State News (राज्य कृषि समाचार)

बदलती जलवायु में स्मार्ट एग्रीकल्चर

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  • अनामिका तोमर,
    पीएचडी स्कॉलर कृषि महावि., ग्वालियर

20 अगस्त 2022, बदलती जलवायु में स्मार्ट एग्रीकल्चर – कृषि भूमि, पशुधन, वानिकी और मत्स्य पालन के प्रबंधन का एकीकृत दृष्टिकोण जलवायु स्मार्ट कृषि-क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर है जो बदलती जलवायु और खाद्य सुरक्षा की आपस में जुड़ी हुई चुनौतियों का निराकरण करता है। हमारी जनसंख्या में दिन प्रतिदिन तेज गति से वृद्धि हो रही है, लेकिन बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्य पूर्ति के लिए उत्पादकता उस दर से नहीं बढ़ रही है। इंसान ने अपने फायदे के लिए प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग इतने अंधाधुंध तरीके से किया है कि हमारी मृदा, वायु, जल सब प्रदूषित हो चुका है और ग्लोबल वार्मिंग के चलते हमारी जलवायु में परिवर्तन आ रहा है।

आज जब कृषि क्षेत्र में रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से उत्पादकता में पहले ही स्थिरता आ चुकी है, ऐसे में जलवायु में बदलाव के कारण बिना अपने वातावरण को क्षति पहुंचाए उत्पादकता को बनाये रखना भी एक चुनौती है। जलवायु स्मार्ट खेती उन लोगों की मदद करने का एक तरीका है जो कृषि प्रणालियों का प्रबंधन करते हैं ताकि जलवायु परिवर्तन के लिए प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया दे सके।

जलवायु स्मार्ट खेती के तीन मुख्य उद्देश्य
  • उत्पादकता और आय में लगातार वृद्धि
  • जलवायु परिवर्तन के अनुकूल ढलना
  • जहां संभव हो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना

एफएओ- संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन, की व्याख्या के अनुसार यह जरूरी नहीं है कि प्रत्येक स्थान जहां भी जलवायु स्मार्ट खेती की जाये, वहां पर तीनों उद्देश्य एक साथ समाहित हो। जलवायु स्मार्ट खेती निश्चित रूप से क्रियाओं का संग्रह नहीं है बल्कि यह एक दृष्टिकोण है जो स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न तत्वों को सम्मिलित करता है। विश्व बैंक जलवायु स्मार्ट खेती के अंतर्गत अनेक देशों को निधि प्रदान कर रहा है जिसमे महाराष्ट्र प्रोजेक्ट फॉर क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर सबसे बड़ी जलवायु स्मार्ट खेती परियोजनाओं में से एक है। बैंक ने अब तक इसे वित्तपोषित किया है व अनुमान है कि 386 मिलियन यूएस डॉलर के जलवायु परिवर्तन में सुधार होगा।

जून 2020 तक 3,09,800 परियोजना लाभार्थियों ने जलवायु-स्मार्ट कृषि पद्धतियों को अपनाया है और 56,602 हेक्टेयर भूमि बेहतर सिंचाई और जल निकासी प्रौद्योगिकियों से लाभान्वित हुई है।

जलवायु स्मार्ट कृषि पद्धतियां

फसल प्रबंधन : अनाज वाली फसलों के साथ दलहनी फसल जैसे धान के साथ सोयाबीन का अंतरफसल करना, प्रतिरोधक किस्में, फसल विविधता, फसलों को तनाव से बचाने के लिए जैविक नियामकों का प्रयोग, बेहतर भंडारण एवं प्रसंस्करण तकनीकों ई-नाम एप के प्रयोग से फसल को प्रबंधित किया जाता है।

पशु प्रबंधन : पशुओं को चारा खिलाने के अलग अलग तरीके जैसे आवर्तनशील चराई और चारे वाली फसलें लोबिया, बरसीम इत्यादि, बेहतर पशुधन स्वास्थ्य, चरागाहों को रिस्टोर करना एवं उनका संरक्षण करना और अच्छे से खाद उपचार करना।

मिट्टी और जल प्रबंधन : संरक्षण कृषि जिसमे न्यूनतम जुताई, मिट्टी की सतह पर स्थायी वानस्पतिक आवरण या गीली घास का रखरखाव व फसल विविधता शामिल है।

कृषि वानिकी : खेत की मेड़ पर पेड़ अथवा हेज लगाना। नाइट्रोजन स्थिर करने वाले पेड़ व बहुउद्देशीय पेड़ों की खेती, वुडलॉट्स एवं फलों के बगीचे इत्यादि लगाकर कृषि वानिकी की जाती है ।

एकीकृत खाद्य ऊर्जा प्रणाली : अपने फार्म पर उपस्थित अवशेषों से बायोगैस का उत्पादन करके एवं उस बायोगैस को अपने फार्म पर ही उपयोग करके किसान अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर पाता है।

जलवायु स्मार्ट कृषि के आयाम

वाटर स्मार्ट: सीधे बीजे जाने वाले चावल & डीएसआर की खेती, फसल उगाने के लिए सामान्य धरा से ऊपर उठी हुई क्यारी, चावल गहनता की प्रणाली एसआरआई, टपक सिंचाई इत्यादि प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके जल को बचाया जाता है।

मौसम स्मार्ट: ई मौसम एचएयू जैसे एप का प्रयोग करके मौसम पूर्वानुमान को समझते हुए कृषि कार्यों को व्यवस्थित करना, आगामी फसल का चयन कुल बारिश, अधिकतम व न्यूनतम तापमान को देखते हुए करना।

कृषि के लिए पोषक तत्व स्मार्ट: पोषक तत्व विशेषज्ञ निर्णय समर्थन उपकरण, नैनो उर्वरक का प्रयोग करना।
कार्बन स्मार्ट और ऊर्जा स्मार्ट : फसल अवशेषों का प्रबंधन, कम जुताई या शून्य जुताई करना, धारणीय कृषि प्रणाली का अनुसरण करना।

ज्ञान स्मार्ट: आईसीटी का प्रयोग जैसे की लेजर लैंड लेवलिंग, मोबाइल एप्स का प्रयोग जैसे किसान सुविधा आदि का प्रयोग।
महिला सशक्तिकरण : खेती मे महिला की भूमिका अधिक होनी चाहिए क्योंकि महिलाओं में विभिन्न कार्यों को एक साथ व्यवस्थित करने की क्षमता पुरुषों के मुकाबले अधिक होती है

जलवायु स्मार्ट खेती को अपनाने से वर्तमान स्थितियों को और खराब होने से रोका जा सकता है और खाद्य सुरक्षा पर मंडराते खतरों से भी बचा जा सकता है।

 

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