राज्य कृषि समाचार (State News)

रासायनिक कीटनाशकों के कम प्रयोग में सफलता, कृषि विज्ञान केंद्र कटिया हुआ सम्मानित

13 फ़रवरी 2025, नई दिल्ली: रासायनिक कीटनाशकों के कम प्रयोग में सफलता, कृषि विज्ञान केंद्र कटिया हुआ सम्मानित – भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान संस्थान (NCIPM), नई दिल्ली के 37वें स्थापना दिवस पर कृषि विज्ञान केंद्र-2, कटिया (सीतापुर) को रासायनिक कीटनाशकों के न्यूनतम उपयोग और एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन (IPM) तकनीक को बढ़ावा देने के लिए सम्मानित किया गया। यह सम्मान ICAR के पूर्व महानिदेशक डॉ. आर.एस. परोदा द्वारा प्रदान किया गया। इस मौके पर केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, मणिपुर के पूर्व कुलपति डॉ. एस.एन. पुरी, ICAR के सहायक महानिदेशक डॉ. पूनम जसरोटिया, पूर्व सहायक महानिदेशक डॉ. पी.के. चक्रवर्ती, NCIPM के पूर्व निदेशक डॉ. बी.एल. जलाली और ICAR-NCIPM के निदेशक डॉ. मुकेश सहगल सहित कई वैज्ञानिक एवं कृषि विशेषज्ञ मौजूद रहे।

क्या है IPM और इसकी जरूरत?

एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन (IPM) का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय फसल पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखना है। यह तकनीक खेतों में कीटनाशकों के अनियंत्रित उपयोग को रोकने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों जैसे मिट्टी, जल और जैव विविधता को संरक्षित करने में मदद करती है। इसके अलावा, यह परागण, स्वस्थ मिट्टी और जैव विविधता जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को भी बढ़ावा देती है, जिससे फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है।

यह केंद्र पर्यावरणीय डेटा और आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से कीट नियंत्रण के टिकाऊ उपायों को किसानों तक पहुंचाने का कार्य कर रहा है। संस्थान द्वारा किसानों को समेकित कीट प्रबंधन विधियों पर प्रशिक्षण दिया गया, जिससे वे रासायनिक कीटनाशकों पर अत्यधिक निर्भरता से बच सकें। केंद्र ने कीट और रोग नियंत्रण के लिए जैविक और प्राकृतिक उपायों को अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित किया और विभिन्न प्रकार के परीक्षण और प्रदर्शन आयोजित किए, जिससे रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग में कमी लाई जा सके।

इस तकनीक के बढ़ते उपयोग से किसानों को कई लाभ मिल सकते हैं। रासायनिक कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से खेतों की मिट्टी की उर्वरता प्रभावित होती है और पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ता है। IPM तकनीक से न केवल खेतों में जैव विविधता बनी रहेगी, बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता भी संरक्षित होगी, जिससे उत्पादन अधिक टिकाऊ होगा। इसके अलावा, किसानों की लागत कम होगी, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो सकती है। जैविक खेती को बढ़ावा मिलने से भारतीय कृषि उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार होगा और निर्यात बाजार में उनकी मांग भी बढ़ सकती है।

इस सम्मान के साथ कृषि विज्ञान केंद्र कटिया, सीतापुर के प्रयासों को नई पहचान मिली है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की पहल किसानों को पारंपरिक खेती से हटकर अधिक सतत और पर्यावरण-अनुकूल खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है। IPM तकनीक के माध्यम से कीटनाशकों के प्रयोग को नियंत्रित करने और प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।

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