State News (राज्य कृषि समाचार)

राजस्थान के किसान भाइयों के लिए विशेष सलाह

Share
नरमा कपास के खेत में खरपतवार न पनपे

7 जुलाई 2022, जयपुर: राजस्थान के किसान भाइयों के लिए विशेष सलाह – वर्षा को ध्यान में रखते हुए किसान भाई अपने खेत के किसी एक भाग में वर्षा के पानी को इकट्ठा करने की व्यवस्था करें जिसका उपयोग वे वर्षा न आने के दौरान फसलों की उचित समय पर सिंचाई के लिए कर सकते हैं।

देसी कपास – बढ़वार – कपास के खेत में खरपतवार न पनपने दें। इसके लिए पहली निराई-गुड़ाई सिंचाई के बाद बतर आने पर कसिये से करें तथा इसके बाद एक और निराई-गुड़ाई त्रिफाली से करें।

अमेरिकन नरमा – बढ़वार – नरमा कपास के खेत में खरपतवार न पनपने दें। इसके लिए पहली निराई-गुड़ाई सिंचाई के बाद बतर आने पर कसिये से करें तथा इसके बाद एक और निराई-गुड़ाई त्रिफाली से करें।

सफेद मक्खी– यदि बीटी /नरमा कपास में सफेद मक्खी दिखाई दें तो खेतों का नियमित निरीक्षण करें व आर्थिक हानि स्तर (8-12 सफेद मक्खी/ पत्ती) की स्थिति में नीम आधारित (निम्बेसिडिन 5.0 मि.ली. + तरल साबुन को 1.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर) कीटनाशकों का छिड़काव करें।

गन्ना – सिंचाई – गन्ने की फसल में प्रथम सिंचाई के बाद की सिंचाईयाँ 10-15 दिन के अन्तर पर पानी की उपलब्धता होने पर करें। बतर आने पर दो कतारों के बीच हल से जुताई कर दें। सिंचाई के साथ में नाइट्रोजन का 1/3 भाग यानि 12.5 किलो नाइट्रोजन (27 किलो यूरिया) प्रति बीघा जून के प्रथम पखवाड़े में दें।

दीमक – फसल को दीमक के प्रकोप से बचाने के लिए इमिडाक्लोप्रिड (17.8 एसएल) 125 मिली अथवा क्लोरोपाईरीफॉस (20 ईसी) 1.25 लीटर प्रति बीघा की दर से सिंचाई पानी के साथ दें।

तना छेदक –  फसल में यदि अगेता तना छेदक या जड़ छेदक का प्रकोप दिखाई दें तो फ्यूराडॉन 3 प्रतिशत कण 6 किलो प्रति बीघा या फोरेट 10 प्रतिशत कण 4 किलो प्रति बीघा की दर से गोभे में डालें।

ग्वार- बिजाई -किस्म- ग्वार की बिजाई के लिए आरजीसी 936, 986, 1002, एचजी 365, 563, 2-20 आदि किस्मों का प्रमाणित बीज प्रयोग करें। बीज दर 3-4 किलो बीज प्रति बीघा रखें तथा कतार से कतार की दूरी 30 सेमी रखें।

उर्वरक– बिजाई के समय 10 से 11 किलोग्राम यूरिया व 62.5 किलो सुपर फास्फेट प्रति बीघा बेसल के रूप में दें। बारानी ग्वार में फास्फोरस की मात्रा आधी प्रयोग करें।

किन्नों– सिंचाई- किन्नू के बाग जो बून्द-बून्द सिंचाई पर लगे हैं, उनमें एक दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहें।

नये बाग– जिन किसान भाईयों को किन्नू के नये बाग लगाने है, उन्हें इस महीने इसकी तैयारी शुरू कर दें। सबसे प्रथम बाग लगाने वाले खेत की मिट्टी की जांच करा लें तथा मिट्टी उपयुक्त पाये जाने पर पौध लगाने के लिए 6&6 मीटर पर 1&1&1 मीटर आकार के गड्ढे खोदकर उनमें प्रति गड्ढे के हिसाब से 50 से 60 किलो गोबर की खाद तथा 1 किलो सुपर फास्फेट, 75 से 100 ग्राम क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण गड्ढों की मिट्टी में मिलाकर भर दें।

नोट– अधिक जानकारी के लिए केन्द्र की किसान हेल्पलाईन मोबाईल नं. 9828840302 पर सम्पर्क करें।

मूंग– मूंग की बिजाई के लिए सिफारिश किस्में- एम.एच. 421, आईपीएम 02-3, सत्या (एम.एच. 2-15), एस.एम.एल.-668, के 851, एम.यू.एम. 2, गंगोत्री (गंगा-8) का प्रयोग कर सकते है। बीजदर 4 से 5 किलो प्रति बीघा प्रयोग करें। एस.एम.एल.-668 के लिए 5 से 6 किलो बीजदर प्रयोग करें। कतार से कतार की दूरी 30 सेमी रखे। मूंग की फसल में रसायनों द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए ट्राई फ्लूरालीन (40 प्रतिशत ईसी) नामक खरपतवार नाशी 400 मिली दवा को 150 लीटर पानी में घोलकर प्रति बीघा में बुवाई से पूर्व अंतिम जुताई के समय मिट्टी में छिड़ककर मिलाएं।

मक्का – जहां खेत में पर्याप्त नमी उपलब्ध हो वहां किसानों को मक्का की बुवाई पूरी करने की सलाह दी जाती है। मक्का की उन्नत किस्में प्रताप क्यूपीएम 1, एचक्यूपीएम 1, 6, पीईएचएम 2 और प्रताप संकर मक्का 1, प्रताप मक्का, प्रताप संकर मक्का 3 । बुवाई से पहले बीजों को कवकनाशी और पीएसबी या एजेटोवेक्टर से उपचारित करें।

सोयाबीन– सोयाबीन की बुवाई पर्याप्त नमी होने पर करें एक हेक्टेयर की बुवाई के लिए 80 किलो प्रमाणित बीज का प्रयोग करें। बुवाई से पूर्व प्रति किलो बीजों को 3 ग्राम थाइरम या 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम द्वारा उपचारित करें। बीजों को बुवाई पूर्व राइजोबियम कल्चर से बीज उपचार करना आवश्यक है। सोयाबीन की उन्नत किस्में प्रताप सोया 1, प्रताप राज सोया 24, एनआरसी 37

खरीफ दाल– मूंग एवं उड़द की फसल बुवाई हेतु किसान उन्नत बीजों की व्यवस्था करें। मूंग- पूसा विशाल, पूसा 5931, एसएमएल 668, के 851, आरएमजी 62, एमएल 267, आरएमजी 268, एसएमएल 668, जीएम 4, आरएमजी 492। उड़द- पीयू 31, प्रताप उड़द, टी-9, बरखा, केयू 492 आदि। बुवाई से पूर्व बीजों को फसल विशेष राइजोबियम तथा फास्फोरस, सोलूबाइजिम बेक्टीरिया से अवश्य उपचार करें।

मंूगफली –  मूंगफली की उन्नत किस्में – प्रताप मूंगफली 1, 2, जेएल 24, जीजी 7 ।  मिट्टी जांच के आधार पर अंतिम जुताई से पहले प्रति 250 कि.ग्रा. जिप्सम मिलायें। बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर 375 किलो सिंगल सुपर फास्फेट व 35 किलो यूरिया नायले में उर कर दें।

ज्वार – ज्वार में तना मक्खी कीट के नियंत्रण के लिए मानसून की पहली वर्षा होने के एक सप्ताह के अंदर बुवाई करें।  ज्वार की उन्नत किस्में – सीएमबी 15, 17, 23, प्रताप ज्वार 1430 । हरे चारे के लिए उन्नत किस्में- बहुकटाई किस्में एमपी चरी एसएसजी-59-3, एकल कटाई किस्में राजस्थान चरी 1, राजस्थानी चरी 2, प्रताप चरी 1980

अन्तराशस्य – अधिकतम उत्पादन और नुकसान को कम करने के लिए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अन्तराशस्य अपनाये। मक्का में अंतराशस्य के लिए सोयाबीन की एक पंक्ति को मक्का की एक पंक्ति के बाद 30 से.मी. की दूरी पर बोयें। मंूगफली में मूंगफली की 6 पंक्ति के बाद तिल की 2 पंक्तियों को 30 से.मी. की दूरी पर बोयें।        

बाजरा– बिजाई- बाजरा की बिजाई के लिए उपयुक्त समय है। बाजरा बिजाई के लिए सिफारिश की गई किस्में- एच.एच.बी-67, राज-171 (एम.पी.-147), आई.सी.एम.एच.- 356, एम.एच.-169, आर.एच.बी.-121, सी.जेड.पी.- 9802, जी.एच.बी.-538, एच.एच. बी-67-2, जी.एच.बी.719, आई.सी.टी.पी-8203, एच.एच.बी.-60, आर.एच.बी.-90, पूसा-605 का उपयोग करें। सामान्यतया 4 किलो बाजरे का प्रमाणित बीज प्रति हेक्टेयर बोये एवं कतार से कतार की दूरी 45 से 60 सेंटीमीटर रखते हुए पौधों की संख्या 1.33 लाख प्रति हेक्टेयर रखें।

अरण्डी– बिजाई- अरण्डी की बुवाई जुलाई के प्रथम पखवाड़े तक करें। सिफारिश किस्मों- गोच-1, जी.ओ.सी.एच. 4, आर.सी.एच. 1, एम.आरसी.ए. 409 का उपयोग करें। बीज दर 3-4 किलो प्रति बीघा रखें। सिंचित क्षेत्रों में कतार से कतार 90-120 सेमी तथा पौधों के बीच 90 सेमी तथा असिंचित क्षेत्रों में 60&45 सेमी की दूरी रखें। बुवाई के समय 11 यूरिया तथा 50 किलो सिंगल सुपर फॉरफेट प्रति बीघा दें।

किन्नू– बागों में लीफ माइनर, सिट्रससिल्ला एवं रेड स्पाइडर माइट, तंबाकू का लट आदि के रोकथाम के लिए ट्राईजोफॉस 40 ईसी. 25 मिली. या  क्विनालफॉस 25 ईसी. 1.50 मिली. या थायोमेथोक्सम 25 डब्ल्यू.जी. 0.50 मिली. या एसिटामिप्रिड 0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। नये बाग लगाने के लिए पहले से तैयार गड्ढों में पौधे लगाने का उपयुक्त समय है।

पशुपालन–  मानसून की बारिश होते ही पशुओं में गलघोटू रोग होने की संभावना ज्यादा होती है। इसके साथ ही लंगड़ा बुखार होने की संभावना ज़्यादा रहती है। ऐसे में पशुपालक और किसानों को सलाह दी गई हैं कि इस स्थिति में पशुचिकित्सालय या चिकित्सक से संपर्क कर लें, साथ ही पशुओं में टीकाकरण करवा लें। पशुओं में जूं, चीचड़ से बचाव के लिए 2 प्रतिशत  साइपरमेथ्रिन पशु पर और 4 प्रतिशत पशुशाला में छिड़काव करें। छिड़काव के समय पशु के आँख, मुँह का ध्यान रखे।

मुर्गीपालन– मुर्गियों में रानी खेत रोग होने का खतरा रहता है। इसके लिए पहला टीका एफ-1 सात दिनों के अंदर लगवा लें और दूसरा आर-2-बी का टीका 8 सप्ताह की उम्र में लगवाएं। नवंबर माह में अंडे प्राप्त करने के लिए मुर्गियों के चूजे पालने के लिए यह उपयुक्त समय है। अत: मुर्गीशाला की सफाई करके चूजे पालना शुरू करें व सही ब्रूडिंग करें।

किसान भाईयों से अनुरोध है कि वे मौसम की दैनिक अपडेट के लिए अपने मोबाइल में मेघदूत और आकाशीय बिजली के अलर्ट हेतु दामिनी एप्लिकेशन डाउनलोड करें।

महत्वपूर्ण खबर: मध्यप्रदेश के तीन संभागों में भारी से अति भारी वर्षा की चेतावनी

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *