राज्य कृषि समाचार (State News)

बारिश का जल रोकें या जमीन में उतारें !

05 अगस्त 2025, भोपाल: बारिश का जल रोकें या जमीन में उतारें ! – चालू वर्षा के मौसम में अभी तक मध्यप्रदेश सहित समूचे देश में अच्छी वर्षा हो रही है और मौसम विभाग ने अगस्त – सितम्बर माह में भी अच्छी बारिश होने की उम्मीद जताई है। हालांकि कुछ जिलों/राज्यों में अतिवर्षा होने से जन जीवन प्रभावित भी हो रहा है लेकिन अच्छी बारिश होने से खरीफ की फसलों का उत्पादन भी बेहतर होने की आशा बलवती हो रही है। हर साल की भांति इस वर्ष भी वर्षा का मौसम समाप्त होने के बाद रबी का मौसम शुरू होते ही अनेक स्थानों पर सिंचाई के लिये जल संकट की आहट सुनाई देने की सम्भावना है। इसका मुख्य कारण यह है कि जितना भूजल का दोहन हो रहा है, उसकी तुलना में जमीन के अंदर पानी का रिचार्ज बहुत कम हो रहा है।

इसी कारण साल- दर – साल भूजल स्तर कम हो रहा है और नलकूपों की गहराई भी बढ़ते जा रही है। देश के सैकड़ों विकासखंड डार्क एरिया घोषित हो चुके हैं। पर्याप्त बारिश होने के बावजूद हर साल दिसम्बर से ही सिंचाई और पेयजल की किल्लत शुरू हो जाती है। कृषि में उन्नत किस्में, मशीनीकरण और उन्नत तकनीक के कारण अब किसान साल भर कोई न कोई फसल लेते हैं। लेकिन जहाँ सिंचाई के पानी की कमी होती है वहां के किसान किसी तरह रबी की फसल का उत्पादन कर पाते हैं। ऐसे क्षेत्रों में भी अच्छी बारिश तो होती है लेकिन जल संग्रहण क्षेत्रों की कमी के कारण भूजल स्तर में कोई सुधार नहीं होता है और नलकूपों की गहराई भी हर साल बढ़ानी पड़ जाती है। जलवायु परिवर्तन और वन क्षेत्र के रकबे में हो रही कमी का दुष्प्रभाव वर्षा पर भी देखा जा रहा है। कुछ ही घंटों में अत्यधिक वर्षा होने से वर्षा का जल बह जाता है, जमीन के अंदर बहुत कम मात्रा में पानी जा पाता है इसलिए अच्छी बारिश होने के बाद भी जल संकट किसी त्रासदी से कम नहीं है।

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एक दुखद पहलू यह भी है कि गांवों में जहाँ पहले तालाबों की संख्या अच्छी खासी हुआ करती थी, अब अतिक्रमण के कारण उनका या तो जल ग्रहण क्षेत्र कम हो गया है या तालाब पूरी तरह समाप्त हो गए हैं। इसका खामियाजा स्थानीय किसान और ग्रामीणों को उठाना पड़ रहा है। ग्रामीण भारत में भी कई गांव ऐसे हैं, जहाँ गर्मी के दिनों में महिलाएं कई किलोमीटर दूर से जल लाती हैं। भूजल का अत्यधिक दोहन और बारिश के जल का संग्रहण न होने से सिंचाई और पेयजल का संकट बढ़ते ही जा रहा है। देश में गिरते भूजल स्तर और सूखते तालाबों की स्थिति पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

जलवायु परिवर्तन, अनियमित वर्षा, और जल के अत्यधिक दोहन ने स्थिति को और भी विकट बना दिया है। इसके समाधान के लिए दीर्घकालिक और सतत नीति की आवश्यकता है, जिसमें वर्षा जल संग्रहण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसलिए सिंचाई और पेयजल की पर्याप्त व्यवस्था के लिए बारिश के जल का संग्रहण और जल को जमीन में उतारने यानी रिचार्ज करने जैसे विकल्प ही कारगर हैं। चूंकि जल संग्रहण के लिए बांध और तालाब के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में बंजर भूमि पर छोटे – छोटे तालाब बनाए जा सकते हैं। बढ़ती जनसंख्या के कारण आवास के लिए कृषि भूमि पर दबाव बढ़ते जा रहा है इसलिए बड़े बांध बनाना अव्यवहारिक हो सकता है। बांध बनाते समय पुनर्वास की बड़ी समस्या होती है। सरदार सरोवर और इंदिरा सागर परियोजना का पुनर्वास का काम अभी भी पूरा नहीं हुआ है। इसलिए जन भागीदारी से किसान स्तर पर ही छोटे – छोटे तालाब, डबरियां बनाकर वर्षा के जल का संग्रहण करना एक व्यवहारिक उपाय हो सकता है।

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भूजल स्तर बढ़ाने के उपायों पर अमल कर शासकीय अथवा बंजर भूमि का कृषि, उद्योग अथवा अन्य कार्यों आदि के लिए उपयोग करना आसान होगा। इससे एक ओर जहां भूजल स्तर बढऩे से पेयजल और सिंचाई के लिए बारह महीनों जल की उपलब्धता सुनिश्चित होगी, वहीं दूसरी ओर सतही जल संग्रहण के लिए अतिरिक्त जमीन की आवश्यकता नहीं होगी। सतही जल संग्रहण की मात्रा निश्चित होती है तथा एक सीमा के बाद वर्षा जल बह जाता है इसलिए बारिश के जल को जमीन के अंदर उतारने का कार्य प्राथमिकता से किया जाना चाहिए। प्रत्येक गांव में काफी संख्या में सूखे नलकूप हैं या कुछ ऐसे भी नलकूप हैं जिनसे बरसात के बाद एक – दो महीने ही सिंचाई की जा सकती है। ऐसे सूखे और कम समय तक उपयोग में लाए जाने वाले नलकूपों के जरिये वर्षा का जल जमीन में उतारना अधिक कारगर सिद्ध हो सकता है।

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केंद्र और राज्य सरकारों को इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है। सरकार चाहे तो पायलट परियोजना शुरू कर सकती है जिसकी सफलता के बाद देश के अन्य जिलों में लागू करना आसान होगा। यदि समय रहते सतही और जमीन के अंदर जल संग्रहण को प्राथकिता के साथ नहीं किया गया तो पेयजल और सिंचाई के लिए जल की कमी का संकट और गहराता जाएगा।

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