State News (राज्य कृषि समाचार)

हर 3 वर्ष बाद मिटटी, पानी की जाँच अवश्य कराएं

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22 जून 2022, पोकरण (राजस्थान ) । हर 3 वर्ष बाद मिटटी, पानी की जाँच अवश्य कराएं कृषि विज्ञान केंद्र पोकरण द्वारा “नैनो उर्वरको सहित उर्वरको का दक्ष एवं संतुलित उपयोग” विषय पर कृषक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें जैसलमेर जिले के 50 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम में प्रोफ़ेसर आर. पी. सिंह, कुलपति, स्वामी केशवानन्द राजस्थान कृषि विश्वविध्यालय बीकानेर ने जैविक उर्वरकों का संतुलित प्रयोग तथा फसल अवशेष प्रबंधन विषय पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होने किसानों को प्रत्येक 3 वर्ष बाद मृदा एवं पानी की जाँच आवश्यक रूप से करवाने की सलाह दी एवं केन्द्र के कृषि वैज्ञानिकों को खेती एवं पशुपालन से सम्बंधित समस्याओं के यथासंभव निराकरण का आग्रह किया। केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ बलबीर सिंह ने उर्वरकों के संतुलित उपयोग हेतु उपलब्ध विभिन्न प्रकार के रासायनिक उर्वरकों की क्षेत्र में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलों के लिये संस्तुत मात्रा का प्रयोग 4 आर (सही स्त्रोत, सही दर, सही समय एवं सही स्थान) एप्रोच के आधार पर करने पर बल दिया।

डॉ. कृष्ण गोपाल व्यास, विषय विशेषज्ञ, सस्य विज्ञान ने बताया कि उर्वरक पौधो के लिये आवश्यक तत्वों की तत्काल पूर्ति के साधन है लेकिन इनके प्रयोग के दुष्परिणाम भी है। इसलिये किसान भाइयों को मृदा की जाँच करवा कर सिफारिश की गई उर्वरकों की संतुलित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिये एवं जैविक खाद का अधिक उपयोग करना चाहिये। उन्होंने पौधों के विकास एवं बढ़वार के लिये आवश्यक पोषक तत्वो के कायों तथा इनके स्त्रोतों के बारे में प्रतिभागियों के साथ विस्तारपूर्वक चर्चा की। कृषि प्रसार वैज्ञानिक डॉ सुनील कुमार शर्मा ने जाँच के लिये मृदा एवं जल का नमूना लेने की विधि एवं लवणीय तथा क्षारीय मृदाओं के सुधार के उपायों के बारे में किसानों को अवगत कराया। इन्होने बताया कि सतह पर एकत्रित लवणों को खुरचकर, लवणों को पानी में घोलकर जड़ क्षेत्र से नीचे ले जाना (निक्षालन) एवं लवण सहिष्णु फसलें लेकर लवणीय भूमि का प्रबंधन किया जा सकता है एवं क्षारीय मृदाओं के सुधार के लिये 250 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करने का सुझाव दिया। पशुपालन वैज्ञानिक डॉ रामनिवास ने बताया कि खेत के खाली रहते समय किसान को हरी खाद के रूप में ढेंचा, लोबिया, सनई व अन्य कोई दलहनी फसल कि बुवाई करनी चाहिये एवं फूल आने कि अवस्था पर भूमि में दबा देना चाहिये। उन्होंने किसानों को प्रत्येक 3 वर्ष बाद मृदा एवं पानी की जाँच आवश्यक रूप से करवाने की सलाह दी। 

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