है जिसके फलस्वरूप फसल की कटाई वर्षा आने से पहले नहीं होती है एवं इस बहुमूल्य समय की बचत करने के लिए जीरो ड्रिल या हैप्पी सीडर का प्रयोग कर खेत में बगैर जुताई किये ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई के समय

ग्रीष्मकालीन मूंग लगाने की विधि
  • पूर्व अंकुरित मूंग के बीजों को गेहूं में आखिरी पानी देने के समय छिडक़ाव करके ।
  • मूंग के बीजों को गेहंू में आखिरी पानी देने के बाद में रिलेप्लांटर से मूंग की बुवाई करके।
  • गेहूं की कटाई के उपरांत हैप्पी सीडर या जीरो ड्रिल मशीन से बुवाई  करके उप-सतही बंूद बंूद पद्धति से सिंचाई करके।
  • गेहूं की कटाई के उपरांत खेत की जुताई करके।
जीरो टिलेज तकनीकी से मूंग की बुवाई के लाभ 

गेहूं की कटाई के उपरांत जीरो ड्रिल या हैप्पी सीडर मशीन द्वारा बुवाई करने से लगभग 10 दिनों की बचत की जा सकती है। धान, गेहंू फसल प्रणाली में मूंग की रिले अंतरवर्तीय फसल बुवाई करने के लिए 10 से 15 दिन तक के मूल्यवान समय की बचत की जा सकती है तथा इसमें उचित समय पर बुवाई हो जाने से उत्पादकता में वृद्धि एवं लागत में कमी आती है। मृदा में संरक्षित नमी का बेहतर उपयोग होता है साथ ही खेत की तैयारी के लिए ट्रैक्टर में प्रयुक्त होने वाले डीजल की बचत होती है। धान- गेहूं फसल चक्र वाले क्षेत्रों में ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती करने से भूमि की उर्वराशक्ति में सुधार किया जा सकता है।

जलवायु

उप उष्णकटिबंधंीय जलवायु इसकी वृद्धि एवं पैदावार के लिए उपयुक्त होती है। मूंग के अच्छे अंकुरण एवं समुचित बढ़वार हेतु 20 से 40 सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त होता है।

मृदा

मूंग की खेती हेतु दोमट मिट्टी सबसे ज्यादा उपयुक्त होती है साथ ही उत्तम जल निकास वाली मृदा का होना आवश्यक होता है।

फसल चक्र

धान-गेहूं, धान-सरसों, धान-आलू, मक्का-गेहंू, मक्का-सरसों आदि फसल चक्र में ग्रीष्मकालीन मूंग अपनाकर अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं।

उन्नत किस्में

पूसा विशाल, पूसा रत्ना, पूसा-0672, एमएच-421, एमएच-1142, एमएच 215,सत्या, एसएमएल-668, एसएमएल-1827, ईपीएम 214, ईपीएम 2057, विराट।

बीज दर, बीजोपचार एवं बुआई

छिटकवा विधि 30-35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, रिले अंतरवर्तीय विधि  30-35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, लाइन बिजाई विधि 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।

बीजों को पहले 2.5 ग्राम थायरम एवं 1.0 ग्राम कार्बेन्डाजिम या 4.5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें। फफूंदनाशी से बीजोपचार के पश्चात बीज को राइजोबियम एवं पीएसबी कल्चर से उपचारित करें। मूंग की 25-30 सेमी कतार से कतार तथा 5-7 सेमी पौधे से पौधे की दूरी पर बुआई करें व स्थायी बेडों पर बुवाई हेतु बेड प्लान्टर मशीन का प्रयोग करें एवं बीज की गहराई 3-5 सेमी होनी चाहिए।

पोषक तत्व प्रबंधन

सामान्य रूप से ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल में 100 किलोग्राम डीएपी प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।

जल प्रबंधन

स्थायी बेड विधि या उप-सतही बूंद बंूद सिंचाई विधि का प्रयोग करके जल की बचत के साथ अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।

खरपतवार प्रबंधन

चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण हेतु इमेजाथायपर 10 प्रतिशत एसएल की 1000 मिली (100 सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर एवं संकरी पत्ती वाले खरपतवारों हेतु क्विजालोफॉप इथाइल 5 प्रतिशत ईसी (टरगा सुपर की 1000 मिली, 50 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर का बुवाई के 20 से 25 दिन तक प्रयोग खरपतवारों की सघनता के अनुसार करें।

रोग एवं कीट प्रबंधन

रोगों की रोकथाम के लिये मुख्यता: रोगरोधी किस्मों का चयन करना, उचित बीजोपचार करना व समय पर फफूंदनाशकों द्धारा नियत्रंण करें। पीला मोजेक या पीली चितेरी रोग की रोकथाम के लिये रोगरोधी प्रजातियां लगायें खेत में रोगी पौधे दिखते ही उखाडक़र नष्ट कर दें और सफेद मक्खी की रोकथाम हेतु इमिडाक्लोप्रिड की 150 मिली या डाइमिथिएट की 400 मिली प्रति हेक्टेयर मात्रा 400 लीटर पानी में मिलाकर छिडक़ाव करें और 12-15 दिन में छिडक़ाव दोबारा करें। फली भेदक कीट व पत्ती मोडक के नियत्रंण हेतु क्लोरन्ट्रानिलिट्रोल कोरोजन की 150 मिली या स्पाइनोसेड की 125 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से दो बार में छिडक़ाव करें।

कटाई एवं गहाई

जब मूंग की 50 प्रतिशत फलियाँ पककर तैयार हो जायें तो फसल की पहली तोड़ाई कर लें। इसके बाद दूसरी बार फलियों के पकने पर फसल की कटाई करें।

उपज 

मूंग से 5-10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है।

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